पुरातात्विक महत्व का स्टीम इंजन रोलर हो रहा जमींदोज
सन 1885 में बिहार एंड उड़ीसा लोकल सेल्फ गवर्नमेंट एक्ट के तहत पटना जिला परिषद वजूद में आया था और आज पुराने दस्तावेज और संपत्ति को भी सहेज पाने में सक्षम नहीं है। जिला अभियंता कार्यालय के समक्ष जमींदोज हो रहा स्टीम इंजन रोलर इसका उदाहरण है।
पटना। रेलवे स्टेशन के बाहर भाप इंजन को देखा जा सकता है। ब्रिटिश काल में कोयले और लकड़ी से चलने वाला स्टीम इंजन रोड रोलर भी हुआ करता था। आजादी के बाद तक पटना से नालंदा तक सड़क निर्माण इसी स्टीम इंजन रोलर से हुआ करता था। बख्तियारपुर से राजगीर और फतुहा से इस्लामपुर के बीच रेल पटरी भी पटना जिला परिषद की ही थी जिस पर लाइट ट्रेन चलती थी। सन 1885 में बिहार एंड उड़ीसा लोकल सेल्फ गवर्नमेंट एक्ट के तहत पटना जिला परिषद वजूद में आया था और आज पुराने दस्तावेज और संपत्ति को भी सहेज पाने में सक्षम नहीं है।
जिला अभियंता कार्यालय के समक्ष जमींदोज हो रहा स्टीम इंजन रोलर इसका उदाहरण है। इस रोड रोलर की कीमती धातु तो चोरी हो गई लेकिन जो पार्टपुर्जे बचे हैं उन्हें देखकर अचरज होना स्वाभाविक है। स्टीम इंजन का ब्रेक सिस्टम, स्टेयरिग और धमन भठ्ठी आज भी यथावत है। इसमें कई उपकरण पीतल, तांबा और अन्य कीमती धातु के थे। इनमें से अधिकांश गायब है।
मगध से लेकर अंग प्रदेश की सीमा तक पटना जिला परिषद रेल, रोड, नदी घाट, हाट, मेला, चारागाह, काजी हाउस, हर प्रखंड में सुसज्जित डाकबंगला का मालिक हुआ करता था। जिला अभियंता, सहायक अभियंता, कनीय अभियंता, खानसामा, चौकीदार, कंपाउंडर, वैद्य, औषधालय, बेसिक स्कूल शिक्षक, रोकड़पाल, लेखापाल, अमीन, चेनमैन, प्रिटिग प्रेस का कंपोजिटर, प्रेस आपरेटर और रोड सरकार जैसे पदों पर 170 स्थाई कर्मचारी हुआ करते थे। 24 चिकित्सक और 13 डाकबंगला सिर्फ पटना जिले में थे। चिकित्सक रिटायर होते गए और 16 औषधालय की भूमि गुम हो गई। अधिकांश डाकबंगला की जमीन पर अवैध कब्जा हो गया। देखरेख के लिए कोई इंजीनियर और अमीन तक नहीं रहे। अब तो मुख्य भवन भी ध्वस्त हो गया। जिला अभियंता कार्यालय भी तोड़ने के लिए बुलडोजर का चालक इशारे का इंतजार कर रहा है।
-- जरूरत से ज्यादा वेतन और स्थापना मद में आवंटन --
जिला परिषद के पास अब मात्र दर्जन भर कर्मी बचे हैं। जो कर्मी हैं वे भी अनुकंपा के आधार पर। सरकार से वेतन और स्थापना मद में करीब 4.10 करोड़ मिल रहे हैं। जरूरत मात्र 1.50 करोड़ से भी कम रह गई है।