कार्यशाला में दी गई प्रकाश व ध्वनि के महत्व की जानकारी
पूर्णिया। पूर्वी क्षेत्र सास्कृतिक केंद्र कोलकाता सांस्कृतिक मंत्रालय भारत सरकार एवं कला भवन न
पूर्णिया। पूर्वी क्षेत्र सास्कृतिक केंद्र कोलकाता सांस्कृतिक मंत्रालय भारत सरकार एवं कला भवन नाट्य विभाग के सहयोग से चल रहे 15 दिवसीय प्रस्तुति परक नाट्य कार्यशाला में भारतेंदु नाट्य अकादमी से आए दीपक कुमार ने नाटकों में प्रकाश और ध्वनि की आवश्यकता की जानकारी दी। नाटक के दौरान कौन-सा प्रकाश कब प्रयोग किया जाना चाहिए, इसकी पूर्ण जानकारी प्रशिक्षु कलाकारों को दी। उन्होंने प्रशिक्षु कलाकार को ध्वनि के फ्लो के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि नाटकों में प्रकाश का बहुत ही महत्व है। कार्यशाला की समाप्ति के उपरात समापन समारोह के कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें सभी प्रतिभागी को प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। उक्त अवसर पर कला भवन के संयुक्त सचिव दीनानाथ सिंह, चंद्रकात राय, विरेंद्र घोष, डॉ राकेश सिंह, अजीत कुमार सिंह, राम पुकार, कार्यशाला के संयोजक विश्वजीत कुमार सिंह, नगर निगम के वार्ड पार्षद राणा रणजीत सिंह ने सभी को प्रमाण पत्र दिया। उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों ने प्रस्तुति पर नाट्य कार्यशाला को सराहा। प्रमाण पत्र वितरण के उपरात प्रोडक्शन में तैयार किए गए नाटक राजा जी का फोन का रिहर्सल शो किया गया। इसके लेखक विशभर कुमार भाटिया हैं और इसे निर्देशित भारतेंदु नाट्य अकादमी के दीपक कुमार ने किया। नाटक राजा जी का फोन मूल रूप से जमीन विवाद को दर्शाता है। इस नाटक में विशभर और केवल दो ऐसे पात्र हैं जो जमीन हड़पने की कोशिश में हमेशा लगे रहते हैं। विशभर पूर्व में मृत हुए राजा गजेंद्र सिंह चौहान का फोन चुरा कर विवादित जमीन में काफी अंदर छुपा देते हैं और बाद में साजिश के तहत उसकी खुदाई भी करवाते हैं। खुदाई में मजदूरों के हाथों फोन प्राप्त हो जाता है जिसकी काफी चर्चा होने लगती है। इस प्रकार नाटक में जो दूसरे पात्र केवल हैं वह भी फंस जाते हैं नाटक के अंतिम में मंत्री का बेटा उसकी हत्या कर देता है और उसके साथ ही उस फोन को भी समाप्त कर दिया जाता है इस प्रकार यह नाटक राजाजी के फोन का समापन होता है।