रिमझिम बरसेला रे बदरवा पिया विदेशवा गइले ना ..
चांदनी चितवा चुरावे हो रामा चैत महिनवा..
By Edited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 09:00 AM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 11:06 AM (IST)
पटना। 'जयति जय-जय, जयति जय-जय..' से शुरू होकर 'चांदनी चितवा चुरावे हो रामा चैत महिनवा..' और 'रिमझिम बरसेला रे बदरवा पिया विदेशवा गइले ना..' आदि एक से बढ़कर एक लोक गीतों के साथ नृत्य और संगीत की उम्दा प्रस्तुति से गुरुवार को कालिदास रंगालय गुलजार रहा। कलाकारों की भाव-भंगिमा देखते बन रही थी। परिसर में बैठे दर्शक कलाकारों की प्रस्तुति का भरपूर आनंद उठाने में लगे थे। मौका था बिहार कोकिला और पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी की 13वीं पुण्यतिथि के मौके पर पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी द्वारा स्थापित 'विंध्यकला' मंदिर के बैनर तले लोक संगीत और नृत्य की उम्दा प्रस्तुति की।
कार्यक्रम का उद्घाटन विंध्यकला मंदिर की सचिव शोभा सिन्हा, बिहार आर्ट थिएटर की कार्यकारी सचिव अरुण कुमार सिन्हा, कलानेत्री पल्लवी विश्वास, वरिष्ठ रंगकर्मी मनीष महिवाल, श्यामा झा, सत्य प्रकाश मोती, गीता सिंह, मीना सिंह आदि ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत विंध्यकला मंदिर के कलाकारों ने सरस्वती वंदना से की।
लोक गीतों से गुलजार रहा परिसर
विंध्यवासिनी देवी की पुण्यतिथि के मौके पर विंध्य कला मंदिर की छात्र-छात्राओं ने विंध्यवासिनी देवी के लिखे गीतों की प्रस्तुति से दर्शकों को मन मोहित करने के साथ कला गुरु को श्रद्धाजंलि दी। कलाकारों ने लोक संगीत और नृत्य की बेहतर प्रस्तुति कर सभी का दिल जीता। जैसे-जैसे कार्यक्रम आगे की ओर बढ़ता जा रहा था, परिसर में एक से बढ़कर एक गीतों की प्रस्तुति का आनंद कलाप्रेमी उठाते नजर आ रहे थे। पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी की काव्य रचना 'ऋतुरंग' से लिए चैती गीत 'चांदनी चितवा चुरावे हो रामा चैत महिनवा..' गीत पर दर्शकों को झूमने पर विवश कर दिया। वही 'मधुर ऋतु मधुर-मधुर रस घोले मंजर झुकी-झुकी जावे हो रामा चैत महिनवा..' गीत की प्रस्तुति रीना सिन्हा, आभा कुमारी, नीरू, खुशबू, कुमारी और मुन्नी कुमारी ने किया। वही बच्चों ने मीना सिंह के निर्देशन में बसंत ऋतु पर लोक नृत्य 'सखी डोले बसंती बयार में गुलजार बहकल पवन चैत चित चंचल बेला फुलेला हजार बगिया में' गीत पर दर्शकों की तालियां कलाकारों ने खूब बटोरीं। चार चांद लगाने में कलाकारों ने नहीं छोड़ी कोई कसर समारोह में चार-चांद लगाने में कलाकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। कलाकारों ने कजरी 'रिमझिम बरसेला रे बदरवा पिया विदेशवा गइले ना, बादल गरजे बिजली चमके छाई घटा-घनघोर दादुर मोर पपीहा बोले झींगुर के अति शोर..' को पेश कर लोक गीतों से दर्शकों को रूबरू कराया। वही गीता सिंह की एकल प्रस्तुति 'चैती कथि ना बोलाई ले बीरही कोयलिया पटना सहरिया से आइली' गीत को पेश सभी का मन मोह लिया। 'नीले आकाश की गुजरी टिकुरिया गरम ऋतु झांके हे मोरा सखिया' पर तालियां खूब बटोरीं। श्यामा झा और मुन्नी कुमारी की एकल प्रस्तुति ने सभी का दिल जीता। वही समारोह के दौरान कलाकारों ने कथक की पारंपरिक नृत्य, पनघट की छेड़छाड़, गुरु वंदना, रोपनी, झूमर, गोदना गीत आदि की मनमोहक प्रस्तुति से पूरा परिसर गुलजार हो गया। धन्यवाद ज्ञापन शोभा सिन्हा ने किया।
कार्यक्रम का उद्घाटन विंध्यकला मंदिर की सचिव शोभा सिन्हा, बिहार आर्ट थिएटर की कार्यकारी सचिव अरुण कुमार सिन्हा, कलानेत्री पल्लवी विश्वास, वरिष्ठ रंगकर्मी मनीष महिवाल, श्यामा झा, सत्य प्रकाश मोती, गीता सिंह, मीना सिंह आदि ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत विंध्यकला मंदिर के कलाकारों ने सरस्वती वंदना से की।
लोक गीतों से गुलजार रहा परिसर
विंध्यवासिनी देवी की पुण्यतिथि के मौके पर विंध्य कला मंदिर की छात्र-छात्राओं ने विंध्यवासिनी देवी के लिखे गीतों की प्रस्तुति से दर्शकों को मन मोहित करने के साथ कला गुरु को श्रद्धाजंलि दी। कलाकारों ने लोक संगीत और नृत्य की बेहतर प्रस्तुति कर सभी का दिल जीता। जैसे-जैसे कार्यक्रम आगे की ओर बढ़ता जा रहा था, परिसर में एक से बढ़कर एक गीतों की प्रस्तुति का आनंद कलाप्रेमी उठाते नजर आ रहे थे। पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी की काव्य रचना 'ऋतुरंग' से लिए चैती गीत 'चांदनी चितवा चुरावे हो रामा चैत महिनवा..' गीत पर दर्शकों को झूमने पर विवश कर दिया। वही 'मधुर ऋतु मधुर-मधुर रस घोले मंजर झुकी-झुकी जावे हो रामा चैत महिनवा..' गीत की प्रस्तुति रीना सिन्हा, आभा कुमारी, नीरू, खुशबू, कुमारी और मुन्नी कुमारी ने किया। वही बच्चों ने मीना सिंह के निर्देशन में बसंत ऋतु पर लोक नृत्य 'सखी डोले बसंती बयार में गुलजार बहकल पवन चैत चित चंचल बेला फुलेला हजार बगिया में' गीत पर दर्शकों की तालियां कलाकारों ने खूब बटोरीं। चार चांद लगाने में कलाकारों ने नहीं छोड़ी कोई कसर समारोह में चार-चांद लगाने में कलाकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। कलाकारों ने कजरी 'रिमझिम बरसेला रे बदरवा पिया विदेशवा गइले ना, बादल गरजे बिजली चमके छाई घटा-घनघोर दादुर मोर पपीहा बोले झींगुर के अति शोर..' को पेश कर लोक गीतों से दर्शकों को रूबरू कराया। वही गीता सिंह की एकल प्रस्तुति 'चैती कथि ना बोलाई ले बीरही कोयलिया पटना सहरिया से आइली' गीत को पेश सभी का मन मोह लिया। 'नीले आकाश की गुजरी टिकुरिया गरम ऋतु झांके हे मोरा सखिया' पर तालियां खूब बटोरीं। श्यामा झा और मुन्नी कुमारी की एकल प्रस्तुति ने सभी का दिल जीता। वही समारोह के दौरान कलाकारों ने कथक की पारंपरिक नृत्य, पनघट की छेड़छाड़, गुरु वंदना, रोपनी, झूमर, गोदना गीत आदि की मनमोहक प्रस्तुति से पूरा परिसर गुलजार हो गया। धन्यवाद ज्ञापन शोभा सिन्हा ने किया।
Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें