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जान को दांव पर रख लगती है कॅरियर की बाजी

प्रत्येक छात्र के लिए एक वर्ग मीटर जगह के मानक का पालन शायद ही कोई संस्थान करता होगा।

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 May 2019 09:34 PM (IST)Updated: Wed, 29 May 2019 12:03 AM (IST)
जान को दांव पर रख लगती है कॅरियर की बाजी
जान को दांव पर रख लगती है कॅरियर की बाजी

पटना। किसी कोचिंग संस्थान की कक्षा में एक छात्र के लिए न्यूनतम एक वर्गमीटर जगह होनी चाहिए। हालांकि इस मानक को पटना में शायद ही कोई संस्थान पूरा करता होगा। राजधानी के नया टोला, अशोक राजपथ, दरियापुर समेत अन्य जगहों में संचालित होने वाले संस्थानों के कमरों में बड़ी संख्या में छात्र भरे रहते हैं। क्लास में बैठना दम घुटने का अहसास देता है। जिला प्रशासन को भी कानून- व्यवस्था संभालने से फुर्सत कहां कि कोचिंग संस्थानों में भीड़ प्रबंधन और आपदा से बचाव के लिए इंतजाम देख सके। कितने संस्थान आधारभूत संरचना के न्यूनतम मानक पर संचालित हो रहे हैं, इसकी कोई जानकारी प्रशासन के पास नहीं है। अवैध रूप से संचालित कोचिंग संस्थानों पर रोकटोक करने वाला भी कोई नहीं है। राजधानी का हाल यह कि आपदा के पहले तक यहां तंत्र सोता है। जब-जब आपदा से जानमाल का नुकसान हुआ तो जांच कमेटी बनी लेकिन रिपोर्ट में लोक सेवक की गर्दन आसानी से बचा ली गई।

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अप्रैल 2010 में कोचिंग संस्थान नियंत्रण विनियमन अधिनियम 2010 लागू किया। तय था कि 30 दिनों में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में कोचिंग संस्थानों की जांच कर निबंधन किया जाएगा। शिक्षा माफिया इसका विरोध तो नहीं कर सके लेकिन इस कानून को ठेंगा दिखा संस्थानों को विस्तार देते आ रहे हैं। नौ वर्षो में पटना में कितने कोचिंग संस्थान निबंधित हुए इसकी कोई जानकारी निबंधन विभाग, शिक्षा विभाग और जिले की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है।

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मोहल्ला नया टोला। महज 20 फीट की सड़क के किनारे कतार से साइकिलें खड़ी हैं। बहुमंजिली इमारतों के हर फ्लैट में कोचिंग के बोर्ड लगे हैं। औसत एक इमारत में 20 परिवारों के लिए जगह होती है, लेकिन यहां कोचिंग क्लास के एक-एक कमरे में 20 से 50 बच्चे बैठे मिलते हैं। भिखना पहाड़ी, रमना रोड, बीएम दास रोड, मखनियां कुआं रोड और खजांची रोड के हर घर में कोचिंग सेंटर और ग‌र्ल्स हॉस्टल का बोर्ड दिखता है।

: नगर निगम की भी जिम्मेदारी :

बिना जन सुरक्षा मानक के संचालित कोचिंग संस्थानों के लिए पटना नगर निगम की भी कुछ जिम्मेदारी है। निगम ने आवासीय उपयोग के लिए जिन्हें प्लॉट और भवन दिए वे व्यावसायिक कार्य कोचिंग संस्थान के लिए उपयोग कर रहे हैं। श्रीकृष्णापुरी, राजेंद्रनगर, श्रीकृष्णनगर और राजेंद्रनगर में पटना क्षेत्रीय विकास प्राधिकार ने आवासीय शर्त पर जमीन और मकान आवंटित किए थे। निगम की शर्त का उल्लंघन कर लोगों ने कोचिंग संस्थान के संचालन के लिए जगह दे दी। नगर निगम आवासीय क्षेत्र में व्यावसायिक उपयोग पर रोक लगाने में रुचि नहीं ले रहा है। बोरिग रोड, कैनाल रोड, सहदेव महतो मार्ग, आनंदपुरी इलाके पूरी तरह कोचिंग संस्थान से भरे हुए हैं। पुराने कोचिंग संस्थानों ने अपनी शाखाओं का विस्तार राजाबाजार, आशियानानगर, कंकड़बाग ही नहीं दानापुर तक कर दिया है।

: छात्रवृत्ति का झांसा :

कोचिंग संस्थान छात्रवृत्ति का झांसा देकर बच्चों और अभिभावकों को फंसा लेते हैं। छात्रवृत्ति के बहाने बुलाते हैं। नामांकन के समय शुल्क में छूट को छात्रवृत्ति बताते हैं। प्रदेश के दूरदराज के अभिभावक को चमक-दमक दिखाते हैं। पढ़ाई के समय छोटी कोठरी में क्षमता से अधिक छात्रों के बैठने की मजबूरी होती है। पैसा देने के बाद मजबूरी होती है कि किसी तरह पढ़ाई करें।

: क्या है कोचिंग संस्थान का मानक : बिहार कोचिंग संस्थान नियंत्रण एवं विनियमन अधिनियम 2010 के अनुसार कोई भी संस्थान निबंधन के लिए आवेदन करेगा। प्रत्येक तीन वर्षो पर निबंधन का नवीकरण कराना होगा। निबंधन के लिए 5000 रुपये शुल्क के साथ जिलाधिकारी को आवेदन करना होगा। आवेदन में स्पष्ट करना होगा कि पाठ्यक्रम की शैक्षणिक अवधि क्या है? हरेक पाठ्यक्रम में छात्रों की संख्या निर्धारित होगी। निर्धारित संख्या से अधिक नामांकन अवैध माना जाएगा। शिक्षकों की योग्यता न्यूनतम स्नातक होनी चाहिए। सभी शिक्षकों का बायोडाटा भी देना है। कोचिंग संस्थानों को पाठ्यक्रम का शुल्क प्रॉस्पेक्टस में देना अनिवार्य है। : क्यों है आधारभूत संरचना जरूरी :

1. एक छात्र के लिए कम से कम एक वर्गमीटर के हिसाब से वर्ग कक्षा होना अनिवार्य है। यदि 20 छात्र पढ़ते हैं तो कमरे का आकार कम से कम 20 वर्गमीटर अनिवार्य है।

2. पढ़ाई के लिए कमरे में समुचित संख्या में बेंच और डेस्क होनी चाहिए।

3. प्रत्येक कमरे में पर्याप्त प्रकाश और हवादार खिड़की होनी चाहिए।

4. पेयजल का समुचित इंतजाम और शौचालय की सुविधा जरूरी है।

5. जल-मल निकासी और स्वच्छता के लिए पर्याप्त इंतजाम होने चाहिए।

6. संभावित आग से बचाव के लिए सभी उपकरण होने चाहिए।

7. सभी कोचिंग संस्थानों में आकस्मिक चिकित्सा की सुविधा अनिवार्य है।

8. छात्रों और शिक्षकों के लिए साइकिल और बाइक खड़ी करने के लिए पार्किंग की सुविधा होनी चाहिए।

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: कौन है देखरेख के लिए जवाबदेह :

बिहार कोचिंग संस्थान नियंत्रण एवं विनियमन अधिनियम में जिला स्तर पर कमेटी बनाई गई है। जिलाधिकारी कमेटी के अध्यक्ष होते हैं। एसपी अथवा एसएसपी, जिला शिक्षा पदाधिकारी और मान्यता प्राप्त कॉलेज के प्राचार्य को सदस्य बनाया गया है। अधिनियम में डीएम और एसडीओ से नीचे के पदाधिकारी को सीधे जांच का अधिकार नहीं दिया गया है। प्रतिनियुक्ति के आधार पर ही कोई पदाधिकारी जांच कर सकता है।

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: जिन संस्थानों ने आवेदन दिया उनकी जांच कर रिपोर्ट दे दी : पटना में कितने निबंधित और बिना मानक के कोचिंग चल रहे हैं यह बात सूरत की घटना से अलग है। पटना के कोचिंग संस्थान की तुलना नहीं की जा सकती है। मुझे जो जानकारी है उसके अनुसार वहां लकड़ी की सीढ़ी थी जिसमें आग लगी थी। पटना में जिन संस्थानों ने निबंधन के लिए आवेदन दिया है उसकी जांच कर रिपोर्ट दे दी गई है। बिना मानक के कोचिंग संस्थान संचालन पर कार्रवाई की शक्ति जिला शिक्षा पदाधिकारी के पास नहीं है। जिलाधिकारी और एसडीओ के निर्देश पर ही कोई कार्रवाई की जा सकती है। जो मानक पूरा कर रहे हैं उन्हें निबंधित किया गया है।

ज्योति कुमार, जिला शिक्षा पदाधिकारी, पटना।

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कोचिंग संस्थान नियंत्रण एवं विनियमन अधिनियम का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई होगी। राजधानी में विधि-व्यवस्था की बड़ी जिम्मेदारी है। प्रशासन जन सुरक्षा के लिए कोचिंग सेंटर की जांच कर नियमानुसार कार्रवाई करेगी।

- कुमारी अनुपम सिंह, अनुमंडल पदाधिकारी, पटना सदर।

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: इन घटनाओं से कोई सबक नहीं :

कंक्रीट के जंगल में तब्दील पटना में सबसे बड़ी चुनौती भीड़ प्रबंधन की है। कोचिंग संस्थान में भीड़ प्रबंधन की मामूली चूक से कोई अनहोनी न हो जाए इसके लिए शासन अप्रैल 2010 में मानक निर्धारित कर सो गया। भीड़ प्रबंधन में लापरवाही के कारण पटना में लगातार बड़ी घटनाएं होती आ रही हैं। याद होगा कि 14 जनवरी 2017 में मकर संक्रांति के दिन सरकारी आयोजन में नाव डूबने से दर्जनों मौतें हो चुकी हैं।

2 अक्टूबर 2014 को रावण दहन कार्यक्रम के दौरान गांधी मैदान और वर्ष 2012 में छठ घाट पर भगदड़ में भारी संख्या में लोग जान गंवा चुके हैं। इन घटनाओं के बाद परंपरा के अनुसार जांच कमेटी बनी और रिपोर्ट में सभी लोकसेवकों की गर्दन आसानी से बच गई। अब कोचिंग संस्थानों में आधारभूत संरचना में खोट के कारण कोई हादसा हो भी जाए तो किसी का कुछ नहीं बिगड़ेगा।

बिहार में आपदा प्रबंधन की सोच 17 जुलाई 2000 को हुई हवाई दुर्घटना के बनी। हवाई दुर्घटना में बचाव-राहत कार्य के लिए कोई सक्षम इंतजाम नहीं थे। 8 जून 2006 को बोरिग कैनाल रोड में वैष्णवी अपार्टमेंट बारिश में बताशे की तरह ध्वस्त हुआ था। बदलते समय के साथ राज्य में आपदा प्रबंधन प्राधिकार, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ का गठन किया जा चुका है। 27 अक्टूबर 2013 को पटना का गांधी मैदान पहली बार सीरियल बम विस्फोट के अंजाम से रूबरू हुआ। 2012 में छठ के मौके पर भगदड़ में जानमाल का भारी नुकसान हुआ और ऐसी घटना से निपटने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है।

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