गजविहीन हो गया सोनपुर पशु मेला
- वन्य प्राणी अधिनियम 2003 के तहत हाथियों की खरीद-बिक्री पर लगी थी रोक - 2007 से कानून
- वन्य प्राणी अधिनियम 2003 के तहत हाथियों की खरीद-बिक्री पर लगी थी रोक
- 2007 से कानून हुआ सख्त, 2012 में दान के नाम पर भी नहीं दिया गया स्वामित्व प्रमाणपत्र
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मेले में आए हाथी
साल : संख्या
1986 : 155
2007 : 70
2012 : 40
2013 : 39
2014 : 15
2015 : 14
2016 : 14
2017 : 01 (महज एक दिन के लिए)
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'सोनपुर पशु मेले में हाथी की खरीद-बिक्री पर रोक है। उनके प्रदर्शन पर रोक है। हाथी के लाने पर रोक नहीं है, लेकिन उससे पहले डीएफओ से अनुमति लेनी होती है। इस वर्ष मात्र एक दिन के लिए एक हाथी आया था।'
- भारत ज्योति, मुख्य वन्य प्राणी प्रतिपालक, बिहार
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मृत्युंजय मानी, पटना : सोनपुर में लगने वाला विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र पशु मेला गजविहीन हो गया। पिछले वर्ष 14 हाथी आए थे। इस वर्ष मात्र एक हाथी आया, वह भी मात्र पूर्णिमा के दिन रहा। विदेशी पर्यटक हाथी ढूंढ़ते रह गए। सरकारी नियम-कानून इतने भारी पड़ गए हैं कि विश्व प्रसिद्ध पशु मेला हाथीविहीन हो गया।
पर्यावरण एवं वन विभाग के आंकड़े पर ध्यान दें तो 1986 में 155 हाथी आए थे। 2005 तक प्रतिवर्ष हाथी की संख्या एक सौ से अधिक रही। 2007 में यह संख्या गिरकर 70 पर आ गई। उस साल पर्यावरण एवं वन विभाग की तरफ से हाथियों की निगरानी बढ़ा दी गई थी। उसके बाद दूसरे राज्यों से आने वाले हाथियों पर रोक लग गई। 2012 में हाथियों की संख्या 40 पर आ गई। 2013 में 39 हाथी आए। 2014 में कानूनी शिकंजा इस कदर बढ़ा कि महज 14 हाथी सोनपुर मेले में पहुंचे। 2015 और 16 में भी 14-14 हाथी आए। 2017 संख्या के मामले में सर्वाधिक निराशाजनक रहा। महज एक हाथी एक दिन के लिए आया। पूर्णिमा के दिन गंगा-गंडक संगम स्थल पर आया और वापस चला गया। सोनपुर मेले में आने वाले विदेशी मेहमान और देशी तथा घरेलू पर्यटक हाथी देखने को तरस गए हैं।
पर्यावरण एवं वन विभाग 2012 में हाथी की खरीद-बिक्री पर सख्त हो गया था। मेला शुरू होने के पहले दबिश बढ़ा दी गई थी। दान की आड़ में होने वाली बिक्री पर स्वामित्व प्रमाणपत्र देने पर रोक लगा दी गई थी। 2011 में कई हाथियों की बिक्री दान के रूप में दिखाकर की गई थी। इसके आधार पर स्वामित्व प्रमाणपत्र ले लिया गया था। वन्य प्राणी अधिनियम 2003 के तहत हाथियों की खरीद बिक्री पर रोक लगाई गई है। खरीद-बिक्री पर रोक के चलते वर्ष 2012 में असम सहित अन्य राज्यों से हाथी नहीं आए। बिहार के विभिन्न हिस्सों से ही हाथी आए।
हाथी सोनपुर मेला के आकर्षण का केंद्र रहता था। राज्य में करीब 80 हाथी हैं। डीएफओ से अनुमति लेकर सोनपुर मेले में हाथी लाने के फरमान पर हाथी मालिक आक्रोशित हैं। समस्तीपुर के महेंद्र प्रधान इस वर्ष हाथी नहीं लाए। उनके पास दो हाथी और सात घोड़े हैं। बताते हैं कि हाथी के भोजन और रहने की उचित व्यवस्था मेले में नहीं है। डीएफओ से अनुमति लेकर हाथी लाने की पाबंदी हमलोगों को पसंद नहीं है। सरकारी मेले में हाथी के भोजन, ठहरने की उचित व्यवस्था करें। खरीद-बिक्री पर रोक है तो आने के मामले में स्वतंत्रता दें।