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बिहार उपचुनाव: इस चचरी के पुल के आगे एक गांव में सिर्फ वोट रहते हैं...

चुनाव के साथ वायदों की बरसात होती है, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं होता। अररिया में फणिश्‍वर नाथ रेणु की जन्‍मभूमि की यही कहानी है। वहां 'परती परीकथा' के आगे कुछ नहीं हुआ।

By Amit AlokEdited By: Published: Thu, 08 Mar 2018 10:21 AM (IST)Updated: Thu, 08 Mar 2018 11:09 PM (IST)
बिहार उपचुनाव: इस चचरी के पुल के आगे एक गांव में सिर्फ वोट रहते हैं...
style="text-align: justify;">पटना [विनय मिश्र]। रेणु के गांव से थोड़ा पश्चिम खरहा नदी पर एक चचरी पुल है। उस पार जाता हूं देखने कि परती परीकथा के आगे क्या हुआ? उनके गए वर्षों बीत गए हैं। परती धरती वाली कहानी जरूर थोड़ी बढ़ी होगी। मैं यहां जाति, कुल, कुटुंब में बंधे परिवार से मिला। बालू बहाती नदी से मिला। धूसर, वीरान वंध्या जमीन से मिला। चैत की उदास सी गर्मी में मुरझाते गेंदा के खेत में किसान से भी मिला। सब कुसहा-भुटहा, कोसी, बाढ़, पुल, बांध की कहानी सुनाते रहे। यह रेणु की कहानी जैसी ही थी। परती परीकथा के आगे कुछ नहीं हुआ।   
डुमरिया मिर्जापुर के उस गंवार युवक ने कहा, पिछले साल वाली बाढ़ में यहां एक महीने तक खेतों और रास्तों पर पानी भरा था। चचरी पुल के ऊपर पानी चढ़ गया था। पक्का पुल पास हुआ तो मुखियाजी उसे अपने टोले में घींचकर (खींचकर) ले गए। अब उनके टोले में पुल है। वह युवक मैथिली में बोल रहा था। मैंने बोलने की कोशिश की, तो हिंदी बोलने लगा।
पास खड़े सातवीं पास लड़के को रेणु के बारे में कुछ नहीं पता था। तीसरी कसम भी नहीं जानता। वह नए वाले विधायक जी, पुराने वाले विधायक जी और वार्ड पार्षद के बारे में हर बात बता रहा था। पक्के दावे के साथ कि उसे सब अच्छी तरह से पता है। नेपाल के सुनसरी जिले के भुटहा और कुसहा से पानी आता है। बारिश कितनी भी कम हो, अररिया में बाढ़ आएगी ही। झेलना है, तो झेलिए, नहीं तो चिल्लाते रहिए, कुछ नहीं होने वाला। पिछली बार भुटहा से आने वाले पानी को नियंत्रित करने का राजनीतिक वादा मिला था, वह भी खरहा नदी के बालू में दबा है।
पुल अपनी जगह है, वोट अपनी जगह
मैं पटना से आया हूं, यही सोचकर जानकार मुझे अररिया का समीकरण समझा रहे थे। उन्होंने बताया नरपतगंज में सब नेता कैंप कर रहे...। गांव-गांव में सैकड़ों नेता फैले हैं। इसलिए नहीं कि पटना से आने पर सबसे पहले यही प्रखंड पड़ता है। दरअसल, नरपतगंज में असली लड़ाई है। डुमरिया मिर्जापुर इसी प्रखंड का गांव है। मैंने देखा कि वहां अभी तक कोई नेता नहीं पहुंचा है। लोग इंतजार कर रहे। चचरी पुल पर पक्का पुल का वादा लेना है। और अगर नहीं आया कोई तो....?
मुझे बताया गया कि हम तो तय कर चुके हैं कि किसे वोट देंगे। किसे, यह भी बताया गया। वोट अपनी जगह है और पुल अपनी जगह। बाढ़ में बच्चे पढऩे नहीं जा पाते। जलावन गीला हो जाता है। सड़क पर परिवार चला आता। घर टूट जाते। बाढ़ राहत मिलने में धांधली है। नेता अपनों की लिस्ट बनवाते। जीतने के बाद नहीं लौटते। इतना कुछ गिनाने के बाद फाइनली बताया गया कि पुल अपनी जगह है और वोट अपनी जगह।
फोर लेन पर दलीलें गियर बदलती रहीं
11 मार्च को अररिया लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव है। राजद सांसद मोहम्मद तसलीमुद्दीन के निधन के बाद यह सीट रिक्त हुई है। तो चुनाव का मुद्दा क्या है? 20 साल में अररिया को क्या मिला? जोगबनी से कटिहार तक ट्रेन चलने लगी। और...। और कुछ याद नहीं आ रहा। हां, दीपौल विद्युत परियोजना ठप हो गई, क्योंकि महंगी बिजली बनाकर क्या फायदा?
फारबिसगंज-राघोपुर अमान परिवर्तन के लिए 20 जनवरी 2012 में मेगा ब्लॉक लिया गया। यानी ट्रेन चलनी बंद हो गई। उसी कड़ी में एक दिसम्बर 2015 से राघोपुर-थरबिटिया तक रेल परिचालन बंद कर दिया। अब अमान परिवर्तन की गति थोड़ी धीमी है। इन मुद्दों पर बात हुई क्या? बाढ़ से स्थायी राहत के लिए क्या किसी ने अपनी कोई योजना बताई है? जानकार गियर बदलते रहे। कुछ पांच नंबर गियर लगाकर तेजी से आगे बढ़े, जैसे फोर लेन पर चल रहे हों।
हमें चमचमाते फोर लेन पर हरियाणा और यूपी नंबर वाले ट्रक असम की ओर बढ़ते दिखे। जानकार बोले, इन ट्रकों के अधिकांश ड्राइवर अपनी तरफ के हैं। जोगबनी से दिल्ली के लिए एक ट्रेन चलती है, सीमांचल एक्सप्रेस। यहां के लोग भी उस ट्रेन से हरियाणा और दिल्ली जाते हैं। उसमें जगह नहीं मिलती, तो बस से पटना जाते हैं। कोलकाता जाते हैं।
जानकार से पूछा, तो यहां फैक्ट्री लगाने की बात क्यों नहीं करते?  उन्होंने फिर गियर बदला, इसकी बात छोडि़ए। चुनाव में यह भी कोई मुद्दा नहीं है।
उथले पानी पैठ
वैसे, हिंगना औराही से आगे सड़क किनारे के गड्ढे के बचे-खुचे पानी में गरई-सिधरी (मछलियां) पकड़ रहे बच्चे खुश दिखे। प्रोजेक्ट कन्या विद्यालय की टूटे शीशों वाली खिड़कियों के अंदर बच्चियां पढ़तीं खुश दिखीं। थाने के पास टीन की छप्पर वाले छोटे से होटल में भात पसारते दुकानदार खुश दिखे। गेंदा फूल के खेत में झोला भरते किसान खुश दिखे। अररिया के रेस्टूरेंट में फुसफुसाते लड़के-लड़कियां खुश दिखे। ट्रैक्टर पर बैठकर चुनावी सभा में जाते चार-छह साल के बच्चे खुश दिखे।
समीकरण, गणित, हवा, फैक्टर, कैंडिडेट, एंटी इंकम्बेंसी, बैकवार्ड-फॉरवॉर्ड जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने वाले वह जानकार बस दुखी दिखे, जिन्हें अपनी ही दलीलों पर विश्वास नहीं था... कि फलां जीत रहे।

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