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दुनिया को शांति व अहिंसा का जिसने दिया संदेश वह धरती ढूंढ़ रही महापुरुषों को, कहीं नहीं दिखती हैं मूर्तियां

वैशाली जन का प्रतिपालक गण का आदि विधाता। जिसे पूजता विश्व आज उस प्रजातंत्र की माता। रुको एक क्षण पथिक इस मिट्टी पर शीश नवाओ राज सिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ। भगवान महावीर के इस पावन धरती पर जन्म हुआ।

By Prashant KumarEdited By: Published: Wed, 17 Feb 2021 04:53 PM (IST)Updated: Wed, 17 Feb 2021 04:53 PM (IST)
वैशाली के त्रिमूर्ति चौक पर स्थित भगवान बुद्ध की प्रतिमा। जागरण।

[रवि शंकर शुक्ला] हाजीपुर। वैशाली जन का प्रतिपालक, गण का आदि विधाता। जिसे पूजता विश्व आज उस प्रजातंत्र की माता। रुको एक क्षण पथिक इस मिट्टी पर शीश नवाओ, राज सिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ। वैशाली के संदर्भ में राष्ट्रकवि दिनकर की यह पंक्तियां आज भी वैशाली की फिजाओं में गुंज रही है। वहीं भगवान महावीर के इस पावन धरती पर जन्म हुआ।

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गौतम बुद्ध ने इस धरती को अपनी कर्मभूमि के तौर पर चुना। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद समेत कई महापुरुषों की यादों से यह धरती जुड़ी है। अपनी थाथी पर इठलाने वाली इस महान धरती की त्रासदी यह है कि दूर-दूर तक कहीं महापुरुषों की मूर्तियां देखने को नहीं मिलती। हद तो यह है कि जिन महापुरुषों से देश-दुनिया में वैशाली को ख्याति मिली, जिला मुख्यालय हाजीपुर में ना तो उनके नाम पर किसी चौक-चौराहे का नामाकरण हुआ और ना ही कहीं मूर्ति ही स्थापित की गई। वहीं कर्मभूमि पर गौतम बुद्ध की मूर्ति भी शहर के इंट्री प्वाइंट पर नहीं स्थापित की गई।

काफी संकरे जगह त्रिमूर्ति चौक पर लगा दी गई। वहीं देश की आजादी के आंदोलन में बलिदान देने वाले नायकों को सम्मान देने में भी यहां ना तो वैशाली के लोगों ने गंभीरता दिखाई और ना ही सरकारी स्तर पर ही पहल की गई। लाखों रुपये की लागत से सांसद निधि से बनवाई गई महापुरुषों की एक दर्जन से अधिक मूर्तियां यहां दशकों से धूल फांक रही है।

गौरव सुन आते लोग वैशाली और लौट जाते मायूस होकर

किसी भी महान धरती पर आने वाले लोग शहर के इंट्री प्वाइंट पर आते ही यह जानना चाहते हैं कि महापुरुष दिखने में कैसे थे ? देश-दुनिया से वैशाली आने वाले लोग भी यहां आते ही सबसे पहले चारों ओर देखते हैं कि भगवान महावीर एवं गौतम बुद्ध की मूर्तियों को ढूंढ़ते हैं। काफी ढूंढऩे पर भी मूर्तियां जब कहीं नजर नहीं आती है तो बेचारे मायूस होकर लौट जाते हैं। यह कहते हुए लौटते हैं कि कैसे हैं यहां के लोग और कैसी है सिस्टम, जो महापुरुषों मूर्ति तक दर्शन के लिए नहीं लगा रखा है। तब शर्मिंदगी के सिवाय वैशाली के पास कुछ नहीं होता।

शहर में कहीं भी भगवान महावीर की मूर्ति नहीं

वैशाली जिला मुख्यालय हाजीपुर में कहीं भी चौक-चौराहे एवं इंट्री प्वाइंट पर भगवान महावीर की मूर्ति स्थापित नहीं की गई। ना ही किसी चौक-चौराहे एवं पथ का ही नामाकरण ही भगवान महावीर के नाम पर किया गया। यही हाल गौतम बुद्ध का भी है। वर्षों पूर्व किसी विदेशी डोनर ने गौतम बुद्ध की मूर्ति जिला प्रशासन को दी थी। यहां इस मूर्ति को शहर के इंट्री प्वाइंट पर नहीं लगाकर जैसे-तैसे कोनहारा रोड पर त्रिमूर्ति चौक पर लगा दिया गया। कोई देखरेख करने वाला भी नहीं, अभी हाल में अपने निजी कोष से हाजीपुर से नगर परिषद के उप मुख्य पार्षद निकेत कुमार डब्लु ने डेकोरेशन कराते हुए वहां गमला लगवाया एवं रोशनी का इंतजाम कराया।

गांधी चौक पर मंदिर की दीवार पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी

देश की आजादी के आंदोलन के दौरान चंपारण यात्रा के क्रम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हाजीपुर आए थे। यहां दो बार उनका आना हुआ था। गांधी आश्रम उन्हीं के नाम पर है। वहीं शहर के गांधी चौक का नामाकरण भी उन्हीं के नाम पर हुआ है। अगर आप नाम के अनुरूप गांधी चौक पर राष्ट्रपिता की मूर्ति ढूंढऩे की कोशिश करेंगे तो इसके लिए आपको काफी मशक्कत करनी होगी। मंदिर की दीवार पर गांधी जी की मूर्ति को साट दिया गया है। वहीं गांधी आश्रम में बापू को यादों में रखने की गंभीर कोशिश आज तक नहीं की गई।

प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की शहर में मूर्ति ही नहीं

देश के प्रथम राष्ट्रपति वैशाली आए थे। वहां अशोक स्तंभ के समीप स्थापित शिलापट्ट पर इस बात की जिक्र है। इसे पढ़कर लोग गौरव की अनुभूति करते हैं। इधर, जिला मुख्यालय हाजीपुर में हाल है कि शहर में डॉ. राजेंद्र प्रसाद की कहीं मूर्ति तक स्थापित नहीं की गई है। शहर के राजेंद्र चौक का नामाकरण तो राजेंद्र बाबू के नाम पर की गई पर आजतक वहां मूर्ति स्थापित नहीं की गई। वर्तमान पीढ़ी के जेहन में सवाल उठ रहे हैं कि किस राजेंद्र बाबू के नाम पर चौराहे का नाम राजेंद्र चौक पड़ा है ?


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