साहस से बदरंग जिदगी को पाटने में जुटे प्रवासी
लंबी कष्टकारी यात्रा से अपनी सरजमीं पर जब पहुंचे तो जिदगी में कोई रंग नहीं था। कोरोना महामारी ने इनकी जिदगी को बदरंग बना दिया था।
लंबी कष्टकारी यात्रा से अपनी सरजमीं पर जब पहुंचे तो जिदगी में कोई रंग नहीं था। कोरोना महामारी ने इनकी जिदगी को बदरंग बना दिया था। शहर के ऊंचे महलों में रहने वाले व महंगी लग्जरी गाड़ियों में चलने वालों का नजरिया भले ही इन प्रवासी श्रमिकों के प्रति नकारात्मक रहा है, पर ये वही श्रमिक हैं, जो अमीरों की बदरंग जिदगी में भी रंग भरने का काम करते हैं। विभीषिका का सामना कर रहे इन श्रमिकों का साहस आज भी कम नहीं हुआ है। इनके जज्बे को सलाम है.। मानसिक व शारीरिक पीड़ा के बावजूद क्वारंटाइन सेंटर के सीमित संसाधनों में अपनी मिट्टी पर पुन: सपनों को सहेज जिदगी में रंग भरने की जद्दोजहद में जुटे गए हैं। तो आइए चलते हैं जिले के संझौली प्रखंड के गौरीशंकर उच्च विद्यालय में बने क्वारंटाइन सेंटर में, जहां अपनी पीड़ा को भूल बदरंग जिदगी को पाटने के लिए यहां के प्रवासी कामगार कुछ अलग कर रहे हैं।
राज्य के तमाम क्वारंटाइन सेंटरों पर प्रतिदिन हंगामा व अव्यवस्था की सूचना के बीच यहां के श्रमिक पूरे मनोयोग से साफ-सफाई करते हैं। सुबह जगने के बाद ही प्रवासी सेंटर की साफ-सफाई में जुट जाते हैं। फिर सेंटर के प्रांगण में पूर्व से लगे पौधों व वृक्षों की सिचाई करते हैं। और तो और सफाई के पश्चात पूरे कैंपस में खूबसूरत रंगोली बनाते हैं। मुख्य द्वार पर प्रवेश करते ही विभिन्न रंगों से उकेरे गए, जय भारत व जय हिद के शब्द सुखद एहसास करा जाते हैं। अंदर बनी रंगोली कोविड-19 के प्रति जागरुकता का संदेश देती है। दिलचस्प बात यह है कि प्रतिदिन जमीं पर रंगोली बना ये श्रमिक अपनी बदरंग जिदगी में फिर से रंग भर सपनों को बुनते नजर आते हैं। रेड जोन से आए 103 प्रवासियों की हो रही प्रशंसा: फिलवक्त सेंटर में दिल्ली, मुंबई, सूरत, पंजाब जैसे रेड जोन शहरों से आए 103 लोगों को ठहराया गया है, जो संझौली, उदयपुर, मसोना, सोनी, कैथी, सिअरुआं आदि गांवों के हैं। प्रवासियों के धैर्य व सोच को देख बीडीओ कुमुद रंजन, सीओ आशीष कुमार व सामाजिक कार्यकर्ता रामाशंकर शर्मा द्वारा पहल की गई। स्वैच्छिक प्रस्ताव के बाद क्वारंटाइन सेंटर में ठहरे प्रवासी अपनी श्रमशक्ति से कोरोना से मुक्ति का संदेश बांटने में जुट गए। सामाजिक कार्यकर्ता रामाशंकर द्वारा प्रतिदिन श्रमिकों को रंग व अन्य सामग्रियां उपलब्ध कराई जाती है। प्रवासी अनिल पासवान, अनिल कुमार, धर्मेंद्र रजक ने बताया कि यह समय मुश्किलों का तो है, पर हम ऐसे मुश्किलों से डरकर कहां जाएंगे। यह दौर हमें और मजबूती के साथ कुछ अलग करने की सीख देता है। क्वारंटाइन से निकलने के बाद हमें और मजबूती के साथ कुछ अलग करना है। मसलन, यहां के श्रमिकों ने अपनी काबिलियत से यह साबित कर दिया है कि भले ही सामाजिक ²ष्टिकोण से उन्हें उतना सम्मान नहीं मिलता, पर विपरीत परिस्थितियों में भी माहौल को खुशनुमा बनाने कि जो उनमें गुणवता है, वह और कहीं नहीं मिलेगी। यहां के श्रमिकों ने अलग तरह से जिदगी जीने की कला से अवगत करा दिया है। कहते हैं अधिकारी:
सेंटर के श्रमिकों की अलग करने की सोच ने यह साबित कर दिया है कि परिस्थितियां कितनी भी विपरीत क्यों ना हो , सकारात्मक सोच से उन्हें अपने अनुकूल बनाया जा सकता है।
कुमुद रंजन, बीडीओ, संझौली प्रखंड