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सत्य का बोध होने पर शब्द की आवश्यकता नहीं होती

पाटिलपुत्र दिगंबर जैन समिति की ओर से कांग्रेस मैदान स्थित जैन मंदिर में पर्युषण पर्व के मौके पर हुए आयोजन।

By JagranEdited By: Published: Tue, 18 Sep 2018 07:35 PM (IST)Updated: Tue, 18 Sep 2018 07:35 PM (IST)
सत्य का बोध होने पर शब्द की आवश्यकता नहीं होती
सत्य का बोध होने पर शब्द की आवश्यकता नहीं होती

पाटिलपुत्र दिगंबर जैन समिति की ओर से कांग्रेस मैदान स्थित जैन मंदिर में पर्युषण पर्व के मौके पर पूजा-अर्चना व सत्संग का आयोजन

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जैन महापर्व पर्युषण के पांचवें दिन कदमकुआं स्थित पाटलिपुत्र दिगंबर जैन समिति की ओर से जैन मंदिर परिसर में मीठापुर, मुरादपुर, गुलजारबाग आदि जैन मंदिरों में जैन श्रद्धालुओं ने शांति धारा पूजन की। पूजन के बाद दमोह मध्य प्रदेश से पधारे जैन ज्योतिष प्राच्य विद्या अनुसंधान केंद्र के निदेशक प्रतिष्ठाचार्य डॉ. पंडित अभिषेक जैन ने सत्संग के दौरान जैन श्रद्धालुओं को मानव धर्म का पाठ करेंगे। पांचवे दिन की शांतिधारा पूजा में चंद्रेश जैन, प्रशांत जैन, राजेश जैन आदि मौजूद थे। पूजन के दौरान जैन मुनि आचार्य विपुल सागर की उपस्थिति में मुनि आचार्य भद्रबाहु महाराज ने पाठ किया। आचार्य विपुल सागर ने जैन श्रद्धालुओं को जैन पर्युषण पर्व के दौरान आत्मा के दस स्वभाव पर विजय पाने की उपाय बताए। मुनि ने श्रद्धालुओं को जीवन में सत्य के बारे में अवगत कराते हुए कहा जीवन में सत्य आ जाने से इंसान मौन हो जाता है। सत्य का बोध होने पर शब्द की आवश्यकता नहीं होती। मुनि ने कहा कि सत्य दो प्रकार का होता है।

सत्य को धारण करने वाला होता है अपराजित

सत्संग के दौरान मुनि ने कहा कि जब व्यक्ति क्रोध, अहंकार, माया एवं लोभ को नियंत्रित कर लेता है तो सहज ही उसके जीवन में सत्य का अवतरण होता है। सत्य को धारण करने वाला हमेशा अपराजित, सम्मानीय एवं श्रद्धेय होता है। जिसकी वाणी व जीवन में सत्य धर्म अवतरित होता है उसकी संसार सागर से मुक्ति निश्चित है। सत्य आत्मा का स्वाभाविक गुण है। सत्य आचरण के बिना आत्म शुद्धि असंभव है। सत्य ही आत्मा का धर्म है। जो मनुष्य तप एवं साधना के द्वारा सत्य को प्राप्त कर लेता है वह अपनी आत्मा पर विजय प्राप्त कर लेता है। मुनि आचार्य भद्रबाहु ने कहा कि सत्य का विरोधी भाव झूठ बोलना तथा मिथ्या व्यवहार करना है। सत्य को ब्रह्मा कहा गया है और आत्मा का रूप बताया गया है। सत्य को सभी धर्मों ने स्वीकार किया है। सत्य का पालन किए बिना अपने स्वरूप का ज्ञान नहीं हो पाता और साधना भी सफल नहीं होती। सत्संग के दौरान शांतिलाल जैन, रतनलाल जैन, नंदलाल जैन, निर्मल बड़जात्या, कैलाश पांडया, राजेश गंगवाल, सुबोध पहाड़िया, महेश झांजरी, कमल पाटनी, प्रकाश साकुनिया, राजकुमार पहाड़िया, शिखर चंद गंगवाल, मनोज बड़जात्या, भागचंद बागड़ा सहित आदि संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।


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