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भारत उर्वरकों का प्रयोग करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश: डा. पारस नाथ

भोला पासवान शास्त्री कृषि कालेज में कृषि उपादान विक्रेताओं के लिए समेकित पोषक तत्व प्रबंधन विषय पर 15 दिवसीय सर्टिफिकेट कोर्स के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन चल रहा है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Oct 2021 07:10 PM (IST)Updated: Sat, 23 Oct 2021 07:10 PM (IST)
भारत उर्वरकों का प्रयोग करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश: डा. पारस नाथ
भारत उर्वरकों का प्रयोग करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश: डा. पारस नाथ

जागरण संवाददाता, पूर्णिया: भोला पासवान शास्त्री कृषि कालेज में कृषि उपादान विक्रेताओं के लिए समेकित पोषक तत्व प्रबंधन विषय पर 15 दिवसीय सर्टिफिकेट कोर्स के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन चल रहा है। इस दौरान बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर से मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग के विशेषज्ञों द्वारा प्रषिक्षणाथियों को विभिन्न विषयो पर व्याख्यान दिया गया। साथ ही पावर प्वांइट प्रजेंटेशन के माध्यम से जानकारी प्रदान की गई। प्रतिभागियों को प्रायोगिक कार्य हेतु कृषि विज्ञान केंद्र का भ्रमण भी कराया गया।

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इस दौरान तकनीकी सत्र में प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डा. पारस नाथ ने उर्वरक के संबंध में विस्तार पूर्वक जानकारी दी। प्राचार्य ने कहा कि भारत चीन के बाद दुनिया में उर्वरकों का प्रयोग करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है। 1960 के दशक में पहली बार हरित क्रांति के बाद, भारत खुद को विश्व के समक्ष अग्रणी खाद्य उत्पादकों के रूप में स्थापित किया और अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया। अब सरकार के द्वारा संतुलित उर्वरक के प्रयोग के लिए कृषि उपादन विक्रेताओ को प्रशिक्षण प्रदान कर रही है।

सिचाई अनुसंधान केंद्र अररिया के वरीय मृदा वैज्ञानिक डा. विजयकांत मिश्रा ने प्रतिभागियों को उर्वरकों में मिलावट की पहचान के बारे में जानकारी प्रदान की। सिचाई अनुसंधान केन्द्र अररिया के मृदा वैज्ञानिक डा. अनिल कुमार ने उर्वरक निर्माताओं, आयातकों और डीलरों के अनिवार्य पंजीकरण के बारे में बताया।

मृदा वैज्ञानिक डा. पंकज कुमार यादव ने अपने व्याख्यान में बताया कि 1950-1951 की तुलना में प्रति व्यक्ति खेती योग्य भूमि लगभग पांच गुना कम हो गई है। बिहार में प्रति हेक्टेयर उर्वरक की औसत खपत 196 किलोग्राम है जो राष्ट्रीय खपत से करीब 66 किलोग्राम अधिक है। मखाना वैज्ञानिक डा. अनिल कुमार ने उत्पादकता को बढ़ाने के लिए मखाना आधारित तकनीकियों को विस्तार पूर्वक बताया। डा. तपन गोराई मृदा विज्ञान कृषि रसायन विभाग ने मिट्टियों एवं पौधों के समुचित वृद्धि एवं विकास के बारे में बताया।


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