Move to Jagran APP

इतिहास के आइने से: आजादी की लड़ाई की गतिविधियों का केंद्र रहा है सोनपुर मेला

सोनपुर मेेला केवल व्‍यापार का ही जगह नहीं रहा है, बल्कि अनेक क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र भी था। प्रथम स्‍वतंत्रता संग्राम के दौरान बाबू वीर कुंवर सिंह ने यहां बैठक की थी।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Wed, 15 Nov 2017 03:17 PM (IST)Updated: Wed, 15 Nov 2017 10:25 PM (IST)
इतिहास के आइने से: आजादी की लड़ाई की गतिविधियों का केंद्र रहा है सोनपुर मेला
इतिहास के आइने से: आजादी की लड़ाई की गतिविधियों का केंद्र रहा है सोनपुर मेला

पटना [जेएनएन]। हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला पशु पक्षी और अर्थ व्यापार का ही नहीं आजादी से पूर्व अनेक क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र भी था। जब अंग्रेजों और जमींदारों का जोर जुल्म किसान-मजदूरों पर बढ़ गया और बेबस किसान त्राहिमाम करने लगे तब व्यवस्था के विरुद्ध आंदोलन की सुगबुगाहट होने लगी।

परिणामस्वरूप हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला में 17 नवंबर 1929 को ही बिहार राज्य किसान सभा की स्थापना की गई। ब्रिटिश गुलामी जमींदारों का जोर जुल्म तथा उत्पीडऩ व शोषण के खिलाफ स्वामी सहजानंद सरस्वती ने किसानों मजदूरों को शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए इस किसान सभा की स्थापना की थी।

इस किसान सभा में तत्कालीन समाज में किसानों की दुर्दशा एवं उनके उत्थान को लेकर कई क्रांतिकारी योजनाएं बनाई गई। इसके महामंत्री बनाए गए थे डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह। स्वामी जी के अथक प्रयास का ही प्रतिफल हुआ कि 11 अप्रैल 1936 को लखनऊ के गंगा मेमोरियल हाल में अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना हुई।

इस स्थापना सभा में स्वामी जी के अलावा पंडित जवाहरलाल नेहरू, आचार्य नरेंद्र देव, लोक नायक जय प्रकाश नारायण, प्रो. एनजी रंगा, इंदुलाल याज्ञिक, सोहन सिंह जोश, जेड एअहमद, ई. एमएस नांबुंदरी पाद आदि ने भाग लिया था।

इसके बाद इस आंदोलन में 1937 से 1940 तक बिहार में चलाए गए बकाश्त आंदोलन में स्वामी जी के साथ राहुल सांस्कृत्यायन, नागार्जुन, रामवृक्ष बेनीपुरी,पंडित यदुनंदन शर्मा, पंडित कार्यनंद शर्मा, यमुना कार्जी, किशोरी प्रसन्न सिंह, शिव बच्चन सिंह एवं सबलपुर के शहीद रामवृक्ष ब्रह्मचारी आदि ने भाग लिया था। कहते हैं कि अंग्रेजों के विरुद्ध और देश में चल रहे जमींदारी उत्पीडऩ को लेकर इस संगठन के माध्यम से विरोध का स्वर और मुखर किया गया था।

हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला ऐसे अनेक ऐतिहासिक क्षणों का साक्षी है। इस मेले में न केवल व्यवसाय व्यापार हुए बल्कि कभी मुगल तो कभी अंग्रेजों के विरुद्ध चलाए जाने वाले आंदोलन की रूपरेखा तैयार की गई। यहां के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि उस काल में देश के बड़े-बड़े क्रांतिकारियों का स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों का यहां जुटान होता था। अगले कार्यक्रम और रणनीति पर चर्चाएं होती थी।

मेला घूमने के बहाने क्रांतिकारियों का मिलन स्थल ही था। इतिहास साक्षी है कि 1857 के सिपाही विद्रोह से पूर्व स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा बाबू वीर कुंवर सिंह ने यहां अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारियों की बैठक की थी।

loksabha election banner

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.