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क्या होता है जीरो एफआइआर, एफआइआर और जीरो एफआइआर में जानें क्या है अंतर

जीरो एफआइआर को जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि अपराध दो तरह के होते है। पहला असंज्ञेय अपराध और दूसरा संज्ञेय अपराध।

By JagranEdited By: Published: Thu, 28 Jun 2018 05:37 PM (IST)Updated: Thu, 28 Jun 2018 05:37 PM (IST)
क्या होता है जीरो एफआइआर, एफआइआर और जीरो एफआइआर में जानें क्या है अंतर
क्या होता है जीरो एफआइआर, एफआइआर और जीरो एफआइआर में जानें क्या है अंतर

पटना [जेएनएन]। जीरो एफआइआर को जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि किस तरह के मामलों में केस दर्ज की जा सकती है। अपराध दो तरह के होते हैं। पहला असंज्ञेय अपराध और दूसरा संज्ञेय अपराध।

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असंज्ञेय अपराध से तात्पर्य मामूली अपराध अर्थात मामूली मारपीट आदि से है। इसमें सीधे तौर पर एफआइआर दर्ज नहीं की जा सकती है, बल्कि शिकायत को मजिस्ट्रेट के पास भेजा जाता है, फिर मजिस्ट्रेट के द्वारा आरोपी को समन जारी किया जाता है तथा उसके बाद मामला शुरू होता है। इस तरह के मामलों में जुरिस्डिक्शन हो या नहीं हो किसी भी स्थिति में केस दर्ज नहीं हो सकता।

संज्ञेय अपराध से तात्पर्य गंभीर किस्म के अपराध से है अर्थात मर्डर, दुष्कर्म, गोली चलाना आदि संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है। इस तरह के मामलों में सीधे एफआइआर दर्ज कराई जा सकती है। सीपीआर की धारा 154 पुलिस को संज्ञेय अपराध में सीधे तौर पर एफआइआर दर्ज करने का निर्देश देता है। यदि पीड़ित के साथ किया गया अपराध उस पुलिस थाने के जुरिस्डिक्शन में नहीं हुआ हो तब भी पुलिस को एफआइआर दर्ज करना होगा। कोई भी पीड़ित व्यक्ति किसी भी पुलिस थाने में पहुंचता है तो पुलिस कि पहली ड्यूटी होती है कि वह एफआइआर दर्ज कर उसकी छानबीन करे तथा सबूतों को एकजुट करें।

जीरो एफआइआर : निर्भया केस के बाद बना एक्ट

जीरो एफआइआर का कॉन्टेप्ट दिसंबर 2012 में हुए निर्भया केस के बाद आया। निर्भया केस के बाद देशभर में बड़े लेवल पर प्रोटेस्ट हुआ था। अपराधियों के खिलाफ सिटीजन सड़क पर उतरे थे। इसके बाद जस्टिस वर्मा कमेटी रिपोर्ट की रिकमंडेशन के आधार पर एक्ट में नए प्रोविजन जोड़े गए। दिसंबर 2012 में हुए निर्भया केस के बाद न्यू क्रिमिनल लॉ (अमेडमेंट) एक्ट, 2013 आया।

जीरो एफआइआर से तात्पर्य जब पीड़ित के खिलाफ हुए संज्ञेय अपराध के बारे में घटनास्थल से बाहर के पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई जाती है तो यह जीरो एफआइआर होता है। इसमें घटना की अपराध संख्या दर्ज नहीं की जाती। संज्ञेय अपराध होने की दशा में घटना की एफआइआर किसी भी जिले के किसी भी पुलिस थाने में दर्ज कराई जा सकती है। यह मुकदमा घटना वाले स्थान पर दर्ज नहीं होता इसलिए तत्काल वाद संख्या नहीं दिया जाता है।

एफआइआर दर्ज करते समय आगे की कार्यवाई को सरल बनाने हेतु इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इसकी शिकायत घटनास्थल वाले पुलिस थाने में ही हो परंतु कभी कभी पीड़ित को घटनास्थल के किसी बाहरी पुलिस थाने में भी एफआइआर दर्ज करने की जरूरत पड़ जाती है। पीड़ित व्यक्ति अविलंब कार्रवाई हेतु किसी भी पुलिस थाने में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है।

उद्देश्य : जीरो एफआइआर का उद्देश्य यह है कि किसी भी पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कर मामले की जाच शुरू की जाए और सबूत एकजुट किए जाए क्योंकि शिकायत दर्ज नहीं होने की स्थिति में सबूत नष्ट होने का खतरा रहता है।

कब करें जीरो एफआइआर : हत्या, एक्सीडेंट, दुष्कर्म जैसे अपराध कहीं भी हो सकती है। अत: ऐसे मामलो में तुरंत कार्रवाई हेतु किसी भी पुलिस थाने में एफआइआर दर्ज कराई जा सकती है, क्योंकि बिना एफआइआर के पुलिस घटना से संबंधित कार्यवाई करने के लिए बाध्य नहीं होता। एफआइआर दर्ज होने के बाद कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी पुलिस की होती है।

कैसे करें जीरो एफआइआर : सामान्य एफआइआर की तरह ही जीरो एफआइआर भी लिखित व मौखिक में कराई जा सकती है। यदि आप चाहें तो पुलिस द्वारा रिपोर्ट को पढ़ने का अनुरोध कर सकते हैं।

जीरो एफआइआर के फायदे

इस प्रोविजन के बाद इन्वेस्टिगेशन प्रोसीजर तुरंत शुरू हो जाता है। समय बर्बाद नहीं होता। इसमें पुलिस 00 सीरियल नंबर से एफआइआर लिखती है। इसके बाद केस को संबंधित थाने में ट्रासफर कर दिया जाता है। जीरो एफआइआर से अथॉरिटी को इनिशिएल लेवल पर ही एक्शन लेने का समय मिलता है।

यदि कोई भी पुलिस स्टेशन जीरो एफआइआर लिखने से मना करे तो पीड़ित सीधे पुलिस अधिक्षक को इसकी शिकायत कर सकता है और अपनी शिकायत रिकॉर्ड करवा सकता है। एसपी खुद इस मामले में इन्वेस्टिगेशन कर सकते हैं या फिर किसी दूसरी अधिकारी को निर्देशित कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि कोई भी पुलिस ऑफिसर एफआइआर लिखने से इन्कार करे तो उस पर डिसिप्लिनरी एक्शन लिया जाए। कोई व्यक्ति चाहे तो वह ह्युमन राइट्स कमीशन में भी जा सकता है।


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