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ईट भट्ठा से निकल रहे धुआं से पर्यावरण को खतरा

पूर्णिया। प्रखंड क्षेत्र में लगभग दो दर्जन से अधिक ईंट भट्ठा चल रहे हैं और ईट भट्ठा के चिमनियो

By JagranEdited By: Published: Sat, 07 Jul 2018 06:43 PM (IST)Updated: Sat, 07 Jul 2018 06:43 PM (IST)
ईट भट्ठा से निकल रहे धुआं से पर्यावरण को खतरा
ईट भट्ठा से निकल रहे धुआं से पर्यावरण को खतरा

पूर्णिया। प्रखंड क्षेत्र में लगभग दो दर्जन से अधिक ईंट भट्ठा चल रहे हैं और ईट भट्ठा के चिमनियों से निकले वाले धुआं पर्यावरण को पूरी तरह से दूषित कर रहा है। सरकार द्वारा निर्माण के लिए आधारित मापदंडों की धज्जियां उड़ाते हुए चिमनी मालिक सरकार को लाखों का चूना लगा रहे हैं। कहने को तो चिमनी मालिक कुछ टैक्स देते हैं परंतु अफसरों की साठगांठ के चलते राजस्व का लाखों रुपये का चूना लगाया जा रहा है। वहीं ईंट भट्ठों पर बगैर रायल्टी जमा किए ही मिट्टी की खुदाई हो रही है। सुबह होते ही ईंट भट्ठों के आसपास जेसीबी का शोर गूंजने लगता है मगर कोई भी जिम्मेदार अधिकारी द्वारा इस पर रोक लगाने की कोशिश नहीं की जाती है। स्थानीय लोगों की मानें तो पुलिस की मिलीभगत से मिट्टी खुदाई की इजाजत मिलती है।  जिस खेत में ईंट भट्ठा चिमनी का निर्माण होता है उसके इर्द-गिर्द जमीन अपना उपजाऊपन खो देते हैं लाचारी में किसान कम कीमत पर ईंट भट्ठा वाले को जमीन बेचने को मजबूर हो जाते हैं। इसके अलावा चिमनी से जो धुआं निकलता है उसे पर्यावरण में असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाती है लोग बीमारी से ग्रस्त भी होने लगे हैं। पेड़ पौधे पर इसका प्रभाव पड़ता है पेड़ पौधे सूखने लगते हैं तथा नारियल के पेड़ पर इसका ज्यादा असर होता है। नारियल में लगे फल समय से पहले नीचे गिरने लगते हैं। वहीं ईट भट्ठा में काम करने वाले लगभग एक तिहाई मजदूर बाल मजदूर होते हैं। जिसका शोषण ईट भट्ठा मालिक करते हैं। इस नाबालिग मजदूर को भी एक गिरोह के जरिए ईट भट्ठा में पहुंचाया जाता है। स्वास्थ्य विभाग भी इस उद्योग के लिए गांव से बाहर की बात की है। गांव के अंदर रहने वाले लोगों में बीमार होने की संभावना काफी बढ़ गई है। इस संबंध चिकित्सक डॉ. एससी झा ने बताया कि चिमनी से जो धुआं निकलता है। वह धुआं कोयले के जले आग से होती है। धुआं के साथ छोटे-छोटे कण जिसे हम नंगी आंखों से देख नहीं पाते है वही सांस के द्वारा हमारे अंदर प्रवेश करते हैं और हमें बीमार कर देते हैं।

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