Teachers Day 2019: जब कभी हुए निराश तो ज्ञान व बुद्धिमता के स्नेत गुरु ने ही दिया सहारा Patna News
Teachers Day 2019 गुरु जो अंधकार रूपी जीवन से छात्र को निकालकर प्रकाश की ओर ले जाते हैं। डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर पटना की शख्सियतें याद कर रही हैं अपने गुरु को।
पटना, जेएनएन। सच ही कहा गया है, अज्ञान को नष्ट करने वाला प्रकाश गुरु ही देता है। वो ईश्वर का दिया हुआ ऐसा अनमोल उपहार हैं जो हमेशा बिना किसी स्वार्थ और भेदभाव रहित व्यवहार से हमें सही या गलत का बोध कराते हैं। यही हमारी जिंदगी के शिल्पकार हैं। हम भले ही कितनी उन्नति क्यों न कर लें, गुरु का महत्व हमारी जिंदगी में कभी कम न होगा। प्रख्यात शिक्षाविद् व पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर पटना से जुड़ी शख्सियतें याद कर रही हैं अपने गुरु को।
ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को दे रहीं ‘उड़ान’
ऑटिज्म बच्चों में होने वाली ऐसी विकृति है, जिसमें उम्र तो बढ़ती रहती है लेकिन दिमाग बच्चा ही रहता है। इससे पीड़ित बच्चों में बातचीत और समझने की शक्ति कम होती है। ऐसे बच्चों को निश्शुल्क ज्ञान की रोशनी देने में बड़ी भूमिका निभा रही हैं पटना के कंकड़बाग के उत्कर्ष सेवा संस्थान की निदेशिका डॉ. मनीषा कृष्णा।
मनीषा राजधानी में सूबे के विभिन्न जिलों से आने वाले गरीबी रेखा के नीचे के ऑटिज्म पीड़ित बच्चों व उनके माता-पिता को मुफ्त साप्ताहिक आवासीय प्रशिक्षण देती हैं। इसके तहत बच्चों को हर तीन महीने में फॉलोअप करने की भी व्यवस्था दी जाती है। संस्था में राज्य के दो सौ बच्चे निबंधित हैं। साथ ही बच्चों को साप्ताहिक ऑक्यूपेशनल थेरेपी, स्विच थेरेपी, खेल प्रशिक्षण एवं कंप्यूटर का प्रशिक्षण भी वे दिला रही हैं। डॉ. मनीषा से प्रशिक्षित दस बच्चे बिहार ओपन स्कूल से 10वीं की परीक्षा पास कर चुके हैं।
अपने बच्चे की दशा देख खोला स्कूल
डॉ. मनीषा बताती हैं कि उनका बड़ा बेटा शिवा ऑटिज्म पीड़ित है। शिवा जब ढाई वर्ष का था तब बेंगलुरु में डॉक्टरों ने उसे ऑटिज्म का शिकार बताया था। इसके बाद शिवा को लेकर वे अमेरिका गईं। जहां डॉक्टरों ने बताया कि ऑटिज्म का प्रशिक्षण अलग रूप से लंबे समय तक चलता है। खुद के बेटे की दशा देखकर ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के लिए स्कूल खोजा, लेकिन नहीं मिला। थककर खुद विद्यालय चलाने का निर्णय लिया।
मुनमुन व आरिज को कम्प्यूटर चलाने में महारत
भूतनाथ रोड स्थित स्कूल में पढ़ने वाली राजेंद्र नगर निवासी 15 वर्षीय मुनमुन व भद्रघाट निवासी 10 वर्षीय आरिज अनवर को सामान्य बच्चों की तरह कंप्यूटर चलाने में महारत हासिल है। दोनों खुद अपने रोजमर्रा के कार्य कर लेते हैं। मनीषा कहती हैं कि यदि बच्चों में जल्दी ऑटिज्म की पहचान हो जाए तो उन्हें साधारण बच्चों के रूप में पहचान दिलाई जा सकती है। सामान्य बच्चों की तरह शिक्षा दी जा सकती है।
बच्चों को मिला खेल सम्मान
मनीषा बताती हैं उनके द्वारा प्रशिक्षित बच्चों ने खेल की दुनिया में भी नाम किया। राष्ट्रीय स्तर की एथलेटिक्स प्रतियोगिता में विद्यालय के रक्षित और हर्ष ने दिव्यांग एथलेटिक्स की एकल प्रतियोगिता में प्रथम स्थान अर्जित किया। परिणाम स्वरूप राज्य सरकार की ओर से दोनों को 30-30 हजार रुपये व प्रशंसा पत्र दिया गया।
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गणित शिक्षक के गुरुमंत्र ने दिया जिंदगी का ध्येय
मैंने पांचवीं से दसवीं तक की पढ़ाई कानपुर स्थित रामकृष्ण मिशन से की। 1983 से 1988 तक मैं इसी स्कूल अध्ययनरत रहा। मैं कानपुर में पढ़ाने वाले गणित के शिक्षक सीपी यादव सर के योगदान को कभी नहीं भूल सकता। एक बार हम लोगों की क्लास चल रही थी। बगल की कक्षा में सीपी सर पढ़ा रहे थे। हम लोगों की कक्षा में कोई टीचर नहीं था। शिक्षक के नहीं होने पर क्लास में शोर हो रहा था।
आवाज बगल की कक्षा तक पहुंच रही थी। इसी बीच शोर सुनकर थोड़ी देर में सीपी सर हम लोगों की क्लास में आ गए। हम उस समय दरवाजे के पास बैठे थे। उनकी नजर मुझ पर पड़ गई। गुस्से में उन्होंने मुङो चपत लगा दी। मार खाने से मेरी आंखें भर आईं। जब क्लास खत्म हुई तो उन्होंने मुङो बुलाया और कहा, मन से पढ़ाई करो। नौवीं के बाद मेरी बोर्ड की परीक्षा करीब आ चुकी थी, पर सीपी सर मुङो नहीं भूले थे। उन्हें स्कूल में जहां कहीं मैं दिखता वे पास बुला लेते। हर बार पूछते, तुम्हारा कोर्स पूरा हो चुका है या नहीं। मेरे पूछने पर पेचीदा से पेचीदा व उलङो टॉपिक को बहुत अच्छे तरीके से समझाते थे। आज मैं जिस मुकाम पर हूं उसमें सीपी सर का अहम योगदान है।
संजय सिंह, आइजी (सेंट्रल रेंज) पटना
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गुरु-शिष्य परंपरा ताजिंदगी निभाते रहे मो. अमीन
बात 1987 की है। मैं संत स्टीफेंस कॉलेज में इतिहास का छात्र था। मेरे गुरु मो. अमीन कॉलेज में इतिहास के प्राध्यापक थे। उनका पढ़ाने का तरीका ऐसा था कि हर छात्र पूरी तन्मयता से उनकी क्लास में पढ़ता था। मो. अमीन कॉलेज में जो पढ़ा देते थे वह हमेशा के लिए याद हो जाता था। दोबारा उस टॉपिक को बस एक बार दोहरा लेना होता था। एक बार हम लोगों को छात्रवास में आने में देर हो गई, रात में मेस बंद हो चुका था। हम लोग 10-12 की संख्या में थे।
इतने में छात्रवास परिसर में बने अपने आवास में खड़े मो. अमीन सर की नजर हमलोगों पर पड़ गई। हमारा हावभाव देखकर वे समझ गए कि मेस बंद होने से हमलोग भूख से परेशान हैं। बस फिर क्या था, उन्होंने आवाज देकर हमें अपने घर बुला लिया। सारे छात्रों के लिए घर में भोजन बनवाया और खुद सामने बैठाकर खाना खिलाया। मो.अमीन के पढ़ाए शिष्यों में आइएएस, आइपीएस, विदेश सेवा के साथ ही अन्य ऊंचे दर्जे के लोग शामिल हैं। इसी कारण अमीन सर को सिविल सर्विसेज मेकर भी कहा जाता था।
रंजन प्रकाश ठाकुर, रेल प्रबंधक, दानापुर के मंडल
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गुरु की प्रेरणा से बन पाया वन सेवा का अधिकारी
मेरे भारतीय वन सेवा का अधिकारी बनने में शिक्षक की भूमिका है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका उत्तरप्रदेश के पंतनगर में एमएससी करने के दौरान बतौर शिक्षक डॉ. राजेश कौशल की रही।
वे हिमाचल प्रदेश के मूल निवासी थे। उनकी प्रेरणा से मैं अपने मकसद में कामयाब रहा। जीवनभर उनको भूल नहीं सकता हूं। पढ़ाई के दौरान कई शिक्षक जीवन में आए। लेकिन डॉ. राजेश ने गहराई तक मुङो प्रभावित किया। ऐसे शिक्षकों की कमी होते जा रही है।
अमित कुमार, निदेशक, संजय गांधी जैविक उद्यान, पटना
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आठ आने की दही के बदले गुरु ने दिया लय का ज्ञान
मैंने तबला वादन की शिक्षा अपने गुरु पंडित कपिलदेव सिंह से ली। मेरा गांव मोहनिया (कैमूर) के पुसौली में है। संगीत में रुचि बालपन से ही थी। बचपन में गांव में कीर्तन में शामिल होता रहा। होली के मौके पर ढोलक भी बजाया करता था। उच्च शिक्षा के लिए बीएचयू में कृषि विषय से स्नातक करने के दौरान संगीत विभाग में बनारस घराने के तबला वादक गुरु पांचू महाराज से थोड़ी-बहुत जानकारी प्राप्त की। इसके बाद पंडित किशन महाराज के शिष्य पंडित कपिलदेव सिंह से 1965 में तबला वादन की बारीकियों से अवगत हुआ।
इसी क्रम में पंडित किशन महाराज के चाचा कंठे महाराज तीन माह के लिए दानापुर आए और तो मैं भी उनके सानिध्य में रहकर बेहतर तबला वादन की बारीकियों से अवगत हुआ। एक बार बाबा कंठे महाराज से ‘सवाई लय’ के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि पहले एक पाव दही लेकर आओ। उनके घर के सामने महंगू की दुकान थी, जहां से आठ आने में एक पाव दही लेकर आया और फिर बाबा ने हमें लय के बारे में अवगत कराया। पंडित शिव कुमार सिंह, तबला वादक