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होनहारों के लिए उम्मीद की एक किरण मैथ गुरु

गणित के प्रति बेवजह का हौवा है। यह तो सर्वाधिक रुचिक

By JagranEdited By: Published: Mon, 11 May 2020 08:53 PM (IST)Updated: Tue, 12 May 2020 06:18 AM (IST)
होनहारों के लिए उम्मीद की एक किरण मैथ गुरु

................ ''गणित के प्रति बेवजह का हौवा है। यह तो सर्वाधिक रुचिकर विषय है। विद्यार्थियों की दिलचस्पी जगाने की जरूरत है। अगर किसी फार्मूला से आप सवाल को हल कर रहे हैं, तो उसके पीछे छुपे तथ्यों को जानिए। क्यों वह फार्मूला बना और आप अपने सहज-सरल तरीके से कैसे उस सवाल को हल कर सकते हैं।''

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- रजनीकांत श्रीवास्तव

:::::::::::::::::::::::::::: ब्रजेश पाठक, सासाराम

गणित के उलझे सवालों को चुटकियों में सुलझाने वाले रजनीकांत श्रीवास्तव की पहचान आज मैथ गुरु के रूप में बन चुकी है। खेल-खिलौनों के जरिए पढ़ाने का अंदाज इतना अनोखा कि गणित से बिदकने वाले बच्चे लिख-पढ़कर इंजीनियर बन गए। रोहतास जिला के बिक्रमगंज में रजनीकांत श्रीवास्तव का आशियाना है। उसी दायरे से गरीब विद्यार्थियों के लिए उम्मीद की एक किरण निकलती है। कभी खुद रजनीकांत को ऐसे ही किसी गुरु की तलाश थी, लेकिन बदकिस्मती, जो उनकी उम्मीद पूरी नहीं हुई। घर की तंगहाली के बीच वे तपेदिक (टीबी) के ऐसे मरीज हुए कि आइआइटी की प्रवेश परीक्षा तक नहीं दे पाए। इंजीनियर बनने की अधूरी हरसत कलेजे में टीस बन गई और उसी के साथ मजबूरों को आगे बढ़ाने का विचार आया। माध्यम बना गणित, लेकिन कमाई का ख्याल तक नहीं। विद्यार्थियों की जिद है, लिहाजा पारिश्रमिक के रूप में प्रति माह एक रुपया लेते हैं। यह गुरु-दक्षिणा सांकेतिक है। रामानुजम और वशिष्ठ नारायण सिंह को अपना आदर्श मानने वाले रजनीकांत श्रीवास्तव कहते हैं कि अपने जैसे उन बच्चों को पढ़ा-लिखा कर काफी संतुष्टि मिलती है, जो मार्गदर्शन नहीं मिलने से प्राय: पिछड़ जाते हैं। मैं रास्ता बताने वाला हूं, गुरु नहीं। यह तो विद्यार्थियों का प्रेम है, जो मेरा इतना सम्मान करते हैं। कबाड़ के खिलौनों से पढ़ाने का तरीका लाजवाब : गणितीय चुटकुला सुनाकर रजनीकांत बच्चों को सवालों के सूत्र में बांध लेते हैं। उसके साथ ही कबाड़ से बनाए गए खिलौने के माध्यम से पाठ को उनके दिमाग में उतार देते हैं। दरअसल, संसाधनों की कमी से कबाड़ उनके लिए विकल्प बन गया। ट्यूबलाइट, माचिस की तिल्ली, साइकिल के ट्यूब और कागज आदि से खिलौनानुमा आकृति तैयार कर वे गणित के जटिल सवालों का हल निकालते हैं। लघुतम समापवर्तक और महतम समापवर्तक, रोमन अंक के कांसेप्ट को खिलौनों से समझाने का उनका तरीका अद्भुत है। वे कहते हैं कि खिलौने बच्चों की आंखों में चमक भर देते हैं और फिर उनका दिमाग पाठ को लपक लेता है। कई होनहारों को पहुंचाए मुकाम पर : रजनीकांत की पाठशाला से निकलकर श्रीराम गुप्ता ने भागलपुर इंजीनियरिग कॉलेज तक पहुंचे। वहां से बीटेक करने के बाद वे अभी हैदराबाद में भेल की इकाई में कार्यरत हैं। बिक्रमगंज अनुमंडल के मोथा निवासी उनके पिता सब्जी की दुकान लगाया करते थे। कोआथ-मझौली निवासी किसान वीर बहादुर स्वरूप के पुत्र मुकेश स्वरूप ने एनआइटी सिल्चर से बीटेक किया। वे आज ओएनजीसी अंकलेश्वर (गुजरात) में अधिकारी हैं। पान विक्रेता राजकुमार साह के पुत्र सचिन, दावथ डिहरा के किसान के पुत्र विवेक, मुंजी के मजदूर के पुत्र नवीन पुष्कर आदि इंजीनियरिग की पढ़ाई कर अच्छे पैकेज पर नामचीन कंपनियों में काम कर रहे हैं। रजनीकांत से पढ़कर ही आइआइटी गुवाहाटी में गौरव, एनआइटी अगरतला में अक्षत राज, साक्षी कुमारी, मनीष आदि बीटेक करने पहुंचे हैं।


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