कबाड़ के खिलौनों से कुछ यूं पढ़ाते ये मैथ गुरु, गणित से बिदकने वाले बच्चे भी बन रहे इंजीनियर
बिहार के सासाराम में एक शिक्षक ने कबाड़ से खिलौने बना उनके माध्यम से गणित पढ़ाने की अनोखी पद्धति अपनाई है। बच्चे उनके इस अंदाज के कायल हैं। आइए जानते हैं उनके बार में।
रोहतास, ब्रजेश पाठक। कबाड़ (Garbage) से कागज या कूट के टुकड़े लिए। उससे वृत्त (Circle) बनाया और उसे चार भागों में बांटकर त्रिभुज (Trangle) की परिभाषा समझा दी। गणित (Mathematics) के उलझे सवालों को कुछ ऐसे ही चुटकियों में सुलझाने वाले रजनीकांत श्रीवास्तव की पहचान आज 'मैथ गुरु' (Math Guru) के रूप में बन चुकी है। कबाड़ से बनाए गए खिलौनों (Toys from Garbage) के जरिए समझाने का अंदाज इतना अनोखा है कि गणित से बिदकने वाले बच्चे भी लिख-पढ़कर इंजीनियर (Engineer) बन गए।
रोहतास जिला के बिक्रमगंज में रजनीकांत का आशियाना है। उसी दायरे से गरीब विद्यार्थियों के लिए उम्मीद की एक किरण निकलती है। कभी रजनीकांत को खुद के लिए ऐसे ही किसी गुरु की तलाश थी, लेकिन बदकिस्मती से उनकी उम्मीद पूरी नहीं हुई। घर की तंगहाली के बीच वे तपेदिक (Tuberculosis) के ऐसे मरीज बन गए कि आइआइटी की प्रवेश परीक्षा (IIT Entrance Examination) तक नहीं दे पाए।
इंजीनियर नहीं बने तो आया गरीबों को बढ़ाने का विचार
इंजीनियर बनने की अधूरी हरसत कलेजे में टीस बन गई और उसी के साथ गरीबी के कारण मजबूर बच्चों को आगे बढ़ाने का विचार आया। माध्यम बना गणित, लेकिन कमाई का ख्याल तक नहीं। बच्चों की जिद है, लिहाजा पारिश्रमिक के रूप में प्रति माह एक रुपया लेते हैं। यह गुरु-दक्षिणा सांकेतिक है।
रामानुजम व वशिष्ठ नारायण सिंह को मानते आदर्श
प्रसिद्ध गणितज्ञ रामानुजम (Ramanujam) और वशिष्ठ नारायण सिंह (Vashishtha Narayan Singh) को अपना आदर्श मानने वाले रजनीकांत श्रीवास्तव कहते हैं कि अपने जैसे उन बच्चों को पढ़ा-लिखा कर काफी संतुष्टि मिलती है, जो मार्गदर्शन नहीं मिलने से प्राय: पिछड़ जाते हैं। कहते हैं, ''मैं रास्ता बताने वाला हूं, गुरु नहीं। यह तो बच्चों का प्रेम है, जो मेरा इतना सम्मान करते हैं।''
निकाला कबाड़ के खिलौनों से पढ़ाने का लाजवाब तरीका
गणितीय चुटकुले (Mathematical Jokes) सुनाकर रजनीकांत बच्चों को सवालों के सूत्र (Mathematical Formula) में बांध लेते हैं। उसके साथ ही कबाड़ से बनाए गए खिलौनों के माध्यम से पाठ (Lesson) को उनके दिमाग (Brain) में उतार देते हैं। दरअसल, संसाधनों की कमी से कबाड़ उनके लिए विकल्प बन गया। ट्यूबलाइट, माचिस की तीली, साइकिल के ट्यूब और कागज आदि से खिलौनानुमा आकृति तैयार कर वे गणित के जटिल सवालों के हल निकालते हैं। लघुत्तम समापवर्त्य (Lowest Common Multiple) और महत्तम समापवर्त्य (Highest Common Factor) , रोमन अंक (Roman Number) के कॉन्सेप्ट को खिलौनों से समझाने का उनका तरीका अद्भुत (Unique) है। वे कहते हैं, ''खिलौने बच्चों की आंखों में चमक भर देते हैं, फिर उनका दिमाग पाठ को लपक लेता है।''
निराला है पढ़ाने का अंदाज, आप भी डालिए नजर
- अब नजर डालते हैं रजनीकांत के पढ़ाने के अंदाज पर। वे बताते हैं, सिद्ध करना है कि त्रिभुज के तीनों कोणों का योगफल 180 डिग्री होता है। इसके लिए कबाड़ से एक कूट या कागज लेंगे। अब उस पर एक त्रिभुज और एक वृत्त बना लेंगे। पेंसिल के सहारे तीनों कोणों के लिए समान चाप काटेंगे। उसी समान चाप का कूट या कागज पर वृत्त, जो बनाया गया है, उस पर त्रिभुज के तीनों कोणों को काटकर रखेंगे तो देखेंगे कि उसने वृत्त को आधा ढंक लिया। हम जानते हैं कि आधा वृत्त 180 डिग्री का कोण बनाता है। इस तरह सिद्ध हो जाता है कि त्रिभुज के तीनों कोणों का योग 180 डिग्री होता है।
- रजनीकांत अपने पढ़ाने के अंदाज का एक और प्रयोग बताते हैं। कहते हैं, कबाड़ से एक कार्ड बोर्ड लेंगे। उसमें से 20 वर्ग (Square) काट लेंगे। उस 20 वर्ग को दो भागों (10 और 10) में बांट देंगे। पहचान के लिए उन पर दो अलग रंग के कागज चिपका देंगे। उन 10-10 वर्गों के टुकड़े को इस प्रकार सजाएंगे कि वह एक आयत (Rectangle) बन जाए। अब हम तीन वर्ग लेंगे तो इसका क्षेत्रफल 1+2=3 होगा। इस एक रंग के तीन वर्ग के साथ तीन दूसरे रंग के वर्ग को इस प्रकार सजाएंगे कि यह एक आयत बन जाए। उसकी लंबाई 2 इकाई और चौड़ाई 3 इकाई होगी तो उस आयत का क्षेत्रफल 2&3 वर्ग इकाई होगा, परंतु हमें आधे का क्षेत्रफल निकालना है। यानी 1+2 का मान निकालना है तो इस 2&3/2 करना पड़ेगा। इससे साबित होगा कि 1+2= 2&3/2= 2&(2+1)/2
कई गरीब होनहारों को पहुंचाया मुकाम पर
रजनीकांत की पाठशाला से निकले श्रीराम गुप्ता भागलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज (Bhagalpur Engineering College) से बीटेक (B.Tech) करने के बाद अभी हैदराबाद में भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL) की इकाई में कार्यरत हैं। बिक्रमगंज अनुमंडल के मोथा निवासी उनके पिता सब्जी की दुकान लगाया करते थे। कोआथ-मझौली निवासी किसान वीर बहादुर स्वरूप के पुत्र मुकेश स्वरूप ने एनआइटी सिल्चर (NIT Silchar) से बीटेक किया। वे आज अंकलेश्वर (गुजरात) स्थित ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड (ONGC) में अधिकारी हैं। पान विक्रेता राजकुमार साह के पुत्र सचिन, दावथ (डिहरा) के किसान के पुत्र विवेक, मुंजी के मजदूर के पुत्र नवीन पुष्कर आदि इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर अच्छे पैकेज पर नामचीन कंपनियों में काम कर रहे हैं। रजनीकांत से पढ़कर ही गौरव आइआइटी गुवाहाटी (IIT Guahati) तथा अक्षत, साक्षी व मनीष आदि एनआइटी अगरतला (NIT Agartala) में बीटेक करने पहुंचे हैं।
बोले: गणित रुचिकर विषय, बेवजह बनाया हौवा
रजनीकांत गणित के रुचिकर विषय मानते हैं। कहते हैं कि इसे बेवजह हौवा बना दिया गया है। जरूरत है इसके प्रति विद्यार्थियों की दिलचस्पी जगाने की। अगर किसी फॉर्मूला से आप सवाल को हल कर रहे हैं तो उसके पीछे छुपे तथ्यों को जानिए। वह फॉर्मूला क्यों बना और आप अपने सहज-सरल तरीके से कैसे उस सवाल को हल कर सकते हैं, यह जानना जरूरी है।