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Navratri: बड़ी पटन देवी में गिरी सती की दाहिनी जांघ, इस मंदिर में होता है तीन देवियों का दर्शन Patna News

शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो गई है। राजधानी में भी कई एेतिहासिक मंदिर हैं। आज जानते हैं बड़ी पटनदेवी का इतिहास।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sun, 29 Sep 2019 02:11 PM (IST)Updated: Sun, 29 Sep 2019 02:11 PM (IST)
Navratri: बड़ी पटन देवी में गिरी सती की दाहिनी जांघ, इस मंदिर में होता है तीन देवियों का दर्शन Patna News
Navratri: बड़ी पटन देवी में गिरी सती की दाहिनी जांघ, इस मंदिर में होता है तीन देवियों का दर्शन Patna News

अनिल कुमार, पटना सिटी।  भारतवर्ष के 51 शक्तिपीठों में नगर रक्षिका के रूप में पश्चिम में बड़ी तथा पूर्व में छोटी पटनदेवी की पूजा आदिकाल से होती आ रही है। दुर्गा पूजा व अन्य दिनों यहां भक्त मां के सच्चे दरबार में श्रद्धा व भक्ति से आराधना करते हैं। दुर्गा पूजा के दौरान श्रद्धालुओं की एक किलोमीटर से अधिक लंबी लाइन लगती है। यह शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र है।

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वैदिक व तांत्रिक विधि से होती है पूजा

यहां सैकड़ों वर्ष पूर्व से वैदिक पूजा सार्वजनिक होती आ रही है जबकि तांत्रिक पूजा विधान से भगवती का पट बंद कर आठ-दस मिनट होती है। वर्षों से आम धारणा है कि अष्टमी की रात्रि 12 बजे महानिशा पूजा के बाद पट खुलते ही 2.30 बजे आरती होने के बाद भगवती के दर्शन करने पर मांगी गई मनोकामना भगवती पूर्ण करती हैं। महंत विजय शंकर गिरि बताते हैं कि दुर्गा पूजा के दौरान नगर रक्षिका नगर भ्रमण भी करती हैं। यहां के हवन कुंड में लाखों भक्त हवन करते हैं। यह भी एक आश्चर्य है कि हवन कुंड से उठने वाली ज्वाला शांत होने के बाद विभूति हवन कुंड में ही समाहित हो जाती है।

बलि चढ़ाने की परंपरा आज भी

प्रारंभ से ही बड़ी पटनदेवी में बलि चढ़ाने की परम्परा आज भी विद्यमान है। अष्टमी व नवमी को सूर्योदय के बाद बलि दी जाती है। यहां महाकाली, महासरस्वती, महालक्ष्मी की प्रतिमाएं एक साथ पूजनीय है।

कई मूर्तियां हैं पूजनीय

कोने में व्योमकेश भैरव के अलावे बाहर में साईंबाबा, पार्वती, गणेश, राधा-कृष्ण, शिव तथा महावीर की मूर्तियां जीवंत है। मंदिर के बीच शेर दर्शनीय है। मंदिर में सुरक्षा के ²ष्टिकोण से सीसी कैमरा भी लगा है।

सती की दक्षिण जंघा गिरा था यहां

बड़ी पटन देवी मंदिर के महंत विजय शंकर गिरि बताते हैं कि सैकड़ों वर्ष प्राचीन मंदिर में यहां सती की दक्षिण जंघा कटकर गिरी थी। यहां भगवती का रूप सर्वानंदकरी तथा भैरव व्योमकेश हैं। महंत ने बताया कि यहां सदियों से पूजा होते आ रही है। मंदिर के पीछे एक बहुत बड़ा गड्ढा है जिसे पटनदेवी खंदा कहा जाता है।

पूर्ण होती है मनोकामना

मंदिर के समीप रहनेवाले भक्त शिशिर कुमार ने बताया कि बड़ी पटनदेवी में पूजा करनेवालों की मनोकामना पूर्ण होती है। मंदिर भवन जल्द ही मकराना के संगमरमर से दमकेगा। मंदिर का निर्माण शुरू हो गया है। गर्भ गृह को तोडऩे का काम जारी है। 51 फीट ऊंचे मंदिर में दो गेट का निर्माण होगा। मंदिर से जुड़ी सड़क, लाइट व आसपास क्षेत्र का सौंदर्यीकरण होगा।

मंदिर पहुंचने का मार्ग

अशोक राजपथ मार्ग में गायघाट से अनुमंडल कार्यालय  की ओर बढऩे पर बीच में ही दाहिनी ओर बड़ी पटन देवी का बड़ा द्वार बना है। उसी से लगभग आधा किलोमीटर पैदल या वाहन से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। मंदिर के बाहर हाइमास्ट लाइट लगा है और आगे में चारों ओर फूल-माला की दुकानें सजी है। मंदिर में विकास कार्य चल रहा है।


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