बिहार में उठी हलाला के खिलाफ आवाज, बताया- इस्लाम के खिलाफ
इस्लाम में प्रचलित हलाला के वर्तमान स्वरूप के खिलाफ बिहार के इस्लामिक बुद्धिजीवियों ने भी आवाज उठाई है। उन्होंने इसे इस्लाम के खिलाफ बताया है।
पटना [जेएनएन]। तीन तलाक के मामले को जिस गलत तरीके से बता और समझाकर इसे पेचीदा बनाने की कोशिश की गई, उसी तरह हलाला की प्रचलित व्यवस्था को इस्लाम से जोड़कर शरीयत को बदनाम करने की साजिश रची जा रही है। उत्तर प्रदेश के बरेली में पति पर जबरन हलाला कराने का आरोप लगाने वाली महिला के साथ दुष्कर्म हुआ है और यह गुनाह करने वालों को कानूनी प्रावधान के अनुसार सजा मिलनी चाहिए। ये बातें बुधवार को जमात ए इस्लामी हिंद (बिहार) के स्थानीय अध्यक्ष मौलाना रिजवान अहमद इस्लाही ने कही। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि हलाला का तात्पर्य जो आम लोगों के जेहन में है वह सरासर हराम है। इसका इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं।
इस्लामिक शिक्षाविद इस्लाही ने बताया कि कुरआनशरीफ में हलाल करने की सूरत नहीं है, बल्कि हलाल होने की बात है। यानी कुरआनशरीफ में हलाला नहीं हलाल है। हलाला के तहत योजनाबद्ध ढंग से जो निकाह व तलाक होता है, वह हराम है क्योंकि इसमें पति-पत्नी की मंशा ठीक नहीं होती है।
उन्होंने बताया कि जिस तरह एक साथ तीन तलाक देना शरीयत के खुले दरवाजे को बंद करना है उसी तरह हलाला करना शरीयत के बंद किए दरवाजे को खोलना है। इन दोनों हरकत से अल्लाह नाराज होते हैं।
रिजवान अहमद इस्लाही ने विस्तार से बताया कि तलाक हो जाने के बाद मर्द और औरत एक दूसरे के लिए हराम हो जाते हैं। इन दोनों के लिए दांपत्य जीवन गुजारने का दरवाजा बंद हो जाता है। इस बंद दरवाजे को खोलने के लिए दूसरी शादी करनी होगी। औरत उस दूसरे पति के साथ खुश रहने का हरसंभव प्रयास करे। यदि किसी कारण से दूसरे दांपत्य जीवन में भी तलाक की नौबत आती है तो उस पति से भी पत्नी अलग हो जाए। तब किसी और से निकाह करे। इसी क्रम में औरत अपने पहले पति से भी निकाह कर सकती है, पर ऐसी परिस्थिति बहुत कम उत्पन्न होती है।
सोची समझी योजना के तहत तलाक के बाद किसी मर्द से शादी करना फिर उसे तलाक देकर पूर्व पति के पास लौटना हलाला नहीं है। यह दुष्कर्म यानी हराम है। यह बहुत बड़ा गुनाह है।
बरेली की महिला का मामला सामाजिक बुराई
इस संबंध में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (बिहार) के समन्वयक डॉ. महजबी नाज ने कहा कि इस्लाम कुरआनशरीफ से संचालित होता है। बरेली की महिला का मामला एक सामाजिक बुराई है। इसके आरोपितों को सख्त सजा मिलनी चाहिए। लिव-इन रिलेशनशिप के बढ़ते गुनाह को हलाला से जोड़कर इस्लाम को बदनाम करने की साजिश की जा रही है। महिला जो कह रही है यदि ऐसा उसके साथ वास्तव में हुआ है तो यह दुष्कर्म की श्रेणी में आएगा। यह हराम है। इसकी सख्त सजा का प्रावधान इस्लामी कानूनी और देश के कानून में है।