Parna News: कोरोना काल में सजीवनी बनी खादी, हर्बल साबुन से मिट रहा बेरोजगारी का दाग
कोरोना संकट के वर्तमान दौर में बिहार में खादी ग्रामोद्योग बेरोजगारी से लड़ाई में सहारा बना है। इसके माध्यम से रोजगार के अवसर मिल रहे हैं।
पटना। कोरोना संकट के दौर में राज्य के बुनकरों एवं देश के कोने-कोने से लौटे मजदूरों के लिए खादी वस्त्र एवं हर्बल साबुन का व्यवसाय संजीवनी साबित हुआ है। आर्थिक संकट से जूझ रहे बुनकरों, कारीगरों एवं मजदूरों को इससे रोजगार का अवसर प्राप्त हो रहा है। इससे न केवल उनकी बेरोजगारी दूर हो रही है बल्कि अच्छी आय भी हो रही है। मधुबनी स्थित भगवानपुर खादी-ग्रामोद्योग सहयोग समिति के सचिव मुश्ताक अंसारी का कहना है कि पहले सामान्य साबुन ही खादी ग्रामोद्योग द्वारा उत्पादित किए जा रहे थे, लेकिन अब हर्बल साबुन में नये अवसर दिख रहे हैं। दिल्ली, मुंबई, कोलकता एवं चेन्नई जैसे बड़े शहरों के अलावा केरल में हर्बल साबुन की माग अधिक है। मिल रही अच्छी कीमत हर्बल साबुन की कीमत भी अच्छी मिल रही है। खादी-ग्रामोद्योग समितियों के बनाये साबुन की कीमत सामान्यत: 20 से 40 रुपये प्रति पीस है, लेकिन हर्बल साबुन की कीमत 100 से 150 रुपये तक है। हर्बल साबुन के उत्पादन में प्राय: स्थानीय उत्पादों को बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। स्थानीय स्तर पर तैयार किया जाता अर्क स्थानीय उत्पादों के इस्तेमाल से हर्बल साबुन की गुणवत्ता बढ़ जाती है। खासकर गुलाब का अर्क स्थानीय स्तर पर ही तैयार किया जा रहा है। इसके अलावा गेंदा, सूरजमुखी, कचनार, चमेली आदि के अर्क तैयार कर साबुन तैयार किए जा रहे हैं। चंदन एवं घृतकुमारी से भी हर्बल साबुन तैयार किया जा रहा है। खादी की संस्थाएं दे रहीं सबसे बड़ा बाजार संस्था की ओर से वर्तमान में 250 बुनकर, कारीगर एवं मजदूर रोजगार पा रहे हैं। प्रतिदिन यहां पर लगभग 2000 से अधिक साबुन तैयार किया जा रहा है। इसका सबसे बड़ा बाजार देशभर में फैली खादी की संस्थाएं हैं। उन संस्थाओं के माध्यम से लोगों तक उत्पाद पहुंचाया जा रहा है। खादी मॉल के ऑनलाइन पोर्टल पर हो रही बिक्री हर्बल साबुन की बिक्री खादी मॉल के ऑनलाइन पोर्टल पर भी हो रही है। मॉल के ई-कॉमर्स पोर्टल के माध्यम से देश एवं विदेशों में भी हर्बल साबुन की आपूर्ति की जा रही है। प्रदेश सरकार का उद्योग विभाग कई योजनाओं के माध्यम से राज्य के बुनकरों का प्रोत्साहित कर रहा है।