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पावापुरी के श्‍वेतांबर मंदिर का मनोरम दृश्‍य आपको भी कर देगा मुग्‍ध, भगवान महावीर ने यही किया था देह त्‍याग

पावापुरी का श्‍वेतांबर मंदिर जैनों की श्रद्धा का केंद्र है। पावापुरी के श्वेतांबर मंदिर को गांव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इसी श्वेतांबर मंदिर में जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने 1कार्तिक अमावस्या को देहत्याग किया था।

By Shubh Narayan PathakEdited By: Published: Sat, 31 Jul 2021 11:50 AM (IST)Updated: Sat, 31 Jul 2021 11:50 AM (IST)
बिहार के पावापुरी में स्थित प्रसिद्ध जैन मंदिर। जागरण

नालंदा, जागरण टीम। बिहार की धरती धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से काफी समृद्ध है। यहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, बौद्ध और जैन धर्मों के महत्‍वपूर्ण तीर्थस्‍थल हैं। गया का विष्‍णुपद मंदिर दुनिया भर के हिंदुओं की आस्‍था का केंद्र है तो पटना साहिब का तख्‍त श्री हरिमंदिर साहिब सिखों का। इसी तरह बोधगया का महाबोधि मंदिर बौद्ध मतावलंबियों का तो पावापुरी का श्‍वेतांबर मंदिर जैनों की श्रद्धा का केंद्र है। पावापुरी के श्वेतांबर मंदिर को गांव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इसी श्वेतांबर मंदिर में जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने 16 पहर तक अपने अमृत वचनों की अखंड देशना देते हुए कार्तिक अमावस्या के अंतिम पहर में स्वाति नक्षत्र में 72 वर्ष की आयु में देहत्याग किया था।

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दीपावली के अवसर पर पावापुरी में लगता है मेला

पावापुरी में प्रत्येक साल दीपावली के अवसर पर भगवान महावीर की निर्वाण स्थली पर मेला का आयोजन होता आ रहा है। बताया जाता है कि भगवान महावीर स्वामी ने जिस स्थान पर मोक्ष प्राप्त किया था, वहां प्रभु की स्मृति में उनके अग्रज सम्राट नंदी वर्धन ने एक चबूतरा बनवा कर प्रभु के चरण स्थापित किए। कालांतर में उसी चबूतरे के स्थान पर विशाल मंदिर बनवाया एवं समय-समय पर इस मंदिर का जीर्णोद्धार होता रहा। प्राप्त अभिलेखों के अनुसार वर्ष 1631 में मुगल बादशाह शाहजहां के शासनकाल में बिहार शरीफ के महात्मा संघ ने इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इसे विमान की आकृति दी गई। आचार्य जिनराज सूरी ने प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाई।

राजकीय स्‍तर पर मनता है पावापुरी महोत्‍सव

पावापुरी में हर साल दीपावली के मौके पर दो दिवसीय मेला लगता है। कार्तिक मास की अमावस्या की रात में यह आयोजन सदियों से हो रहा है। इस मेले में क्षेत्र के ग्रामीणों एवं देश - विदेश के जैन धर्मावलंबियों का जमावड़ा लगता है। बीते पांच साल से राज्य सरकार की ओर से दो दिवसीय राजकीय पावापुरी महोत्सव मनाया जा रहा है। बीते साल कोरोना के कारण यह आयोजन नहीं किया गया।

पावापुरी के तीनों मंदिरों से निकलते हैं रथ

दीपावली के मौके पर मुंबई, गुजरात, राजस्थान, जबलपुर तथा विदेशों से श्रद्धालुगण आते हैं। जैनियों द्वारा पावापुरी के तीनों मंदिर से रथ यात्रा निकाली जाती है। दिगंबर रथ, समोशरण रथ तथा श्वेतांबर रथ तीनों रथ की बोली लगती है, रथ पर भगवान महावीर की प्रतिमा को  विराजमान करके अलग - अलग समय पर भगवान महावीर के निर्वाण स्थल जलमंदिर तक लाया जाता है और वहां विशेष पूजा - अर्चना की जाती है। रथ यात्रा में शामिल श्रद्धालु जय बोलो महावीर की, जय बोलो  त्रिशला नंदन वीर की नारे लगाते चलते हैं। 

दीपावली पर पूजा-अर्चना का खास महत्‍व

पावापुरी निर्वाण स्थल जल मंदिर से पूजा कर दिगंबर रथ पांडुक शिला मंदिर, सामोशरण रथ, नया मंदिर तक जाता है। इसी तरह श्वेतांबर रथ को भी भ्रमण कराया जाता है। जैनियों की मान्यता है कि दीपावली पर पूजा-अर्चना करने से निर्वाण भूमि के जरिए उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।

प्रसिद्ध है यहां के लाडू की बोली

कार्तिक अमावस्या को पावापुरी जल मंदिर में 5 किलो से लेकर 51 तक के लाडू चढ़ाए जाते हैं। इन लाडू को बनाने की प्रक्रिया भी बड़ी शुद्ध व विशिष्ट होती है। कारीगर स्नान ध्यान करके साफ-सुथरे सूती चादर पहन कर लाडू बनाते हैं। जल मंदिर में लाडू चढ़ाने को लाखों की बोली लगती है। जो सबसे बड़ी बोली लगाता है, उसे सबसे पहले मंदिर में लाडू चढ़ाने का सौभाग्य मिलता है। सुबह चार बजे बोली लगाने की परंपरा शुरू की जाती है। सभी श्रद्धालु रात में जल मंदिर परिसर में निर्वाण जाप करते हैं।

नामी - गिरामी कलाकार देते रहे हैं प्रस्तुति

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पांच साल पहले दीपावली के मौके पर दो दिनों के पावापुरी राजकीय महोत्सव का शुभारंभ किया था। इसमें  देश-विदेश के नामचीन कलाकार प्रस्तुति देते रहे हैं। कई तरह के स्टाल लगाए जाते हैं। इस दौरान पावापुरी के मंदिरों को भव्य तरीके से सजाया जाता है।

कमल पुष्प से भरा है सरोवर

इन दिनों पावापुरी जल मंदिर कमल पुष्प के पत्तों से भरा हुआ है। नीचे मछलियां अठखेलियां कर रही हैं तो सतह पर बत्तख की तरह दिखने वाली वन मुर्गियों का साम्राज्य है। इन दिनों मंदिर बंद है, परंतु पर्यटकों के आवागमन के दिनों में लोग इन जलचरों को मूढ़ी खिलाना नहीं भूलते।


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