.. यहां तो हर रोज कामयाबी की इबारत लिख रही हैं बेटियां
बेटियां सिर्फ खाना पकाने व चौका चूल्हा तक सीमित रहने के लिए नहीं हैं।
रोहतास। बेटियां सिर्फ खाना पकाने व चौका चूल्हा तक सीमित रहने के लिए नहीं हैं। बल्कि लड़कियां घर के आंगन की वह तुलसी होती है, जिसकी बदौलत दो कुलों का मान-सम्मान बढ़ता है। बेटियां न तो कामयाबी की इबारत लिखने में पीछे रही हैं न अपनी पहचान बनाने में। अब तो हर रोज बेटियां सफलता की गाथा लिख बेटों से भी आगे निकल रही हैं। सिर्फ जरुरत है इन्हें समान अवसर देने की। चाहे वह पढ़ाई-लिखाई की बात हो या फिर खेल-कूद की। देश की रक्षा व अन्य क्षेत्रों में भी । गांव की मिट्टी में जन्मी जिले की दर्जनों बेटियों ने देश स्तर पर पहचान बनाने में कामयाब रही हैं। रविवार को बेटी दिवस पर जिले के हर व्यक्ति को गर्व होनी चाहिए कि हर बेटी कड़ी मेहनत व परिश्रम से सफलता की शिखर तक पहुंचे। बेटी दिवस पर दैनिक जागरण की टीम ने बेटियों के सपने को जानने की कोशिश की।
जिले के नटवार थाना के अगरेर खुर्द की रहने वाली नेहा पांडेय आज खुद दर्जनों खिलाड़ी तैयार कर रही हैं। पूर्व राष्ट्रीय फुटबॉल खिलाड़ी नेहा वर्तमान में एकलव्य प्रशिक्षण केंद्र सासाराम में बेटियों को भी इस खेल में दक्ष करने का काम कर रही हैं।
वहीं गांव की पगडंडी पर दौड़ लगा चेनारी थाना के मथही गांव की सोनी एथलेटिक्स में सिर्फ मेडल ही जीतने का काम नहीं की है, बल्कि आज वह खेल कोटे से सीमा सशस्त्र बल में नौकरी कर देश की सीमा की रक्षा कर रही है। हाल ही में पटना में आयोजित पूर्वी राज्य राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में बिहार की तरफ से सासाराम की बेटी तलत जहां ने दौड़ में गोल्ड मेडल व गोला फेंक में रीमा राज ने कांस्य पदक जीत राष्ट्रीय स्तर पर जिले का नाम रौशन करने का काम किया। अकोढ़ीगोला की नेहा नाजमीन व सासाराम की सुमन कुमारी ने भी कई प्रतिस्पर्धाओं में जिले को पदक दिलाने में कामयाबी हासिल की है।
तभी तो प्रशिक्षक नेहा कहती हैं कि बेटी घर की वह आभूषण व श्रृंगार होती है, जिससे पूरा परिवार खुशहाल रहता है। अगर बेटियां न हो तो संसार भी नहीं होगा। आज सबसे जरूरत है इन्हें बचाने की। देश की सुरक्षा की बात हो या फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल की। उसे अपने नाम करने में बेटे से कहीं आगे रह रही हैं।