नेपाल त्रासदी: धरहरा से दिखता था घर-घर का चूल्हा
'किस घर में चूल्हा जला, किस घर में नहीं। जिस घर से धुआं निकला, मतलब वहां भूख की तड़प नहीं। जिस घर में धुआं नहीं वहां भूख है। भूख से जनता न तड़पे इसका ध्यान देश के प्रधानमंत्री को होना चाहिए।'
काठमांडू [संजय कुमार उपाध्याय]। 'किस घर में चूल्हा जला, किस घर में नहीं। जिस घर से धुआं निकला, मतलब वहां भूख की तड़प नहीं। जिस घर में धुआं नहीं वहां भूख है। भूख से जनता न तड़पे इसका ध्यान देश के प्रधानमंत्री को होना चाहिए।' नेपाल के प्रथम प्रधानमंत्री भीमसेन थापा का इस पर जोर था और वे इसपर शिद्दत से अमल करते थे। उन्होंने ही राजधानी काठमांडू के सुंधरा इलाके में धरहरा टावर का निर्माण कराया, ताकि काठमांडू वैली की स्थिति का जायजा लिया जा सके। नौ मंजिले टावर के अंतिम तल से दूर-दूर तक के घरों को देखते थे। जहां धुआं निकलता नहीं दिखता था, वहां पहुंचकर भोजन आदि का प्रबंध कराते थे।
25 अप्रैल 2015 को राजधानी काठमांडू वैली समेत यहां के 36 जिलों में भूकंप से मची तबाही के बाद जब लोग भूख से तड़पे तो उन्हें इतिहास की याद आई। काठमांडू महानगरपालिका के वार्ड नंबर-21 में लगन टोल स्थित भीमसेन थापा का आवास भी भूकंप में तबाह हो गया।
पिछले डेढ़ दशक से काठमांडू में रह रहे बरदिया जिला के नेपालगंज धौदारी निवासी अमृत थारू कहते हैं कि कई वर्षों से काठमांडू में हैं। पहले प्रधानमंत्री के बारे में यहां का हर आदमी जानता है कि वे जनता के प्रति कितने संजीदा थे। चूल्हे का धुआं जिस घर से नहीं निकलता था वहां तत्काल पहुंच जाते थे। आज तो हर तरफ भूख व प्यास की तड़प है। हालात पूरी दुनिया देख रही। सभी स्थानों के बारे में सूचनाएं प्रसारित हुईं। चक बहादुर थापा ने कहा कि यहां के लोगों की नजर में आज जो सरकारी स्तर पर राहत का इंतजाम है वह धरहरा टावर का इतिहास जानने मात्र से ठीक हो जाए, लेकिन यहां तो भीमसेन थापा के आवास तक को लोगों ने भुला दिया। काश! इतिहास से सीख ली गई होती। हुक्मरान ने जनता का ध्यान रखा होता तो बेघर लोगों के कैंप में चूल्हा जला कि नहीं इसका ध्यान रखते और ग्रामीण इलाकों में लोग भूखे-प्यासे न रहते।
क्षतिग्रस्त मकान खतरे के वाहक
जलजले के बाद भी काठमांडू समेत विभिन्न इलाकों में लगातार आ रहे भूकंप के झटकों ने काठमांडू वैली समेत ग्रामीण व पर्वतीय क्षेत्र के लोगों की परेशानी बढ़ा दी है। लोगों का कहना है कि सरकारी स्तर पर मलबा हटाने का काम तो चल रहा है, लेकिन उन भवनों पर सरकार का ध्यान नहीं है जो पहले दिन के भूकंप में क्षतिग्रस्त होकर राजधानी व अन्य इलाकों में खड़े हैैं। जिस तरह से लगातार झटके आ रहे हैैं वैसे में क्षतिग्रस्त मकान कभी भी बड़ी तबाही के वाहक हो सकते हैं।