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KBC 11: पटना से ही संबंधित सवाल का जवाब नहीं दे पाए बिंदेश्वर पाठक, जानिए क्या था प्रश्न

चर्चित टीवी शो कौन बनेगा करोड़पति में बुधवार को कर्मवीर नामक विशेष एपिसोड में बिहार की चर्चित हस्ती बिंदेश्वर पाठक हॉट सीट पर थे लेकिन पटना से ही सबंधित सवाल का जवाब नहीं दे सके।

By Kajal KumariEdited By: Published: Thu, 03 Oct 2019 10:42 AM (IST)Updated: Fri, 04 Oct 2019 11:04 PM (IST)
KBC 11: पटना से ही संबंधित सवाल का जवाब नहीं दे पाए बिंदेश्वर पाठक, जानिए क्या था प्रश्न
KBC 11: पटना से ही संबंधित सवाल का जवाब नहीं दे पाए बिंदेश्वर पाठक, जानिए क्या था प्रश्न

पटना, जेएनएन। टेलीविजन शो 'कौन बनेगा करोड़पति' में गांधी जयंती पर प्रसारित कर्मवीर नामक विशेष एपीसोड में बुधवार को बिहार निवासी पद्मभूषण डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने भाग लिया। कार्यक्रम में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने सुलभ इंटरनेशनल के जनक डॉक्टर पाठक का स्वागत किया और कहा कि आपने यहां आकर लाखों लोगों का मनोबल जागृत किया है। कार्यक्रम में आई एक महिला ने कहा कि हम लोग तो बचपन से मैला ढोते थे। गांधी जी को मैंने पाठक जी में देखा है।

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महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलने वाले डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने गेम शो में 12.50 लाख रुपये जीते और जैसे ही अमिताभ ने 25 लाख का प्रश्न पूछने का मन बनाया कि हूटर बज उठा और खेल वहीं समाप्त हो गया।

डॉक्टर पाठक को सहयोग देने के लिए देश के दूसरे सबसे स्वच्छ शहर इंदौर के नगर निगम के आयुक्त आशीष सिंह दूसरी सीट पर बैठे थे। हालांकि, डॉक्टर पाठक और आशीष सिंह दोनों ही इस सवाल का जवाब नहीं दे पाए कि गांधी जी की सबसे ऊंची कांस्य की प्रतिमा कहां लगी है? इसका जवाब पटना था। उन्होंने काफी देर तक विचार करने के बाद 'फ्लिप द क्वेश्चन' नामक लाइफ लाइन का इस्तेमाल किया और सवाल बदल दिया। 

कौन हैं डॉ. बिंदेश्वर पाठक :

बिंदेश्वर पाठक समाज सुधारक हैं, जिन्होंने सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की। यह संस्था मानव अधिकारों, पर्यावरण स्वच्छता, ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों, अपशिष्ट प्रबंधन और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देने के लिए काम करती है। युवावस्था में उन्हें भारत में मैला ढोने वाले समुदाय की दुर्दशा के बारे में बताया गया।

उन्होंने स्थिति को बदलने का संकल्प लिया और सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गेनाइजेशन बनाया। नागरिकों को स्वच्छ शौचालय की सुविधा देने की पहल की। उनके प्रयास से मैला ढोने की प्रथा समाप्त हो गई। 


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