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राजधानी में जंगल, जहां बच्चे मनाते मंगल

राजधानी के बीच में लगभग 10 एकड़ क्षेत्रफल में फैला तरुमित्र आश्रम का जंगल

By JagranEdited By: Published: Wed, 22 Apr 2020 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 22 Apr 2020 06:09 AM (IST)
राजधानी में जंगल, जहां बच्चे मनाते मंगल
राजधानी में जंगल, जहां बच्चे मनाते मंगल

पटना। राजधानी के बीच में लगभग 10 एकड़ क्षेत्रफल में फैला तरुमित्र आश्रम का जंगल, बच्चों के लिए खुशी (मंगल) मनाने का बहुत बड़ा केंद्र है। यहां पर मंगल मनाने के लिए न केवल राजधानी बल्कि देश व दुनिया के कोने-कोने से प्रतिवर्ष काफी संख्या में बच्चे आते हैं। तरुमित्र की स्थापना 1986 में हुई थी। यहां ड्रिप एरिगेशन एवं जैविक खेती का प्रयोग धरती की सुरक्षा के लिए वरदान साबित हो रहा है। यहां खेती में किसी प्रकार के रसायन का उपयोग नहीं किया जाता। केवल जैविक खेती होती है। ड्रिप एरिगेशन से सिंचाई में 40 फीसद पानी की बचत होती है। घट सिंचाई योजना भी धरती के लिए लाभकारी साबित हो रही है। धरती बचेगी, तभी बचेगा मानव जीवन

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तरुमित्र के संस्थापक फादर राबर्ट अर्थिकल का कहना है कि धरती बचेगी, तभी मानव जीवन बचेगा। धरती को बचाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि हरियाली को बढ़ावा दिया जाए। तरुमित्र आश्रम इसी के मद्देनजर शहर के बीच में जंगल विकसित किया है, ताकि लोगों को धरती की सुरक्षा का पाठ पढ़ाया जा सके।

यहां लागू होता जंगल का नियम

तरुमित्र आश्रम में भी जंगल का नियम लागू हैं। यहां पर 500 से अधिक दुर्लभ प्रजाति के पौधे लगाए गए हैं। यहां पर प्रतिवर्ष लाखों बच्चे आते हैं, लेकिन किसी भी बच्चे को किसी पौधे के टहनी या पत्ती तोड़ने की इजाजत नहीं है। यहां तक की कोई भी पौधा या पेड़ आंधी के कारण गिर जाता है, तो उसे काटने की इजाजत नहीं है। वह पौधा वहीं मिट्टी में दबकर सड़ जाता है, लेकिन कोई उस पर कुल्हाड़ी नहीं चला सकता।

सात डिग्री कम रहता आश्रम का तापमान

तरुमित्र आश्रम का तापमान राजधानी के अन्य क्षेत्र से सात डिग्री सेल्सियस हमेशा कम रहता है। यहां के भवनों की बनावट भी अलग तरीके से की गई है। यहां के भवनों की दीवार खोखली हैं। इससे भवन के अंदर भीषण गर्मी में भी नमी बनी रहती है।

घट सिंचाई पद्धति काफी लाभकारी

तरुमित्र आश्रम में छोटे पौधे के लिए घट सिंचाई योजना अमल में लाई जाती है। इस योजना के माध्यम से छोटे पौधों के पास एक घड़ा गाड़ दिया जाता है। उसी घड़ा में प्रतिदिन पानी डाल दिया जाता है। घड़ा के नीचे एक छेद रहता है। उसी से पौधे की 24 घंटे सिंचाई होती रहती है।


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