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कोरोनाकाल में श्रमिकों की आवाज बन गए सौरभ सिंह

कहते हैं जब इस जिदगी में इंसान इंसान के काम नहीं आया तब उसकी जिदगी बेकार मानी जाती है। जब इस वैश्विक महामारी कोरोना में देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया त्राहिमाम कर रही उठी थी। जब देश के कोने-कोने में रह रहे रूपौली के श्रमिकों के सामने भूख प्यास घर आने की समस्या मुंह बाए खड़ी थी तब इस प्रखंड का एक नौजवान उनके साथ कदम-से-कदम मिलाकर खड़ा दिखाई दिया तथा भरसक मदद करने का लगातार प्रयास करता रहा। इतना ही नहीं उन श्रमिकों के घर जा-जाकर उन्हें राहत-सामग्री भी उपलब्ध कराते रहे।

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 Aug 2020 11:42 PM (IST)Updated: Fri, 14 Aug 2020 11:42 PM (IST)
कोरोनाकाल में श्रमिकों की आवाज बन गए सौरभ सिंह

रूपौली (पूर्णिया)। कहते हैं जब इस जिदगी में इंसान, इंसान के काम नहीं आया, तब उसकी जिदगी बेकार मानी जाती है। जब इस वैश्विक महामारी कोरोना में देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया त्राहिमाम कर रही उठी थी। जब देश के कोने-कोने में रह रहे रूपौली के श्रमिकों के सामने भूख, प्यास, घर आने की समस्या मुंह बाए खड़ी थी, तब इस प्रखंड का एक नौजवान उनके साथ कदम-से-कदम मिलाकर खड़ा दिखाई दिया तथा भरसक मदद करने का लगातार प्रयास करता रहा। इतना ही नहीं उन श्रमिकों के घर जा-जाकर उन्हें राहत-सामग्री भी उपलब्ध कराते रहे। यह युवक भौवा प्रबल के ईंजीनियर सौरभ सिंह हैं। आज के युवक पढ़-लिखकर नौकरी की तलाश में लग जाते हैं, परंतु सौरभ ने ईंजीनियरिग की डिग्री के बाद भी नौकरी की ओर कदम नहीं बढ़कर, वे सामाजिक सेवा की ओर ही अपना पग आगे बढ़ाया। पिछले कई सालों से सामाजिक सरोकार की ओर लगे हुए थे। चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या अन्य समस्या, वे हमेशा आगे दिखे। उनका तब असली चेहरा सामने आया, जब इस वैश्विक महामारी से पूरी दुनिया हाहाकार कर उठी। प्रखंड ही नहीं, बल्कि पूरे जिले के लाखों श्रमिक भूख-प्यास-घर आने की समस्या में जूझने लगे थे। तब उनके द्वारा उन श्रमिकों की मदद करने की ठानी तथा इस देश के जिस कोने में भी उनके दोस्त, शुभचितक थे, सभी को उन्होंने अलर्ट किया तथा उनके माध्यम से श्रमिकों की मदद करने लगे। सबसे ज्यादा उनके द्वारा महाराष्ट्र, राजस्थान, केरल, चेन्नई, पंजाब आदि के श्रमिक लाभान्वित हुए। श्रमिकों के फोन आते ही वे उनकी मदद के लिए संबंधित जगह में रह रहे अपने शुभचितकों को मदद के लिए कहते और उन्हें मदद मिल जाती। उन्हें घर तक आने के लिए अनेक सुविधाएं उपलब्ध कराया जाता रहा। इतना ही नहीं वे उन श्रमिकों के घर जाकर भी उन्हें राहत-सामग्री उपलब्ध कराते दिखे। उनके इस नेक कार्य के लिए आज भी यहां के श्रमिक उनका नाम लेते नहीं थकते हैं। श्रमिक कहते हैं कि वे प्रदेश में किस मुसीबतों का सामना किए हैं, वे ही जानते हैं, परंतु सौरभ सिंह उनके लिए तिनके का सहारा जैसे साबित हुए। मौके पर सौरभ सिंह कहते हैं कि जरूरी नहीं कि पॉकेट में पैसे रहने के बाद ही किसी की मदद की जा सके। अगर सच्ची लगन होती है तो मददगार स्वयं आ जाते हैं। उन्होंने देश के कोने-कोने में रहने वाले जिन-जिन संबंधियों को श्रमिकों के लिए कुछ करने को कहा, वे ना ना किए,वे तो बस माध्यम थे। जब इंसान में जन्म लिए हैं तो इंसानियत दिखाना सबका कर्तव्य बनता है। श्रमिक उन्हें दुआएं देते नहीं थक रहे हैं । कुल मिलाकर सौरभ सिंह आज स्वतंत्रता के सारथी बने हुए हैं, हर दबे-कुचले-जरूरतमंद इंसानों की मदद करना ही उनकी नियति बन गई है।

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