ज्योति जैसी लाखों साइकिल वाली लड़कियां हैं बिहार में, निकल पड़ी हैं साहस-संघर्ष की नई यात्रा पर
आजकल साइकिल वाली लड़की... सुनते ही दरभंगा की ज्योति याद आती है। पिता को साइकिल पर बिठाकर लंबे सफर पर चल पडऩे वाली तस्वीर सबने देखी है...। जानें ऐसे ही लाखों साइकिल वाली को।
विभाष झा, दरभंगा। आजकल साइकिल वाली लड़की... सुनते ही दरभंगा की ज्योति कुमारी याद आती है। पिता को साइकिल पर बिठाकर लंबे सफर पर चल पडऩे वाली तस्वीर सबने देखी है...। बिहार में ऐसी 25 लाख से अधिक 'साइकिल वालियां' हैं...। इंटरनेट के सर्च इंजन में साइकिल गर्ल ऑफ बिहार की-वर्ड लिखते ही ब्लू-सफेद ड्रेस और लाल रिबन बांधे खेतों के बीच से साइकिल चलातीं स्कूली लड़कियों की सैकड़ों तस्वीरें स्क्रीन पर उभर आती हैं। इन लड़कियों के साहस और संघर्ष के किस्से भी अनगिनत हैं।
गुरुग्राम से 1200 किलोमीटर गांव के लिए साइकिल पर चल पडऩे में ज्योति को जितनी लगन, हिम्मत और मेहनत की जरूरत पड़ती है, कभी-कभी उससे कहीं अधिक मेहनत और हिम्मत की जरूरत पड़ती है, आंगन से निकलकर हाईस्कूल तक पहुंचने में। ज्योति पासवान के तरह की परिवार मनीषा भी ऐसी ही हैं। अब वह दो बच्चों की मां हैं। वह अपना परिचय नहीं छपने देना चाहतीं। कहती हैं कि 'पिता को दुख होगा। जब वह नौवीं में पढ़ती थीं, तो स्कूल से पैसा मिल रहा था, फिर भी पिता ने साइकिल खरीदने की अनुमति नहीं दी। जिद किया तो मारपीट हुई। फिर इस शर्त पर साइकिल आई की भाई चलाएगा। तुम बैठोगी।'
मनीषा हुलसकर बताती हैं, 'मैंने छिपकर साइकिल चलाना सीखा। फिर एक दिन हिम्मत कर निकल पड़ी। उस दिन भी मार पड़ी थी। लड़की होकर अकेले साइकिल से स्कूल जाएगी, यह मंजूर नहीं था। फिर मोहल्ले से जब कई और लड़कियां जाने लगीं, तो अनुमति मिली।' मनीषा कहती हैं कि 'वह साइकिल अभी भी मायके में रखी है। अब भतीजी चलाती है।' मनीषा की तरह मीठू, निशू आशा, सरिता जैसी कई लड़कियों ने अपनी पुरानी साइकिल संभालकर रखी है।
वर्ष 2007-08 में बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर बिहार में मुख्यमंत्री साइकिल योजना लागू हुई थी। तब पहली बार नौंवी कक्षा की एक लाख 54 हजार लड़कियों को स्कूल जाने के लिए साइकिल मिली। वर्ष 2019-20 में 5 लाख 92 हजार लड़कियों को साइकिल दी गई है। अब तक करीब 25 लाख लड़कियों को साइकिल का लाभ मिल चुका है। ज्योति की बड़ी बहन भी उनमें से एक है। उसे वर्ष 2013 में इस योजना के तहत साइकिल मिली थी। ज्योति ने बड़ी बहन की साइकिल से चलाना सीखा था। ज्योति के पास आज चार नई साइकिलें हैं। फिर भी पुरानी साइकिल को संभालकर रखना चाहती है। वह कहती है कि उसे देश-दुनिया में जो प्रसिद्धि मिली है, उसमें सेकेंड हैंड साइकिल का बहुत बड़ा योगदान है।
गुरुग्राम में घर आने के लिए पिता ने यह साइकिल खरीदी थी। अगले माह से वह पेशेवर साइकिलिंग की शुरुआत करेगी। ज्योति के पास साइकिलिंग को लेकर कई ऑफर आ चुके हैं। ऑल इंडिया साइकिलिंग संघ ने ज्योति को ट्रायल के लिए आमंत्रित किया है। साथ ही जिला साइकिलिंग संघ और राज्य संघ की ओर से ट्रेनिंग देने की पहल की गई है। ज्योति के बहाने अब बिहार की लड़कियां साइकिलिंग को कॅरियर बनाने के बारे में सोचने लगी हैं। लक्ष्मीसागर की कविता कुमारी कहती हैं कि ज्योति को देख मैं भी साइकिलिंग में कॅरियर बनाने की तैयारी में हूं। इसके लिए पिछले एक सप्ताह से मैदान जाकर सुबह में प्रैक्टिस करती हूं। बिहार में साइकिल की यह नई यात्रा है।