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जानिए एक कैंसर पीडि़त की दास्तान, कैसे जीती जिंदगी की जंग

प्रकाश यादव ने कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझकर जिंदगी की जंग जीती है। वे बताते हैं कि अपने आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच से इंसान कोई भी जंग जीत सकता है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 03 Feb 2018 09:04 AM (IST)Updated: Sun, 04 Feb 2018 08:09 PM (IST)
जानिए एक कैंसर पीडि़त की दास्तान, कैसे जीती जिंदगी की जंग
जानिए एक कैंसर पीडि़त की दास्तान, कैसे जीती जिंदगी की जंग

पटना [चन्द्रशेखर]। जिन्दगी भी अजीब-अजीब रंग दिखाती है जीवन में, कभी खुशियों की सौगात लाती है, तो कभी आफतों का सैलाब, जिसमें सारी खुशियां पलभर में समा जाती हैं।  उसके आगोश में और मनुष्य किंकर्तव्यविमूढ़-सा सब कुछ देखता रहता है।

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कुछ ऐसा ही हमेशा खुश रहने वाले बैंक अधिकारी प्रकाश यादव निर्भीक के जिंदगी में भी हुआ जो उन्हें जड़ तक हिला कर रख दिया। उनके जीभ पर एक फोड़ा था जिसकी बायोप्सी टेस्ट करवाने पर द्वितीय स्टेज का कैंसर निकला।

पहली मर्तबा जब उन्हें कैंसर होने की बात बताया गया था तो उनके पैरों के तले से जमीन खिसक गई थी। वे अपने बच्चों व पत्नी को देख अपनी आंसूओं को रोक नहीं सके थे। परंतु अपनी जिंदादिली से उन्होंने इस बीमारी को भी मात दे दी। 

प्रकाश यादव निर्भीक राजधानी के आनंदपुरी के ही रहने वाले हैं और बैंक ऑफ बड़ौदा के आंचलिक कार्यालय में तैनात बड़े अधिकारी हैं। 23 अप्रैल 2000 को ही उनकी शादी हुई थी। दो-दो बच्चे भी थे। शादी के 17 साल बाद कैंसर जैसी गंभीर बीमारी होने के बाद शुरू हुआ उनके जीवन से असली लड़ाई लडऩे का वक्त। कभी प्राइवेट तो कभी सरकारी अस्पतालों चक्कर लगाते-लगाते उन्हें यह अहसास हो गया था कि जिंदादिली ही सबसे अचूक दवा है।

बस उस दिन से कैंसर के बारे में सोचना छोड़ खुद तो खुश रहने की कोशिश करने लगे अपने साथ रहने वाले अस्पताल के अन्य कैंसर पीडि़तों को खुश रखने की कोशिश करने लगे। देश के नामी अस्पताल एम्स के डाक्टरों व नर्सों की दुत्कार से परेशान  राजीव गांधी कैंसर अस्पताल में इलाज करवाने पहुंच गया। 3 मई, 2017 को उनकी जीभ का ऑपरेशन डॉ. ए. के. दीवान द्वारा सफलतापूर्वक किया गया।

48 घंटे बाद उन्हें होश आया। सामने पत्नी को रोते देख उन्होंने मुस्कुराते हुए पत्नी को ढाढस बंधाया। अपने द्वारा अस्पताल प्रवास में रहते हुए रचित कविता 'मौत से लडऩे आया हूं' पत्नी को समर्पित कर दिया। वह बोल पाने में असमर्थ थे क्योंकि उनकी  जबान काट ली गई थी।

अपने अस्पताल प्रवास के दौरान उन्होंने सारे रोगियों को हिम्मत बढ़ाने की कोशिश की। इस क्रम में उसे रेडिएशन और किमोथेरेपी का भरपूर डोज दिया गया। सप्ताह में पांच दिन रेडियेशन और एक दिन कीमोथेरपी। इन दोनों ने शरीर को तोड़ दिया। मरणासन्न स्थिति में ला दिया। इनके साइड इफेक्ट्स काफी पीड़ादायक थे। पीड़ा होने पर भी मुस्कुराते रहना सीख लिया था।

इस दौरान उनके सहयोगियों व परिजनों द्वारा काफी हौसला बढ़ाया गया। उनकी मौत से कई बार मुलाकात भी हुई। परंतु अपने पीछे परिवार का दर्द नजरों के सामने देख वह मौत को भी मात देने में सफल रहते थे। शुभचिंतकों की दुआएं और पत्नी की सेवा उनके लिए वरदान रहा।

रेडियेशन से दो महीने तक असहनीय पीड़ा झेलता रहा। इस दौरान उन्होंने कविता लिखने व साहित्य पढऩे में अपना पूरा समय व्यतीत करने लगा।

कोई रोगी उससे मिलने आते तो उनका हंसते हुए स्वागत करता था। उसे अपने द्वारा लिखित कविता भी सुनाता। इसके कारण वह अवसाद में जाने से बच गया। कविता ने उन्हें जीवन के प्रति सकारात्मक सोच पैदा करने में काफी मदद की। बीमारी के दौरान ही जिजीविषा नामक काव्य संग्रह की रचना कर दी। 


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