किसानों के समग्र उत्थान के लिए पारंपरिक खेती को आधुनिक बनाने की जरूरत
किसानों को नई तकनीक व शोध के प्रति आग्रही बनाने के साथ उर्वरकों के उचित प्रयोग की जानकारी देने की सख्त जरूरत है। किसानों को यदि उनके उत्पाद का सही मूल्य मिलने लगेगा तो इससे उनकी आर्थिक स्थिति तो मजबूत होगी ही कृषि उत्पादकता पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।
स्टेट ब्यूरो, पटना। राज्य में किसानों के समग्र उत्थान के लिए पारंपरिक खेती को आधुनिक बनाने के साथ कृषि उत्पादों का बेहतर बाजार उपलब्ध कराने की दिशा में ठोस पहल जरूरी है। यह अच्छी बात है कि प्रदेश सरकार कृषि उत्पादों के लिए उचित बाजार की व्यवस्था में जुटी है। सभी अनाज, फल-सब्जी एवं मछली की अलग-अलग बाजार व्यवस्था, स्टोरेज आदि की सुविधा किसानों को उपलब्ध कराने की योजना बनी है। इस पर करीब 27 सौ करोड़ रुपये खर्च का अनुमान है। इस योजना को यथाशीघ्र मूर्त रूप देने का प्रयास होना चाहिए।
किसानों को यदि उनके उत्पाद का सही मूल्य मिलने लगेगा तो इससे उनकी आर्थिक स्थिति तो मजबूत होगी ही कृषि उत्पादकता पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। साथ ही कृषि शिक्षा व शोध को बढ़ावा देने के प्रयासों को तेज करना होगा। सुखद है कि सरकार इस दिशा में सजग-सक्रिय है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के अधीन तीन कृषि महाविद्यालय की स्थापना इसी की कड़ी है। इसके तहत सबौर में कृषि जैव प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, भोजपुर में कृषि अभियंत्रण महाविद्यालय व पटना में कृषि व्यवसाय प्रबंधन महाविद्यालय की स्थापना की जाएगी।
जैविक और मौसम अनुकूल खेती पर खास जोर दिया जा रहा है। किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए उनकी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करना आवश्यक है। कृषि लाभकारी हो, फसलों की कीमत उचित मिले सभी को इसकी चिंता करनी चाहिए। कृषि क्षेत्र में योजनाओं व कार्यक्रमों की कोई कमी नहीं है, लेकिन जब तक इन्हें सही तरीके से धरातल पर नहीं उतारा जाएगा तब तक अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं हो सकता।
किसानों को नई तकनीक व शोध के प्रति आग्रही बनाने के साथ उर्वरकों के उचित प्रयोग की जानकारी देने की सख्त जरूरत है। अभी अधिसंख्य किसान अज्ञानतावश संतुलित मात्र में उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। धान-गेहूं के चक्कर में फसल चक्र नहीं अपनाते। दलहन की पर्याप्त खेती नहीं हो रही। कृषि विज्ञानियों का सुझाव है कि मिट्टी में एक बार जिंक डालने के बाद अगली छह फसल तक खेतों में जिंक देने की जरूरत नहीं रहती है, लेकिन किसान हर फसल की खेती में जिंक मिला रहे हैं। चिंता की बात यह है कि इससे मिट्टी के साथ पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है। इसे रोकने के लिए लगातार अभियान चलाकर किसानों को जागरूक करना होगा।