लेखनी में भावना व बाजार दोनों का ख्याल जरूरी
बेस्ट सेलर 'बनारस टॉकीज' के लेखक सत्य व्यास सीधे राजधानी के पाठकों से मुखातिब थे।
बेस्ट सेलर 'बनारस टॉकीज' के लेखक सत्य व्यास सीधे राजधानी के पाठकों से मुखातिब थे। शनिवार की शाम होटल चाणक्य में इस किताब पर बेबाक चर्चा हुई। युवा रंगकर्मी जय प्रकाश इस किताब के संदर्भ में सत्य व्यास से बातचीत कर रहे थे। प्रभा खेतान फाउंडेशन व नवरस स्कूल ऑफ परफॉर्मिग आटर्स की ओर से आयोजित कलम कार्यक्रम का प्रस्तुतकर्ता श्रीसीमेंट था। दैनिक जागरण कार्यक्रम का मीडिया पाटर्नर था। रोशन राहुल की रिपोर्ट।
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यूं तो युवा लेखक सत्या व्यास की पहली नॉवेल 'बनारस टॉकीज' बेस्ट सेलर साबित हुई। लेकिन 'नई ¨हदी' लेखन शैली का प्रयोग करने की वजह से उन्हें कठिन सवालों के लंबे दौर से गुजरना पड़ा। कार्यक्रम की शुरुआत तो उनके लेखन की ओर झुकाव से आगाज हुआ। लेकिन गहराती शाम के साथ सवाल गंभीर होते गए।
पहले पेट, फिर कलम
कार्यक्रम का संचालन कर रहे रंगकर्मी जयप्रकाश ने पहला सवाल किया 'कैसे आयी बनारस टॉकीज'। उन्होंने जवाब दिया, हमारे जैसे लोग पढ़ाई पूरी करने के बाद पहले पेट भरने का इंतजाम करते हैं। फिर उसके बाद अपने शौक को जीने के बोर में सोचते हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद जब 2007 में नौकरी लगी तो फुर्सत के क्षणों में बनारस टॉकीज लिखने का फितूर चढ़ा। साल 2009 से 2011 के बीच में इसको पूरा किया। फिर अगले दो साल में ड्राफ्ट व एडिट करने में समय लगा।
चेतन भगत ने युवाओं को किया है प्रभावित
सत्य व्यास ने कहा कि चेतन भगत की लेखन शैली ने युवा पाठकों को खूब प्रभावित किया है। चेतन भगत ने बताया कि साहित्य या कहानियां सिर्फ अकादमिक भाषा लिखने की जरूरत नहीं। आम बोलचाल की भाषा में भी कहानियां कहीं जा सकती हैं। आमतौर पर लेखक आइआइटी व आइआइएम पहुंचने वाले एचीवर्स की कहानी तो लिख देते हैं, लेकिन हमारे जैसे छात्र, जो हॉस्टल में मटरगस्ती करते थे। पढ़ाई में सामान्य थे। उनकी कहानियां कौन लिखता। बनारस टॉकीज में बीएचयू के हॉस्टल में बिताए हमारे हॉस्टल लाइफ की कहानी है।
पाठकों को पीएचडी मानकर नहीं लिखा
बातचीत के क्रम ने सवाल संचालक ने सवाल किया 'आपके साहित्य को क्या माना जाए, गंभीर या लोकप्रिय साहित्य? सत्या ने जवाब दिया, मुझे आश्चर्य होता है कि ¨हदी की 300 प्रति बिकने वाली किताब को पुरस्कार दिया जाता है, लेकिन इन किताबों पर कोई बात नहीं होती है। मैंने पहली किताब से अपने पाठकों को पीएचडी नहीं माना। हमारा मकसद अपनी लेखनी से पाठकों का भी विकास करना है।
हर तीन युवाओं की कहानी 3 इडिट्स नहीं
सत्या ने कहा कि फिल्म 3 इडिट्स ने ऐसा मानक तैयार कर दिया है कि हर नॉवेल में तीन युवाओं को कहानी इस फिल्म से प्रभावित मालूम पड़ती है। शुरुआत में नॉवेल बनारस टॉकीज में पांच पात्र थे। दोबारा ड्राफ्ट करते समय पांच पात्र के नाम मेरे मन में संदेह पैदा कर रहे थे। लिहाजा फाइनल एडिट में तीन ही पात्र का चुनाव किया। कहानी में बहुत सारे पात्रों के नाम होने पर पाठक कनफ्यूज होते हैं।
सिर्फ फिक्शन नहीं कहानियां में संदेश भी है
बातचीत के क्रम में अगला सवाल आया कि आपकी लेखनी युवा पाठकों को क्या संदेश देती है? सत्य व्यास ने जवाब दिया, हमारी कहानियों में भी युवाओं के लिए खास मैसेज होता है। अक्सर हम मौज-मस्ती के बीच छोटी-छोटी बातों पर ध्यान नहीं देते हैं। इस किताब में रोचकता से उस ओर ध्यान ले जाने की कोशिश हुई है। उदाहरण स्वरूप मोबाइल गुम हो जाने पर हम इसकी रपट पुलिस में नहीं लिखाते, लेकिन ऐसा नहीं करने से आगे क्या गंभीर परिणाम हो सकते हैं। उसका चित्रण कहानी के जरिए कहने की कोशिश की गई है।
बीएचयू लाइफ से बनारस टॉकीज
सत्य ने आगे बताया कि इस किताब के टाइटल को लेकर बहुत सोच-विचार किया। शुरुआत में इस नॉवेल का टाइटल बीएचयू लाइफ किया। फिर इस किताब को लार्जर पिक्चर से जोड़ने के लिए बनारस टॉकीज नाम रखा। बनारस टॉकीज से पहले बीएचयू टॉकीज भी दिमाग में आया, लेकिन बनारस टॉकीज शीर्षक मुझे अधिक सूट किया। उन्होंने आगे कहा कि किताब लिखने के दौरान पाठकों के परचेजिंग पॉवर का भी ध्यान रखना पड़ता है। कहानी लिखने के दौरान प्रकाशक से किताब की कीमत का अंदाजा पूछ लेता हूं। फिर उस अनुसार कहानी में शब्द सीमा व दूसरी बातों का ध्यान रखता हूं।
शब्द की वजह से कहानी का प्रवाह रोकना पड़ता है
अगला सवाल था कि आपकी कहानी में जब रोचक मोड़ आते हैं। उसी समय उसे रोक दिया गया है। ऐसा क्यों? उन्होंने जवाब दिया कि किताब लिखने के बाद प्रकाशक से शब्द सीमा के बाध्यता भी पूछनी पड़ती है। इस कारण कहीं-कहीं कहानी का प्रवाह रोकना पड़ा। लोग सवाल करते हैं कि आपने पात्रों का परिचय से ठीक से नहीं दिया। सभी चीजों में शब्द का ध्यान रखना पड़ता है और कहानी में अधिक पात्र ले आने से पाठकों में संदेह भी होने लगता है। उन्हें कहानी समझने में दिक्कत होती है।
अगली बार स्त्री पात्र पर होगा जोर
संचालक जय प्रकाश का अगला सवाल था आपकी कहानी में स्त्री पात्र एकदम से गायब सी हैं? सत्य व्यास ने जवाब दिया, इसको लेकर मैं असहज हूं। अगले नॉवेल में स्त्री पात्र पर जोर होगा। उन्होंने आगे कहा कि हमारे लेखनी पर लोग सवाल खड़े करते हैं। लेकिन मैंने आज की जेनरेशन की भाषा का प्रयोग किया। हमारे दोस्तों का ही कहना है कि तुम्हारी लेखनी में भाषा नहीं बोली है। बोली में आम बोलचाल में प्रयोग किए जाने वाले शब्द तो आएंगे ही।
हमारी नॉवेल नॉबेल प्राइज जीतने लायक
जब पाठक वर्ग से सवाल आया कि आप अपने नॉवेल को कहां देखते हैं? उन्होंने जवाब दिया कि मैं अपनी नॉवेल को नॉबेल प्राइज जीतने लायक मानता हूं। मुझसे लोग पूछते हैं, बतौर लेखक आप खुद को कहां मानते हैं। भई, हमारी नॉवेल की 26 हजार प्रति बिकी गई। पाठक को तय करने दीजिए न, हमारी भाषा कैसे है। हमारी नॉवेल बनारस टॉकीज 2009 में लिखी गई। जाहिर है उस समय हुए देश हुए आतंकवादी घटनाओं का अक्स हमारी कहानियों में दिखता है।
मेरी लेखनी को लोगों ने नूडल साहित्य कहा
आगे सत्य व्यास ने कहा कि कहानी लिखते समय मन की भावना के साथ बाजार का भी ध्यान रखना होता है। पहली बार में कहानी लिखते समय अपनी भावना का इजहार करता हूं। उसके बाद प्रकाशक से शब्द सीमा पूछने के बाद संक्षेपण भी करना होता है। हर किताब लिखने के खुद को भी विकसित होते देख रहा हूं। लोगों ने हमारी लेखनी को नूडल व लुग्धी साहित्य कहा। लेकिन हमारी लेखनी युवा पाठकों को साहित्य से जोड़ रही है। बनारस टॉकीज व दिल्ली दरबार दोनों में कई तथ्यात्मक गलतियां हैं। लेकिन इस बारे में कोई बात नहीं करता है।
84 के दंगों पर अगली किताब
सत्य व्यास ने आगे जानकारी दी कि वे अगली किताब 84 के दंगों पर लिख रहे हैं। जो बोकारो में बेस्ड होगी। इसमें दंगे में बचाए गए सिख परिवार की दास्तां होगी। उन्होंने कहा कि यदि बहुमत के आधार कला का स्तर तय होता है तो इसमें क्या बुराई है। लोग किताब के बारे में वही जवाब सुनना चाहते हैं, जो वे पहले अपने मन में सोच रखते हैं।
ये गणमान्य थे उपस्थित
आइएएस त्रिपुरारी शरण, फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम, लेखिका भावना शेखर, रंगकर्मी अनीश अंकुर, नवरस स्कूल ऑफ परफॉर्मिग आटर्स की ओर से अन्विता प्रधान, सुशील भारद्वाज, विनीत, शशांक व मुकुट शेखर आदि।