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500 रुपये में कविता पाठ करता था : शैलेश लोढ़ा

‘वो आज मुङो देखकर मुस्कुराया है, लगता है कोई काम निकल आया है..।’ तारक मेहता के नाम से घर-घर में पहचान बनाने वाले शैलेश लोढ़ा ने इन्हीं पंक्तियों से बातचीत शुरू की।

By Mrityunjay Kumar Edited By: Published: Sun, 30 Nov 2014 09:23 AM (IST)Updated: Sun, 30 Nov 2014 09:26 AM (IST)

पटना ( मृत्युंजय/ रोशन)। ‘वो आज मुङो देखकर मुस्कुराया है, लगता है कोई काम निकल आया है..।’ तारक मेहता के नाम से घर-घर में पहचान बनाने वाले शैलेश लोढ़ा ने इन्हीं पंक्तियों से बातचीत शुरू की। कहा कि तारक मेहता ने मेरी रेंज वाइड कर दी है। हालांकि पहचानते तो लोग पहले भी थे। लोढ़ा दैनिक जागरण के अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में लोगों को गुदगुदाने राजधानी पहुंचे थे। शैलेश ने कहा कि कविता का कोई विकल्प नहीं हो सकता।

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कविता हर युग, हर मौसम में उतनी ही ताजी रहती है। आसपास के माहौल से ही कविता उपजती है इसलिए राजनीतिक और समाज का अक्स उसमें आना लाजिमी है। अभिनय और कविता में सामंजस्य बिठाने के सवाल पर उनका जवाब था कि कविता उनकी आत्मा है। अभिनय में कविता सहायता कर देती है और कविता के समय अभिनय काम आ जाता है। लोढ़ा का मानना है कि टीवी ने कविता को करोड़ों लोगों तक पहुंचाया है लेकिन खुले मैदान में लाइव का तो मजा ही कुछ और है। बातचीत में शैलेश ने अपने संघर्ष की कहानी भी बयां की। उन्होंने कहा कि आज जिस तारक मेहता को लोग इतना चाहते हैं शुरुआत में उसने में भी ग्रास रूट से ही यात्र तय की है।

500-500 रुपए में मैं कवि सम्मेलनों में कविता पाठ करता था। कविता के बदलते स्वरूप पर शैलेश का मानना है कि कविता में शरारत हो सकती है, लेकिन फुहड़ता की गुंजाइश कहीं नहीं है। मेरे पास ही कई ऐसे कार्यक्रमों के ऑफर आए लेकिन मैं ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं करूंगा जिसे मेरी बेटी न देख सके। टीवी जरिए लोकप्रिय हुए लोढ़ा ने छोटे पर्दे को सिनेमा से ज्यादा विशाल बताया। जेठा लाल को हर मुसीबत से बचाने वाले समाज के लिए भी चिंतित नजर आए। बकौल शैलेश, वहां तो जेठा लाल के पास मैं होता हूं लेकिन यहां कई जेठा हैं जिनके लिए मेहता साहब मौजूद नहीं होते। उन्होंने कवि नरेश शांडिल्य की एक पंक्ति भी सुनाई। ‘जरा-जरा सी बात पर रिश्तों का मत तोड़ साथ, सात अरब की भीड़ में सात लोग तो जोड़।’ मेहनत की सफलता राज शैलेश ईश्वर का आशीर्वाद मानते हैं। मुस्कुराते हुए तारक ने कहा कि वैसे तो मैं मेहनत नहीं करता। शैलेश ने बताया कि फेसबुक पर उनके नाम से 62 पेज बने हुए हैं लेकिन सब फर्जी हैं।

उनका एक ही पेज सही है जिस पर सही का निशान लगा हुआ है। पटना की तारीफ में ‘मेहता साहब’ ने कहा कि इस जगह आज भी साहित्य पढ़ने वाले लोग मौजूद हैं। शैलेश ने अपनी चंद पंक्तियां सुनाईं। खुशनसीब हैं हमलोग जिन्हें इतवार मिलता है, मुफलिसों की जिंदगी में कैलेंडर नहीं होता..


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