बेबशी का मंजर और साथ छोड़ रही उम्मीदों का दामन
पूर्णिया। सीमांचल में आई भीषण बाढ़ ने 30 लाख से अधिक आबादी को बिलखने को मजबूर कर दिया। कइयों को अपने जुदा हो गये तो किसी का न घर बचा न घर में रखा सामान।
पूर्णिया। सीमांचल में आई भीषण बाढ़ ने 30 लाख से अधिक आबादी को बिलखने को मजबूर कर दिया। कइयों को अपने जुदा हो गये तो किसी का न घर बचा न घर में रखा सामान। मिट्टी के कोठी के साथ अनाज भी पानी में समा गये तो खेतों में लगी फसल भी नहीं बच पाई। विकास के सारे निशान भी पानी के तेज धार ने धो दिए। सड़क, पुल-पुलिये सब क्षत-विक्षत हैं। आवागमन-रोजगार सब ठप। भूख, गम, आंसू के बीच पीड़ितों के पास बची थी तो बस उम्मीदें। पानी घटने के बाद पीड़ित अपने उजड़े घरों में इसी उम्मीद से लौटे कि सरकार उनकी मदद करेगी। लेकिन जब सरकार ने मुआवजे की घोषणा की तो पीड़ितों की उम्मीदें भी तार तार हो गये। सरकार बाढ़ पीड़ितों को मात्र छह हजार रुपये मुआवजा प्रदान कर रही है। अब पीड़ित यह नहीं समझ पा रहे कि इस रकम से वे अपनी ¨जदगी की शुरूआत कैसे करें।
सीमांचल के पूर्णिया, किशनगंज, अररिया और कटिहार में महानंदा, परमान, कनकयी आदि तांडव मचाने के बाद अब शांत हो गई है। लेकिन सिर्फ एक सप्ताह में ही बाढ़ के पानी ने ऐसा कहर ढाया कि हजारों परिवार की ¨जदगी भर की कमाई साफ हो गई तो लाखों लोग बेघर हो गये। प्रशासनिक आंकड़ों को ही सही मान लें तो सिर्फ पूर्णिया जिला में 10 लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। जबकि पूर्णिया में सिर्फ एक अनुमंडल प्रभावित हुए थे। किशनगंज, अररिया और कटिहार की स्थिति इससे कहीं अधिक भयावह थी। लाखों लोगों ने सुरक्षित स्थानों पर जाकर अपनी जान बचाई। पानी उतरने के बाद सभी अपने अपने घर लौट गये हैं तथा बाढ़ के पानी द्वारा दिए गए दर्द के निशान को साफ कर एक बार फिर से नई ¨जदगी शुरू करने की जद्दोजहद में जुट गए हैं। बोझिल कदमों से अपने-अपने घर लौटने वक्त उनके साथ मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री द्वारा की गई घोषणाओं का संबल था।
बाढ़ के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि पीड़ितों का घर वे बनाएंगे। उधर, प्रधानमंत्री के दौरे से भी पीड़ितों को बड़ी मदद की आस थी। लेकिन जब आस के सहारे तिनका-तिनका जोड़ कर आशियाना बनाने की जुगत में वे लगे हैं तो बीडीओ साहब छह-छह हजार उनके खाते में भेज रहे हैं।
बायसी चरैया के मो सुलेमान कहते हैं कि बाढ़ पहले भी आती थी लेकिन पानी धीरे-धीरे बढ़ता था। तब तक वे लोग घर से जरूरी सामान निकाल लेते थे। लेकिन इस बार अचानक घर में पानी घुसा और थोड़ी ही देर में कमर भर पानी हो गया। किसी तरह जान लेकर भागे। सब कुछ घर में छुट गया तथा घर के साथ ही पानी में बह गया। सोचा था मुआवजा राशि मिलेगी तो ¨जदगी पटरी पर आ जाएगी। पिछली बार इससे कम क्षति हुई थी तो छह हजार दिए गए थे लेकिन इस बार तो सब कुछ उजड़ गया है। बावजूद सरकार सिर्फ छह हजार दे रही है। ऐसे में समझ नहीं आ रहा है करें तो क्या करें। यह पीडा अब्दुल, शहाबुद्दीन, रूस्तम, मंजर आलम, मुर्शीद आदि सैकड़ों पीड़ितों का है। पीड़ितों को न सर छुपाने के लिए छत है न खाने के लिए घर में अनाज। सरकारी राहत भी बस ऊंट के मुंह में जीरा भर है। ऐसे में उनके समक्ष पलायन के सिवा कोई और रास्ता नजर नहीं आ रहा। बाढ़ पीड़ित कभी अपनी किस्मत तो कभी दुनिया बनाने वाले को कोसने को मजबूर हैं।