फोटोग्राफी की बदलती दुनिया बयां करते ये कैमरे
19 अगस्त को पूरी दुनिया में विश्व फोटोग्राफी दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
पटना। 19 अगस्त को पूरी दुनिया में विश्व फोटोग्राफी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। फोटोग्राफी के साथ ही बात आती है कैमरे की। कैमरा ही वह उपकरण है, जिसने फोटोग्राफी दुनिया को समृद्ध बनाया। जितना समृद्ध फोटोग्राफी का इतिहास है, उतना ही समृद्ध है कैमरों का इतिहास। आज स्मार्टफोन में हाई रिजोल्यूशन वाले कैमरे आ गए हैं, डिजिटल कैमरों ने फोटोग्राफी की दुनिया को पूरी तरह बदल कर रख दिया है। लेकिन, इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कैमरों के इतिहास को एक लंबा सफर तय करना पड़ा है। राजधानी के एक पुराने और मशहूर फोटोग्राफर रहे मनोरंजन घोष। वे खुद तो इस दुनिया से रुखसत हो गए, लेकिन कैमरों का एक मिनी संग्रहालय अपने पीछे छोड़ गए। पेश है प्रभात रंजन की रिपोर्ट
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अपने पूर्वजों की निशानियां को सहेज कर रखना बड़ी बात है। शहर के प्रख्यात फोटोग्राफरों में से एक मनोरंजन घोष ने ऐसा किया। उन्होंने समय के साथ बदलते कैमरों को धरोहर के तौर पर संजोकर रखा। उनके कैमरों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय लोगों की तस्वीर कैद कीं। शहर को पिन होल कैमरे से लेकर फ्लेट या ग्रुप कैमरे, स्मॉल प्रोजेक्टर कैमरे, 35 एमएम प्रोजेक्टर कैमरे आदि कैमरों से रूबरू करवाया। शहरवासियों को अलग-अलग कैमरों से फोटो खींचकर लोगों को फोटोग्राफी विधा के बारे में अवगत कराया। आज भले ही मनोरंजन घोष इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनकी स्मृतियों को को उनके पुत्र और शहर के वरिष्ठ मूर्तिकार रजत घोष ने संभालकर रखा है।
मनोरंजन घोष ने कैमरों की बदलती दुनिया को न केवल नजदीक से देखा, बल्कि इन चीजों पर शोधकर कई कैमरों का निर्माण खुद ही किया। मनोरंजन घोष के पूर्वज बंगाल को छोड़कर 1790 के करीब पटना आए थे, जो फिर पटना के होकर रह गए। मनोरंजन घोष ने अपनी माता राधा देवी के नाम पर पटना सिटी में पहला राधा स्टूडियो खोला, जो अपने जमाने में काफी मशहूर हुआ। कुछ वर्षो तक पटना में चलने के बाद स्टूडियो को अशोक राजपथ स्थित पटना कॉलेज के सामने एमके घोष के नाम से शिफ्ट कर दिया।
बड़े हस्तियों के चेहरे को कैमरे ने किया कैद -
अपनी पुरानी स्मृतियों पर से पर्दा हटाते हुए रजत घोष बताते हैं कि पटना कॉलेज के सामने खुले एमके घोष स्टूडियो ने कई बड़े लोगों को अपने कैमरे में कैद किया। उन दिनों देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद पटना कॉलेज के छात्र थे जो अपने दोस्तों के साथ फोटो खींचाने के लिए स्टूडियो में आया करते थे। रजत कहते हैं, पिताजी ने आजादी के पहले ब्रिटिश हुकूमत की कई खास तस्वीरें अपने कैमरे में उतारीं। पंडित जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, अब्दुल गफ्फार खां, कर्पूरी ठाकुर, मौलाना अबुल कलाम, इंदिरा गांधी आदि बड़े लोगों की तस्वीरें लेने का भी उन्हें मौका मिला।
पिता ने शहर में रखी थी कैमरे की नींव -
65 वर्ष की पूरी कर चुके रजत बताते हैं कि उनके पिता ने ही शहर में पहला स्टूडियो खोला। उन दिनों लोगों के लिए कैमरे को देखने और उससे फोटो लेना किसी आश्चर्य से कम नहीं होता था। इनके पास मनोरंजन घोष डे एंड कंपनी का बनाया ग्रुप करीब 70 साल पुराना कैमरा है। इसकी कीमत डेढ़ सौ रुपये हुआ करती थी। इसके अलावा गु्रप कैमरे की और रेंज जिसकी कीमत ढाई सौ रुपये हुआ करती थी, इनके पास है। इसमें शीशे के ग्लास के निगेटिव का इस्तेमाल होता था। इस निगेटिव को अरफा कंपनी के पेपर पर तैयार किया जाता था। रजत बताते हैं कि पिताजी ने कई कैमरों का निर्माण किया था, जिसकी बड़ी डिमांड होती थी। लोग उनसे खरीद कर ले जाते थे। मनोरंजन घोष ने वर्ष 1960 में स्मॉल प्रोजेक्टर तैयार किए थे, जिसकी कीमत 500 रुपये हुआ करती थी। इसमें छोटे से निगेटिव से चित्र तैयार किया जाता था और शीशे पर स्टील फोटोग्राफी को देखने की सुविधा थी। इसके अलावा मनोरंजन घोष के पास 1950 का बना एमएम प्रोजेक्टर और फुटपाथ कैमरा था।
फोटोग्राफी को लेकर मनोरंजन घोष ने किया अध्ययन -
रजत घोष बताते हैं कि उनके पिता मनोरंजन घोष ने फोटोग्राफी की तकनीक का बारीकी से अध्ययन किया। घोष ने उस दौर में ताड़पत्र पर फोटोग्राफी, कैमरे और प्रोजेक्टर से संबंधित कई विषयों पर छोटी-छोटी जानकारी लिखी जो आज भी सुरक्षित है। रजत बताते हैं कि बहुत सारी जानकारी पिता ने ताड़ पत्र पर लिखी थी, जिसमें कुछ रख-रखाव में कमी के कारण नष्ट हो गई। जो शेष है, उसे सुरक्षित रखा गया है।
पिता की विरासत को संभाल रहे घोष -
रजत के मिनी संग्रहालय में में फुटपाथ कैमरे, फ्लेट या ग्रुप कैमरा, स्मॉल प्रोजेक्टर, 35 एमएम प्रोजेक्टर कैमरा, इलेक्ट्रॉनिक प्रोजेक्टर, ब्लैक एंड व्हाइट लार्जर, लालटेन प्रोजेक्टर, यासिका डी, यासिका 635, रौली फ्लेक्स जैसे कई प्रकार के कैमरे आज भी सुरक्षित हैं।
पटना सिटी में साफ होती थी निगेटिव -
फोटो खींचने के बाद उसकी निगेटिव को पटना सिटी में साफ किया जाता था। रजत बताते हैं काफी वर्षो तक ब्लैक एंड व्हाइट फोटो का क्रेज था फिर इसके बाद रंगीन कैमरे का दौर आया। इसके बाद उसके निगेटिव को साफ करने के लिए बड़े शहरों में भेजा जाता था। बाद के दौर में मनोरंजन घोष को कोडक कंपनी की डीलरशीप भी मिली थी।
घर को बना दिया म्यूजियम -
कुनकुन सिंह लेन में अपने पुराने घर को रजत घोष ने एक संग्रहालय के रूप में विकसित किया है। घर में जहां एक ओर घोष की बनाई अनमोल कलाकृतियां हैं तो दूसरी ओर उनके पिता के कई पुराने कैमरे और प्रोजेक्टर हैं। घोष बताते हैं कि सरकार अगर मदद करे तो इन चीजों को लेकर बेहतर संग्रहालय बनाया जा सकता है।
बेटर फोटोग्राफी मैगजीन ने घोष के कामों को सराहा -
मनोरंजन घोष का जन्म पटना में 1909 में हुआ था। घोष की बचपन से ही रचनात्मक कामों में रुचि थी। वे बचपन में पेंटिंग और स्केच करते थे। घोष स्कूल की छुट्टी के बाद बंगाल में अपनी बड़ी बहन के घर गए, जहां पर उन्होंने फोटोग्राफी की दुनिया देखी। घोष के बहनोई पेशेवर फोटोग्राफर थे। घोष को पहली बार फील्ड व्यू कैमरे से रूबरू होने का मौका मिला और फिर कैमरे ने उनकी जिंदगी में स्थान ले लिया। उन्होंने अपने बहनोई से फोटोग्राफी की कई विधाओं के बारे में जानकारी प्राप्त की। मनोरंजन घोष के पिता राधाकिशोर घोष को इनके काम पसंद नहीं आया, लेकिन बाद में उन्होंने भी सहमति दे दी। उन्होंने 1920 के दौरान शहर में स्टूडियो खोला था।
श्वेत-श्याम तस्वीर में भरा रंग -
आजादी के पहले मनोरंजन घोष फोटोग्राफी में अपनी पहचान बनाने के लिए काम करते रहे। उन्होंने ब्रोमाइड पर तेल पेंट के जरिए श्वेत-श्याम (ब्लैक एंड व्हाइट) तस्वीरों को रंग भरकर उसे जीवंत किया। उन्होंने रंगीन पाउडर के साथ तस्वीरों को साफ करने का काम आरंभ किया। उन्होंने चित्रों और वास्तविक तस्वीरों को एक आकर्षक मिश्रण बना उसे बहुमूल्य बनाया। उनके स्टूडियो में शुरुआती दौर में ज्यादातर ब्रिटिश अधिकारी आया करते थे।
मनोरंजन ने बनाए थे लालटेन प्रोजेक्टर -
मनोरंजन घोष एक फोटोग्राफर होने के साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। दूर दृष्टि रखने वाले घोष ने गांव-देहात में पढ़ने वाले बच्चों को शिक्षित करने के लिए लालटेन प्रोजेक्टर का निर्माण किया था, जो एक लालटेन की तरह दिखता है। गैस लालटेन के पीछे अवतल दर्पण लगा है। जो प्रकाश को एकत्र कर उस पर एक छवि के साथ स्लाइड के माध्यम से प्रोजेक्ट करता है। प्रकाश की किरणें छिद्र को पार करते हुए लेंस से टकराती हैं। लेंस एक स्क्रीन पर स्लाइड से मूल छवि की तस्वीर बनाता है। इन स्लाइड के जरिए गांव देहात में रहने वाले छात्रों को शिक्षित करने के लिए बनाया गया था। बिन बिजली के चलने वाले इस प्रोजेक्टर ने आधुनिक प्रोजेक्टर के दौर को प्रोत्साहित किया।