Bihari Migrants: बिहार लौटे प्रवासी मजदूरों ने कहा: नून-रोटी खाएंगे, अब पानीपत नहीं जाएंगे... ठीक है...
लॉकडाउन के दौरान सैकड़ों मील की दूरी तय कर जैसे-तैसे अपने गांव पहुंचे प्रवासी बिहारियों ने दोबारा काम के लिए हरियाणा जाने से इनकार कर दिया। मामला बिहार के बक्सर का है।
बक्सर, रंजीत कुमार पांडेय। लॉकडाउन के दौरान सैकड़ों मील की दूरी तय कर जैसे-तैसे अपने गांव पहुंचे प्रवासी बिहारियों ने दोबारा काम के लिए हरियाणा जाने से इनकार कर दिया। मामला बक्सर जिले के मठिला गांव का है। जहां 100 से अधिक प्रवासी मजदूरों को वापस ले जाने आए फैक्ट्री मालिक को मजदूरों ने 'नून-रोटी खाएंगे, अब पानीपत नहीं जाएंगे' कहते हुए साफ मना कर दिया। इस गांव के 110 मजदूर पानीपत स्थित धागा फैक्ट्री में काम करते थे। लॉकडाउन में इन्हें फैक्ट्री मालिक ने मदद देने से इनकार कर दिया था। अनलॉक की स्थिति में इन्हें वापस ले जाने के लिए गुरुवार को फैक्ट्री मालिक गाड़ी लेकर गांव पहुंचे थे।
लॉकडाउन में मरने को छोड़ दिया हमें
पानीपत की शिवा धागा फैक्ट्री के मालिक और ठेकेदार श्रमिकों को लेने के लिए मठिला गांव में सुबह पांच गाड़ी लेकर पहुंच गए। उनके अचानक पहुंचने से गांव के लोग हतप्रभ रह गए। कंपनी के ठेकेदारों ने श्रमिकों को दस हजार रुपये अग्रिम देने का लालच भी दिया, लेकिन श्रमिक जाने को तैयार नहीं हुए। श्रमिक दिलीप ततवां, प्यारेलाल रजक, पंकज कुमार, बुढ़ा ततवां और पिंटू कुमार का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें मालिक ने मरने को छोड़ दिया। उस दौरान रोज एक किलो आटे में 10-12 लोगों ने रोटी खाकर दिन गुजारे और सामान बेचकर तीन-तीन हजार रुपये देकर ट्रक से गांव पहुंचे। अब वे गांव में कम ही कमाएंगे, बाहर नहीं जाएंगे।
मजदूरों की कमी से फैक्ट्री बेहाल
श्रमिकों को लेने पहुंचे ठेकेदारों के चेहरे पर ङ्क्षचता की लकीरें साफ झलक रही थी। मान-मनौव्वल के बाद भी जब श्रमिक नहीं मानें तो वे पास के कंजिया गांव गए, जहां से छह श्रमिक जाने को तैयार हुए। पानीपत से आए ठेकेदार कांग्रेस ङ्क्षसह ने बताया कि वह शिवा धागा फैक्ट्री के लिए कामगारों की व्यवस्था करते हैं। गारमेंट फैक्ट्रियों में कच्चे माल की मांग बढ़ गई है और सूत मिल में श्रमिक कम पड़ रहे हैं। फैक्ट्री चलाना मुश्किल हो रहा है। ठेकेदारों ने बताया कि बिहार में श्रमिकों को लेने के लिए वहां से 40-45 गाडिय़ां आई हैं।