डीटीओ साहब- जिले में मौत बनकर दौड़ रहे हैं ओवरलोड वाहन
पूर्णिया। एक सितंबर से पूरे देश में लागू हुए संशोधित सख्त यातायात नियमों की जिले के बस व ऑट
पूर्णिया। एक सितंबर से पूरे देश में लागू हुए संशोधित सख्त यातायात नियमों की जिले के बस व ऑटो चालक अनदेखी कर खुलेआम यात्रियों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। जिला परिवहन विभाग या यातायात पुलिस ऐसे वाहनों के खिलाफ कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठा रही है। सबसे खास बात तो यह है कि बिहार राज्य पथ परिवहन निगम की बसें भी यात्रियों को छत पर ही बैठा कर यात्रा करवा रही हैं। बस मालिकों पर कार्रवाई नहीं करना कई सवाल खड़े कर रहा है।
बदले यातायात के सख्त नियमों में बसों में क्षमता से अधिक यात्री बैठाने पर प्रत्येक सवारी एक हजार रुपये जुमाने का प्रावधान है। बावजूद इसके अभी तक पूर्णिया बस स्टैंड से खुलने वाली भागलपुर, फारबिसगंज, कटिहार व सहरसा की बसों की छतों पर यात्रियों को बैठ कर यात्रा करते हमेशा देखा जा सकता है। ओवरलोड पर कार्रवाई की सख्त जरूरत
जिला मुख्यालय से विभिन्न मागरें पर चलने वाली लगभग सभी यात्री वाहनों का संचालन ओवरलोड के बाद ही होता है। आठ सीट वाले ऑटो पर 12-14 लोगों को बिठाया जाता है। जबकि 42 सीट वाली बस मे 60 से 70 यात्रियों को बैठाया जाता हैं। टेम्पो, टाटा 407, कमाडर, बस, सिटी राइड सहित अन्य वाहनों पर यात्रियों को भेड़-बकरियों की तरह लाद दिया जाता है। बावजूद परिवहन विभाग इन पर कोई कार्रवाई नहीं करता है।
बसों में सुरक्षा मानकों की उड़ रहीं धज्जियां
मोटरयान अधिनियम 1988 व समय-समय पर यात्रियों की सुरक्षा के लिए बने मानकों की पूरी तरह अनदेखी होती है। जिले में चलनेवाले लगभग सभी यात्री वाहनों में न्यूनतम सुरक्षा के उपाय भी उपलब्ध नहीं है। विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देश के अनुसार, इन यात्री वाहनों में प्राथमिक चिकित्सा के लिए फस्ट एड बॉक्स होना चाहिए। जिससे किसी दुर्घटना होने पर यात्रियों को प्राथमिक उपचार मिल सके। आगजनी से बचाव के लिए अग्निशमन यंत्र होना जरूरी है। लेकिन जिले के सभी यात्री वाहनों में ये साधन नदारद देखे गए हैं। बसों में आपातकालीन खिड़कियों की हालत बदतर रहती है। लगभग सभी वाहनों में लगे आपातकालीन खिड़कियों के शीशे जाम रहते हैं। बिहार राज्य पथ परिवहन निगम की अधिकतर बसें अपनी उम्र सीमा के बाद भी यात्री सेवा दे रही है। किराया सूची के सार्वजनिक नहीं होने से नए यात्रियों से अधिक भाड़ा वसूला जाता है। बावजूद परिवहन विभाग यात्री वाहनों में किराया-सूची लगवाने को लेकर उदासीन रवैया अपनाता है। महिलाओं की होती है फजीहत
अमूमन प्रत्येक यात्री वाहन में महिला यात्रियों के लिए सीटें रिजर्व होती है। लेकिन जिले से परिचालित हो रही लगभग बसों में इस नियम की अनदेखी हो रही है। बस संचालक अपने आमदनी के हिसाब से सीटों की प्राथमिकता तय करते हैं। कई बसों में भी महिला सीटों पर पुरुषों को स्थान दे दिया जाता है। लंबी दूरी के यात्री मिलते ही सीटों का आरक्षण ताक पर रख दिया जाता है। कमोबेश बुजुगरें व दिव्यागों का भी यही हाल है। इनको सीट उपलब्ध कराने में भी बस संचालक मनमानी करते हैं। क्या कहते हैं यात्री
फारबिसगंज यात्री राजकिशोर राज कहते हैं कि यात्रा के दौरान किराया को लेकर अक्सर बहस होती है। किराया की तुलना में यात्रियों को सुविधा नहीं मिलती। बस संचालक सिर्फ किराया वसूलने तक आपसे नम्र व्यवहार रखते हैं। इसके बाद आपकी परेशानी से इनका कोई मतलब नहीं रहता।
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सहरसा के यात्री अजय कुमार ने कहा कि बसों में कभी फस्ट एड बॉक्स नहीं रहता है। अग्निशमन यंत्र तो दूर की बात है। बसों में लगे आपातकालीन खिड़किया जाम रहती है। किसी भी बस में सुरक्षा के मानकों का पालन नहीं होता है। विभागीय आदेश सिर्फ कागजों में सिमट कर रख दिया जाता है। अधिकारी सुध ले तो भय से कुछ सुधार भी हो सकता है। कोट - बदले नियमों के बाद से ओवरलोड वाहनों के खिलाफ जिला परिवहन विभाग द्वारा लगातार कार्रवाई की जा रही है। बस व आटो की ओवरलोडिंग को लेकर भी जल्द ही अभियान चला कर जुर्माना वसुल किया जाएगा। साथ ही एक बार ओवरलोडिंग में पकड़े जाने के बाद दूसरी बार में बस का परमिट रद्द कर जल्द ही नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी: विकास कुमार, डीटीओ, पूर्णिया