तुलसी में जी उठी वृंदा
सासाराम, निज संवाददाता :
'मगन भई तुलसी राम गुन गाई के, सब कोई चली डोली-पालकी रथ जुड़वाये के, साधु चले पांव-पैंया, चींटी सो बचाई के, मगन भई तुलसी राम गुन गाई के'। कार्तिक शुक्ल एकादशी शनिवार रात्रि को तुलसी विवाह परंपरागत रूप में पूरे विधि-विधान के साथ संपन्न हुआ। मंदिरों, घरों के आंगन, छतों पर तुलसी चबूतरे को मण्डप की भांति सजाया गया। जहां भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह संपन्न हुआ। पद्म पुराण में वर्णित है कि तुलसी का पौधा वृंदा नाम की स्त्री थी, जिनका विवाह शालीग्राम के साथ हुआ था। प्रबोधनी एकादशी के दिन माना जाता है कि तुलसी के पौधे में वृंदा का वास होता है। श्रद्धालुओं के आह्वान पर वृंदा प्रतीकात्मक तौर पर तुलसी के पौधे में पुनर्जीवित हो उठती है। अत: श्रद्धालु पूरे भक्तिभाव से आज तुलसी का विवाह कराते हैं। पुराणों में तुलसी विवाह को कन्यादान के समान माना गया है।
तुलसी का पौधा श्रेष्ठ एंटिबायटिक
जानकार मानते हैं कि तुलसी विवाह की परंपरा का उद्देश्य घर-आंगन में तुलसी के पौधे के रोपण संवर्धन को बढ़ावा देना है। मेडिकल साइंस भी मानता है कि तुलसी के पत्तों में श्रेष्ठ एंटिबायटिक के गुण होते हैं। तुलसी के पौधे पर्यावरण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। तुलसी विवाह को कन्यादान से जोड़ समाज में बेटियों की महत्ता को भी बताया गया है।
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर