मां की लोरी की तरह होते हैं लोकगीत : नीतू नवगीत
महाशिवरात्रि के अवसर पर आयोजित गुप्ता धाम महोत्सव में भाग लेने आई बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका डॉ. नीतू कुमारी नवगीत ने कहा कि लोकगीत मां की लोरी के समान होते है। जिसमें मां का प्यार और दुलार छुपा होता है। इन गीतों में अपने क्षेत्र की माटी की सोंधी महक होती है जो सांस्कृतिक रूप से हमें मजबूत करती है। अपनी संस्कृति से से कटा हुआ व्यक्ति कभी भी सुखी नहीं रह सकता।
महाशिवरात्रि के अवसर पर आयोजित गुप्ता धाम महोत्सव में भाग लेने आई बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका डॉ. नीतू कुमारी नवगीत ने कहा कि लोकगीत मां की लोरी के समान होते है। जिसमें मां का प्यार और दुलार छुपा होता है। इन गीतों में अपने क्षेत्र की माटी की सोंधी महक होती है, जो सांस्कृतिक रूप से हमें मजबूत करती है। अपनी संस्कृति से से कटा हुआ व्यक्ति कभी भी सुखी नहीं रह सकता।
नीतू ने कहा कि बिहार के पारंपरिक लोकगीतों को गाकर उन्हें सुकून मिलता है। अपनी समृद्ध सांस्कृतिक व विरासत को आगे बढ़ाना हम सबकी जिम्मेदारी है। अपने नए एलबम के बारे में कहा कि उनके द्वारा प्रस्तुत होली गीत नहीं अईले सजनवा फगुआ में यूट्यूब और फेसबुक पर काफी लोकप्रिय हो रहा है। टी-सीरीज के हमार भोजपुरी चैनल से जारी इस गीत को फेसबुक पर साढ़े तीन लाख से अधिक लोग देख चुके हैं। यह गीत यूट्यूब पर भी लोकप्रिय हो रहा है। अब तक 20 हजार से अधिक लोगों ने उसे वहां देखा व पसंद किया है। गीत का निर्देशन प्रसिद्ध निर्देशक दीपश्रेष्ठ ने किया है। जबकि विरेंद्र पांडेय ने लिखा व राजेश केसरी ने संगीत से सजाया है। पिछले साल होली में दो गीत कान्हा मारे गुलाल से रंग बरसे राधा के गाल से और कान्हा होलिया में रंग बरसईब कि ना,कान्हा उंगली पकड़ कर नचईब कि ना रिलीज किया गया। जिसे भी श्रोताओं ने काफी पसंद किया था।