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भीख मागकर भी लोग करते हैं लोक आस्था का महापर्व

पूर्णिया। लोक आस्था का प्रतीक महापर्व छठ की अपनी ही महिमा है। पर्व करने वाले लोग कहते हैं कि अस

By JagranEdited By: Published: Sat, 10 Nov 2018 08:40 PM (IST)Updated: Sat, 10 Nov 2018 08:40 PM (IST)
भीख मागकर भी लोग करते हैं लोक आस्था का महापर्व
भीख मागकर भी लोग करते हैं लोक आस्था का महापर्व

पूर्णिया। लोक आस्था का प्रतीक महापर्व छठ की अपनी ही महिमा है। पर्व करने वाले लोग कहते हैं कि असाध्य रोग व कष्ट का निवारण छठ व्रत करने से हो जाता है। सुनी पड़ चुकी गोद किलकारियों से आबाद हो जाती है और लोग रंक से राजा बन जाते हैं। छठ पर्व की महिमा जितनी महान है, व्रत उतना ही कठिन है। इस पर्व में पवित्रता, त्याग व हठयोग की भाति ही तपस्या। लेकिन मनवाक्षित फल देने में दिनकर दीनानाथ कभी व्रतियों को निराश नहीं करते। परिणाम है कि जिन्हें कुछ नहीं है उनका क्या। और जिन्हें सबकुछ है उनमें से भी कई ऐसे लोग हैं जो भीख मागकर छठ पर्व करते हैं। भीख मागने का कारण बताते हुए बिमला देवी, मीना देवी कहती है कि पूजा से पहले लोग स्नान आदि से निवृत्त होकर भीख मागने के लिए निकलते हैं। यह दीनता की परम निम्न श्रेणी है। इससे दिनकर दीनानाथ द्रवित होकर भक्तों को मनवाक्षित फल प्रदान करते हैं। लेकिन यह दिखावे के तौर पर नहीं मन से हो। जब इंसान मन से दीन हो जाता है, तब उसे लगता है कि अब मेरा कोई सहारा नहीं बचा है। तब भगवान स्वयं सहारा बन जाते हैं। वहीं भीख मागकर छठ करने वाली श्रीनगर की रानी देवी व ललिता देवी का मानना है कि यह पर्व इतना महत्वपूर्ण है कि अगर कुछ नहीं हो तो भीख मागकर भी इस पर्व को किया जा सकता है। महंगाई के इस दौर में त्योहार महंगा तो हो गया है। नहीं तो पहले इस महापर्व में ज्यादा खर्च नहीं होता था। आज भले ही सूप, डलिया, फल, शकरकंद, सिंघाड़ा, सुथनी आदि महंगा हो गया है लेकिन पूर्व में यह काफी सस्ता मिल जाता था। टाब, नींबू, ईख, हल्दी, मूली, बैगन, शकरकंद केला, नारियल लोगों को एक दूसरे से सहज ही मिल जाता था। व्रतियां कहती हैं कि महापर्व में जरूरी है पवित्रता व दीनता से भगवान भाष्कर के सम्मुख खड़े होने का। दीन बनकर जो खड़े होते हैं उनकी हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

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