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जैविक उद्यान में वन्य जीवों पर संकट, केज प्रबंधन में प्रशासन विफल

मृत्युंजय मानी, पटना। दो गैंडे की मौत के बाद भी संजय गांधी जैविक उद्यान के 'केज प्रबंधन' पर

By Edited By: Published: Sat, 05 Sep 2015 02:54 AM (IST)Updated: Sat, 05 Sep 2015 02:54 AM (IST)

मृत्युंजय मानी, पटना। दो गैंडे की मौत के बाद भी संजय गांधी जैविक उद्यान के 'केज प्रबंधन' पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। अगर प्रबंधन की स्थिति न बदली तो अन्य गैंडों के जीवन पर भी खतरा मंडरा रहा है। इसका असर बाघ, शेर, जिर्राफ सहित अन्य वन्य प्राणियों पर भी पड़ सकता है। बावजूद इसके उद्यान प्रशासन नहीं चेत रहा है। तेंदुए की मौत के बाद उद्यान के पूर्व निदेशक रणवीर सिंह की ओर से 14 वर्ष वर्ष अपनाई गई केज प्रबंधन नीति का पालन फिलहाल बंद है।

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पूर्व निदेशक के समय गैंडा केज सहित अन्य सभी केज की मिट्टी को खेत की तरह पलटा जाता था। उसमें चूना आदि डालकर उसे कीटाणु मुक्त बनाया जाता था। अब यह परंपरा खानापूर्ति का रूप ले चुकी है। यह व्यवस्था बाघ, शेर, हिरण आदि केजों के लिए भी थी। अभी ऐंथ्रोन का असर गैंडा केज में है। उद्यान प्रशासन अब गैंडा केज की मिट्टी को हटाकर दूसरे स्थान से मिट्टी लाकर डालने की तैयारी है। नियमित रूप से मिट्टी पलटने की परंपरा जारी रहती तो ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होती। गैंडा केज में जमा पानी भी पहले बदल दिया जाता था।

संकट में एशिया का प्रथम जैविक उद्यान-

गैंडा प्रजनन एवं संख्या के मामले में एशिया में प्रथम स्थान का दर्जा प्राप्त करने वाला संजय गांधी जैविक उद्यान इन दिनों संकट में है। विश्व में अमेरिका के सेंट डियागो जू के बाद पटना का स्थान दूसरे नंबर पर है। यही नहीं देशभर के चिड़ियाघर मनपसंद वन्य प्राणि के बदले में गैंडा की मांग कर रहे हैं। जबकि यहां स्थिति ठीक उल्टी है। ऐसे हाल में यहां के प्रबंधन पर सवाल उठ रहा। उद्यान में आठ माह के अंदर दो गैंडा की मौत हो गई। हाल में मरी 'बबली' पहले बीमार हुई। आठ माह पहले अमेरिका से आए 'गैरी' नामक गैंडा की एंथ्रेक्स नामक रोग की चपेट में आने से मौत हो गई थी।

अब दस गैंडे ही बचे-

चिड़ियाघर में कुल 14 गैंडे थे। इनमें से दो गैंडे अदला-बदली योजना के तहत मैसूर चिड़ियाघर भेज दिए गए। दो गैंडे की मौत होने से संख्या दस पर आ गई है। स्थानीय उद्यान में पहली बार 1979 में एक जोड़ा गैंडा लाया गया था। फिर 1982 में बेतिया से एक नर गैंडा लाया गया। 1988 में गैंडा का पहली बार प्रजनन हुआ। वर्ष 2001 से प्रजनन में लगातार वृद्धि होने लगी। इसके बाद यहां से दिल्ली, मैसूर, अमेरिका सहित देश के कई चिड़ियाघरों को गैंडा भेजे गए हैं।


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