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राष्‍ट्रपति पुरस्‍कार चाहिए लेकिन किताब का नाम तक नहीं जानते मास्टर साहब, हैरान कर देगा इनका ज्ञान

राजकीय पुरस्कारों के लिए आवेदन करने वाले बिहार के सरकारी स्कूलों के कुछ शिक्षकों काे उस किताब का भी ज्ञान नहीं जिसे वे पढ़ाते हैं। चयन समिति के साक्षात्‍कर में यह खुलासा हुआ।

By Amit AlokEdited By: Published: Wed, 17 Jul 2019 08:29 PM (IST)Updated: Thu, 18 Jul 2019 10:12 PM (IST)
राष्‍ट्रपति पुरस्‍कार चाहिए लेकिन किताब का नाम तक नहीं जानते मास्टर साहब, हैरान कर देगा इनका ज्ञान
राष्‍ट्रपति पुरस्‍कार चाहिए लेकिन किताब का नाम तक नहीं जानते मास्टर साहब, हैरान कर देगा इनका ज्ञान

पटना [दीनानाथ साहनी]। बिहार के सरकारी स्कूलों के मास्टर साहब की नजर है राष्ट्रीय और राजकीय पुरस्कारों पर, लेकिन जिस किताब से बच्चों को पढ़ाते आए हैं, उसका नाम तक नहीं जानते। राष्ट्रपति एवं राजकीय पुरस्कारों के लिए जिला शिक्षा कार्यालयों में ऑनलाइन आवेदन करने वाले ऐसे ही कुछ शिक्षकों से बीते दिनों जब पूछा गया तो जिला चयन समिति के अध्यक्ष और सदस्य हक्के-बक्के रह गए। प्रत्येक वर्ष शिक्षक दिवस पर पांच सितंबर को प्रारंभिक, माध्यमिक एवं उच्च विद्यालयों और मदरसों से जुड़े चुनिंदा अध्यापकों को उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रपति और राजकीय पुरस्कार से नवाजा जाता है।

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साइंस का टीचर हूं लेकिन हिंदी पढ़ाता हूं

किस्सा किशनगंज जिले के एक प्रारंभिक विद्यालय के नियोजित विज्ञान शिक्षक ब्रजमोहन ठाकुर (बदला हुआ नाम) का है। उन्होंने शिक्षक पुरस्कार के लिए ऑनलाइन आवेदन दिया था। शिक्षा कार्यालय को आवेदन मिला या नहीं, इसकी जानकारी लेने जब वो पहुंचे तब चयन समिति ने उनसे शिक्षण सेवा के बारे में जानकारी ली और इस बीच उनसे पाठ्य-पुस्तकें के बारे में पूछा गया तो वे जवाब देने में फंस गए और हड़बड़ाते हुए बोले- मैं विज्ञान का शिक्षक अवश्य हूं, पर हिंदी भी पढ़ाता हूं। यह सुनकर चयन समिति के अध्यक्ष एवं शिक्षा अधिकारी हैरान रह गए।

अध्याय तक नहीं जानते माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक

इसी तरह पुरस्कार के लिए आवेदन करने वाले शिक्षक मनोज कुमार मुन्ना (बदला हुआ नाम) भी बच्चों की पाठ्य-पुस्तकों में से अध्याय का नाम नहीं बता सके। वे खगडिय़ा जिले के माध्यमिक विद्यालय में पदस्थापित हैं। हैरानी की बात यह कि पूछताछ के दौरान शिक्षक पाठ्य पुस्तकों के पहले चार अध्याय नहीं बता पाए। कैमूर के एक शिक्षक ने तो लर्निंग इंडीकेटर्स के बारे में पूछने पर अनभिज्ञता प्रकट की। दरअसल विद्यालयों में पढ़ाई जाने वाली किताबों में शुरुआत में लर्निंग इंडीकेटर्स का जिक्र होता है। इसमें बताया जाता है कि किसी कक्षा में एक निश्चित समयावधि तक बच्चों को पढ़ाने के बाद उन्हें क्या आना चाहिए। भोजपुर के एक शिक्षक से जब उनके स्कूल के बच्चों की संख्या और सभी शिक्षकों को मिलने वाले कुल वेतन के आधार पर प्रति बच्चा खर्च बताने को कहा गया तो काफी देर तक मशक्कत करने के बाद उन्होंने सिर हिलाकर इसमें भी असमर्थता जताई।

हर वर्ष मिलता है पुरस्कार

शिक्षा के लिए दिए जाने वाले पुरस्कारों के लिए हर जिले में जिला शिक्षा पदाधिकारी की अध्यक्षता में चयन कमेटी है जो जिले से कुछ चुने हुए शिक्षकों के  नाम की सिफारिश शिक्षा विभाग को करती है। इस बार पुरस्कार के लिए इच्छुक शिक्षकों से ऑनलाइन आवेदन लिया जा रहा है। शिक्षा विभाग के मुताबिक जिला शिक्षा पदाधिकारी चयन समिति के सदस्य-सचिव होते हैं। पुरस्कार के लिए अंतिम रूप से शिक्षकों के नाम केंद्र और राज्य सरकार को अनुशंसा करने से पहले आवेदनों की छानबीन की जाती है। पुरस्कार के लिए विभिन्न जिलों से अबतक 23 आवेदन प्राप्त हुए हैं। मगर पुरस्कार की इच्छा रखने वाले शिक्षकों के आधे-अधूरे ज्ञान की सूचना जानकर शिक्षा विभाग भी हतप्रभ रह गया है।


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