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आरा में रामलीला मंचन की चार सौ साल पुरानी है परंपरा, नागरी प्रचारिणी सभागार से भी जुड़ी हैं यादें

Tradition of Ramleela in Ara आरा में करीब 400 साल पहले से होता आ रहा है रामलीला का मंचन। प्राचीन समय में रामलीला में गोला व्यवसायी निभाते थे अहम भूमिका। नागरी प्रचारिणी सभा के मंच पर दिखाई जाती थी रामलीला

By Shamshad jiEdited By: Shubh Narayan PathakPublished: Sat, 24 Sep 2022 11:17 AM (IST)Updated: Sat, 24 Sep 2022 11:17 AM (IST)
आरा में रामलीला का एक दृश्‍य। जागरण

शमशाद 'प्रेम', आरा। बिहार के पुराने और बड़े शहरों में आरा की गिनती है। यह पुराने शाहाबाद जिले का मुख्‍यालय रहा है, जिसमें अब के भोजपुर, बक्‍सर, कैमूर और रोहतास शामिल हैं। आरा शहर में दशहरा के अवसर पर रामलीला मंचन की प्राचीन परंपरा रही है। बताया जाता कि लगभग चार सौ साल से यहां रामलीला की प्रस्तुति होती है। इसमें स्थानीय कलाकारों के अलावा बिहार व उत्तर प्रदेश की रामलीला मंडलियां शामिल होती रही हैं।

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गोलेदारों के सहयोग से होती थी रामलीला 

इस आयोजन में कभी गोलेदारों की अहम भूमिका होती थी। गोलेदारों के सहयोग से ही रामलीला होती थी। लेकिन समय के साथ स्थितियां बदली और अब पूरे शहर के लोगों के सहयोग से यह आयोजन रामलीला मैदान में होता है। प्राचीन समय में नागरी प्रचारिणी सभागार के पश्चिम मंच पर रामलीला होती थी। विगत चार दशक से अधिक से रामलीला मैदान में रामलीला होती है। 

नागरी प्रचारिणी सभा के मंच पर होता था मंचन 

नगर रामलीला समिति उपाध्यक्ष दिलीप कुुमार गुप्ता ने बताया कि लगभग वर्ष 1975 के पूर्व शहर में रामलीला का मंचन नागरी प्रचारिणी सभागार के पश्चिमी मंच पर होता था। पश्चिम दिशा में दर्शक बैठते थे। तब अंधेरा होने से पूर्व ही रामलीला समाप्त हो जाती थी। रामलीला के दर्शक शहर के गणमान्य लोग से लेकर अधिकारी तक होते थे।

रामलीला प्रारंभ होने से पूर्व निकाली जाती है झांकी

नवरात्रि के एक दिन पूर्व जगदीशबाबू के गद्दी से लक्ष्मी व विष्णु जी की झांकी निकाली जाती है, जो विभिन्न रास्तों से होते हुए रामलीला मैदान पहुंचकर समाप्त हो जाती है। ध्वजारोहण के पश्चात रामलीला प्रारंभ की होती है घोषणा। नवरात्र से प्रारंभ होती है रामलीला। 

गोलेदारों के आर्थिक सहयोग से होता थी रामलीला

बड़की गद्दी, महाशय जी का गोला समेत अन्य गोलेदारों के आर्थिक सहयोग से रामलीला का मंचन होता था। गोलेदार अपनी आमदनी का कुछ भाग प्रतिदिन रामलीला के लिए निकालते थे। फिर इसे एकत्रित कर रामलीला में खर्च किया जाता था। अब पूरे शहरवासी इस आयोजन में सहयोग करते हैं।

कलक्ट्री तालाब में होता था केवट प्रसंग 

दिलीप कुमार गुप्ता ने बताया कि रामलीला के दौरान केवट संवाद को कलक्ट्री तालाब में प्रस्तुत किया जाता था। वहीं कलक्ट्री सूर्य मंदिर के पास मंच पर केवट संवाद व श्रीराम जी से संबंधित गीत भरत सिंह भारती, कृष्णा देवी समेत अन्य कलाकार प्रस्तुत करते थे। लगभत 30 सालों से यह परंपरा समाप्त हो गई है। अब रामलीला मंच पर ही यह संवाद होता है। भरत मिलाप के दिन जगदीश बाबू के गोला से राम, लक्ष्मण, सीता व हनुमान की झांकी निकाली जाती है, जो शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए रामलीला मंच पर पहुंचती है। मंच पर भरत मिलाप का दृश्य संपन्न होता है। 

राजगद्दी के दिन होता है भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम 

राजगद्दी के दिन प्राचीन समय से भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है। इसमें स्थानीय कलाकारों के अलावा दूसरे प्रदेशों के कलाकार भी शामिल होते हैं। बीच में आर्थिक संकट के कारण थोड़ी रौनक में कमी आई थी, लेकिन वर्ष 2014 में नई कमेटी के गठन के बाद पुन: रौनक लौटी। गत कई सालों से भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहा है। इसमें दूसरे प्रदेश के चर्चित कलाकार शामिल हो रहे हैं। इस बार भी नवरात्र के पहले दिन सोमवार से भव्य आयोजन की तैयारी है। 


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