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वोट बैंक के लिए तेजस्वी ने बदली लालू की शैली, सवर्णों को लुभाने की कोशिश

कभी सवर्णों को तरजीह नहीं देने वाले लालू प्रसाद की पार्टी राजद ने अपनी शैली बदल ली है। राजद ने सवर्णों के लिए भी अपना दरवाजा खोल दिया है।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Sun, 24 Jun 2018 02:00 PM (IST)Updated: Sun, 24 Jun 2018 08:41 PM (IST)
वोट बैंक के लिए तेजस्वी ने बदली लालू की शैली, सवर्णों को लुभाने की कोशिश
वोट बैंक के लिए तेजस्वी ने बदली लालू की शैली, सवर्णों को लुभाने की कोशिश

पटना [राज्य ब्यूरो]। महज तीन साल पहले विधानसभा चुनाव में सवर्णों को तरजीह नहीं देने वाले लालू प्रसाद की पार्टी राजद ने संसदीय चुनाव के पहले दरवाजे- खिड़कियां खोल दी हैं। नेतृत्व बदला तो पार्टी में सब कुछ धीरे-धीरे बदलने लगा है। राजद प्रमुख की शैली से अलग तेजस्वी ने वोट बैंक के नए पॉकेट तलाशने शुरू कर दिए हैं। ब्राह्मïण समुदाय से आने वाले मनोज झा को पहली बार राज्यसभा सदस्य बनाया।

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रघुनाथपुर के पूर्व विधायक एवं जदयू नेता विक्रम कुंवर को पार्टी में जगह देने के बाद अब केसरिया के पूर्व विधायक बबलू देव की इंट्री के जरिए उस समुदाय को भी साधने की कोशिश की है, जिसे विधानसभा चुनाव में राजद ने एक भी सीट नहीं दी थी।

दरअसल, राजद को अहसास है कि भाजपा, जदयू, लोजपा और रालोसपा की संयुक्त ताकत से लोकसभा चुनाव में मुकाबला बेहद कठिन होगा। मुस्लिम और यादव (माय) समीकरण के बावजूद नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की जोड़ी राजद पर भारी पड़ सकती है। इसीलिए एक-दो अतिरिक्त सहयोगियों का बेसब्री से इंतजार कर रहे राजद ने अलग से भी वोटों का जुगाड़ करना शुरू कर दिया है।

एक हफ्ते में विक्रम कुंवर और बब्लू देव को पार्टी में शामिल कर राजद ने आगे के लिए संकेत कर दिया है कि वह सामाजिक दायरे का विस्तार चाहता है। परंपरागत फार्मूले से अलग तेजस्वी ने आबादी के हिसाब से सबको प्रतिनिधित्व देने का पहले ही एलान कर रखा है।

तेजस्वी की इस रणनीति को दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता नवल किशोर प्रगतिशील राजनीति मानते हैं। वह कहते हैं कि इस कवायद को जातीय चश्मे से नहीं देखना चाहिए। नवल के मुताबिक लालू की राजनीति की भी गलत व्याख्या होती रही है। उन्होंने सवर्ण का नहीं, बल्कि सवर्ण मानसिकता का विरोध किया। तेजस्वी ने सबके लिए दरवाजे खोलकर पार्टी की परंपरागत विचारधारा को ही आगे बढ़ाने की पहल की है।

विरोधी दलों के कुनबे पर नजर

महागठबंधन सरकार के बिखरने के साथ ही राजद ने दायरे का विस्तार शुरू कर दिया था। इसी सिलसिले में तेजस्वी ने हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) प्रमुख जीतनराम मांझी के कुनबे को अपने पाले में किया। भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा तो पहले से ही लालू-तेजस्वी की शैली के मुरीद रहे हैं। इफ्तार की दावत में मीसा भारती ने उन्हें राजद के टिकट का ऑफर दे दिया।

एससी-एसटी एक्ट का मुद्दा गरमाया तो जदयू के उदय नारायण चौधरी की बगावत को भी हवा दी। जोकीहाट से जदयू के तत्कालीन विधायक सरफराज आलम को अररिया का टिकट ऐसे ही नहीं थमा दिया गया था। कुछ दिन पहले तक रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा की गतिविधियों से भी राजद का हौसला बढ़ रहा था। कांग्र्रेस नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश प्रसाद सिंह को राज्यसभा सदस्य बनाने के लिए राजद ने अपना पूरा जोर लगा दिया था।


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