Bihar Politics: फिर गायब हुए तेजस्वी यादव , राजद, कांग्रेस और वामदलों के नेता भी मिलने को तरसें
तेजस्वी छह दिसंबर को किसान आंदोलन की अलख जगाकर राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो गए हैं। इसपर जदयू और बीजेपी ने भी खूब व्यंग्य किया। कांग्रेस नेता ने भी कह दिया कि किसानों के प्रति उनकी हमदर्दी दिखावटी है। राजद नेता और कार्यकर्ता भी उनके दीदार का तरस गए ।
पटना, अरविंद शर्मा । बिहार में राजग की नई सरकार के गठन के साथ ही मान लिया गया था कि महागठबंधन के नेता के रूप में तेजस्वी यादव से नीतीश कुमार को कड़ी और बड़ी चुनौती मिलती रहेगी, परंतु नेता प्रतिपक्ष अपनी पुरानी छवि से पीछा छुड़ाते नहीं दिख रहे हैं। छह दिसंबर को बिहार में किसान आंदोलन की अलख जगाकर राजनीतिक परिदृश्य से वह फिर ओझल हैं। इस दौरान राजद के कई सारे कार्यक्रम अधर में हैं। कांग्रेस एवं वामदलों को उनके नेतृत्व की दरकार है, लेकिन वह किसी के रडार पर नहीं आ रहे। इन्हीं हालात में महागठबंधन के प्रमुख सहयोगी दल कांग्रेस ने सवाल भी खड़े कर दिए हैं। जदयू और भाजपा जैसे विरोधी दलों के नेता तो पहले से ही उन्हें कठघरे में खड़ा करते आ रहे हैं।
सड़क से सदन तक आंदोलन का एलान कर गायब हो गए
विधानसभा चुनाव में मामूली अंतर से सत्ता से बाहर रह गए विपक्षी दलों को तेजस्वी ने बिहार में ही रहकर लगातार संघर्ष का सपना दिखाया था। नेता प्रतिपक्ष की हैसियत से सरकार को सड़क से सदन तक घेरने का वादा किया था पर जब वक्त आया तो खुद ही परिदृश्य से गायब हैं। कहां हैं ? इसके बारे में सच-सच किसी को नहीं पता। उनकी पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को भी नहीं। राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर नवल किशोर दावा करते हैं कि तेजस्वी दिल्ली में हैं, परंतु कहां हैं, इससे वह भी बेखबर हैं। प्रदेश प्रवक्ताओं को भी जानकारी नहीं है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है। अपने तो उठा ही रहे हैं। परायों को भी मौका मिल गया है।
कई अहम मौके पर तेजस्वी का ऐसा रवैया रहा
ऐसा नहीं कि यह पहली बार हो रहा है। सत्ता पक्ष की ओर से तेजस्वी का अता-पता कई अहम मौकों पर पूछा जा चुका है। भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी और जदयू के नीरज कुमार ने लोकसभा चुनाव के बाद नेता प्रतिपक्ष के अचानक ओझल हो जाने पर लगातार सवाल उठाते रहे थे। तब तेजस्वी के बारे में सूचनाएं आम नहीं हो रही थीं। दो महीने तक असमंजस के हालात थे। राजद के जीरो पर आउट होने और नेता प्रतिपक्ष के अचानक ओझल हो जाने से कुछ लोग यहां तक मानने लगे थे कि शायद अब राजनीति से उनका मोहभंग हो चुका है। कई अन्य अहम मौकों पर भी तेजस्वी का ऐसा ही रवैया रहा है। मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार (एइएस) का मामला हो या पटना में बाढ़ का, वह बिहार से बाहर रहने के कारण विरोधियों के निशाने पर ही रहे हैं। हालांकि लॉकडाउन के दौरान वह इंटरनेट मीडिया पर सक्रिय जरूर दिखे थे, लेकिन शुरू के दिनों में राहत कार्यों में प्रत्यक्ष भागीदारी के लिए पटना में उनका इंतजार होता रहा था।
सात के बाद राजद के भी संपर्क में नहीं हैैं नेता प्रतिपक्ष
कांग्रेस विधायक शकील अहमद को किसान आंदोलन से तेजस्वी का गायब रहना अच्छा नहीं लग रहा। उन्होंने इंटरनेट मीडिया के जरिए तेजस्वी के बयान जारी करने को दिखावटी बताया और कहा कि उन्हें मौजूद रहकर नेतृत्व करना चाहिए। राजद के एक वरिष्ठ नेता का दावा है कि झारखंड हाईकोर्ट में लालू प्रसाद की जमानत याचिका पर सुनवाई में न्यायिक इंतजाम के लिए वह सात दिसंबर को दिल्ली गए थे। मगर सुनवाई 12 दिसंबर को ही हो चुकी। अब उन्हें लौट जाना चाहिए था। किसान आंदोलन को बिहार में उन्होंने ही शुरू कराया था, परंतु अब संपर्क से खुद ही कट गए हैं। आगे के कार्यक्रमों के लिए राजद को अपने नेता का निर्देश चाहिए, जो प्रयास करने पर भी नहीं मिल रहा है।