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    Bihar Caste Survey: नीतीश सरकार के सामने बड़ी चुनौती! बिहार जाति सर्वेक्षण पर 16 अप्रैल को होगी 'सुप्रीम' सुनवाई

    2 जनवरी को शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार से जाति सर्वेक्षण डेटा का विवरण सार्वजनिक डोमेन में डालने को कहा था ताकि पीड़ित लोग निष्कर्षों को चुनौती दे सकें। कोर्ट ने जाति सर्वेक्षण को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं को किसी भी तरह की अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था। अब इस मामले में 16 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी।

    By Agency Edited By: Rajat Mourya Updated: Mon, 05 Feb 2024 05:24 PM (IST)
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    नीतीश सरकार के सामने बड़ी चुनौती! बिहार जाति सर्वेक्षण पर 16 अप्रैल को होगी 'सुप्रीम' सुनवाई

    पीटीआई, नई दिल्ली/पटना। सुप्रीमो कोर्ट ने जाति सर्वेक्षण कराने के बिहार सरकार के फैसले को बरकरार रखने के पटना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई के लिए 16 अप्रैल की तारीख तय की है। जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि इस मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है। जस्टिस खन्ना ने कहा कि इस मुद्दे पर दायर सभी हस्तक्षेप आवेदनों पर भी 16 अप्रैल को अंतिम सुनवाई होगी।

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    बता दें कि 2 जनवरी को शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार से जाति सर्वेक्षण डेटा का विवरण सार्वजनिक डोमेन में डालने को कहा था ताकि पीड़ित लोग निष्कर्षों को चुनौती दे सकें। कोर्ट ने जाति सर्वेक्षण को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं को किसी भी तरह की अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था।

    6 अक्टूबर 2023 को शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार से सवाल किया कि उसने अपना जाति सर्वेक्षण डेटा क्यों प्रकाशित किया। हालांकि, कोर्ट ने राज्य सरकार को आगे के डेटा को सार्वजनिक करने से रोकने से इनकार कर दिया था और कहा था कि वह इस बात की जांच कर सकती है कि क्या राज्य के पास इस तरह का अभ्यास करने की शक्ति है।

    सुप्रीम कोर्ट ने पटना उच्च न्यायालय के 1 अगस्त, 2023 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक औपचारिक नोटिस जारी किया था, जिसने बिहार में जाति सर्वेक्षण को आगे बढ़ाया था। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के इस तर्क को खारिज कर दिया कि राज्य सरकार ने पहले ही रोक लगाने से पहले कुछ डेटा प्रकाशित कर दिया है। उन्होंने डेटा के आगे प्रकाशन पर पूर्ण रोक लगाने की मांग की थी।

    2 अक्टूबर को जारी किए थे जाति सर्वेक्षण के आंकड़े

    गौरतलब है कि 2 अक्टूबर, 2023 को नीतीश कुमार की सरकार ने जाति सर्वेक्षण के निष्कर्ष जारी किए। उनके विरोधियों ने दावा किया कि यह कदम 2024 के संसदीय चुनावों को ध्यान में रखते हुए उठाया गया था। नीतीश कुमार तब जद(यू)-राजद-कांग्रेस गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे थे। वह पिछले महीने फिर से एनडीए में शामिल हो गए।

    बिहार जाति सर्वेक्षण के आंकड़े

    आंकड़ों से पता चला कि ओबीसी और ईबीसी राज्य की आबादी का 63 प्रतिशत हिस्सा हैं। राज्य की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ से कुछ अधिक थी, जिसमें से अत्यंत पिछड़ा वर्ग (36 प्रतिशत) सबसे बड़ा सामाजिक वर्ग था, इसके बाद 27.13 प्रतिशत के साथ अन्य पिछड़ा वर्ग था। सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि यादव, एक ओबीसी समूह जनसंख्या के मामले में सबसे बड़ी जाति है, जो कुल का 14.27 प्रतिशत है। राज्य की कुल आबादी में दलितों की हिस्सेदारी 19.65 प्रतिशत है, जिसमें अनुसूचित जनजाति के लगभग 22 लाख (1.68 प्रतिशत) लोग भी रहते हैं।

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