कभी पत्थर तोड़ते शुरू किया था सफर, आज 'द ग्रेट खली' ...इस बात का रहा अफसोस
द ग्रेट खली को पटना पसंद आया, लेकिन यहां घूम नहीं पाने का अफसोस रहा। पटना आने पर उन्होंने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में अपने बारे में कई बातें बताईं। आप भी जानिए।
पटना [चारुस्मिता]। दलीप सिंह राणा उर्फ द ग्रेट खली ने डब्ल्यूडब्ल्यूई (वर्ल्ड रेसलिंग इंटरटेनमेंट) के रिंग में दुनिया के सभी बड़े रेसलर को पटका है। विश्वविख्यात अंडरटेकर हो या फिर ट्रिपल एच, सबके खिलाफ जीत हासिल करते रहे हैं। पटना आकर वह थोड़े मायूस दिखे। वजह थी कि वे ऐसे कई शहरों में तो जाते हैं, लेकिन अपने शरीर की वजह से वहां घूम-फिर नहीं पाते। थोड़ी सी मायूसी जताने के बाद वह हालात से संतोष करते नजर आए।
पत्थर तोडऩे वाले दलीप सिंह राणा से ग्रेट खली बनने तक का सफर काफी दिलचस्प है। पढि़ए बातचीत के प्रमुख अंश-
पटना पहली बार आए हैं, कहां घूमेंगे?
- बिहार इससे पहले भी आया हूं, लेकिन पटना पहली बार आना हुआ है। आपको लगता है कि मैं कहीं घूम पाऊंगा? हंसते हुए... इच्छा तो बहुत है घूमने की, लेकिन देखिए पूरी होती है या नहीं।
कैसा लगता है द ग्रेट खली तक का सफर ?
- पंजाब के छोटे से गांव घिराइना से पत्थर तोड़ते हुए सफर की शुरुआत हुई। इसके बाद पंजाब पुलिस में आया और फिर रेसलिंग में। कैलीफोर्निया में प्रशिक्षण लेने से डब्ल्यूडब्ल्यूई में खेलने तक बड़ी मेहनत की। लोग रेसलिंग को बहुत आसान समझते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। रेसलिंग बिना प्रॉपर ट्रेनिंग नहीं हो सकती है।
भारत में डब्ल्यूडब्ल्यूएई कितना सफल रहा है?
- भारत में भी इसकी काफी लोकप्रियता है। पूरी दुनिया में लोग रेसलिंग को बेहद पसंद करते हैं। मुझे भारत में रेसलिंग के लिए एकेडमी खोलनी थी, इसलिए आया। पंजाब में रेसलिंग एकेडमी खोली है। इसमें पूरे भारत से रेसलिंग के लिए लोग आ रहे हैं। कई रेसलर उभरकर सामने आए हैं। सीडब्ल्यूई में कविता देवी देश का नाम रोशन कर रही हैं।
गांव में कुश्ती अब नहीं दिखती? आपको चिंता नहीं होती?
- नहीं, ऐसा नहीं है। आज भी देश में लोग कुश्ती का आयोजन करते हैं। पंजाब के हर गली, हर नुक्कड़ पर आपको ऐसे युवा दिख जाएंगे। इसलिए एक सिरे से इसे खारिज करना ठीक नहीं। युवाओं में इसका क्रेज है। फिल्मों में इसे दिखाए जाने से लोकप्रियता बढ़ी है।