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अररिया लोकसभा सीट पर RJD से लड़ेंगे सरफराज, पर आसान नहीं चुनावी राह

बिहार में अररिया लाकसभा सीट पर उपचुनाव में राजद से सरफराज का लड़ना तय है। यह सीट उनके पिता मो. तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद रिक्‍त हुई है। लेकिन, उनकी राह आसान नहीं है।

By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 12 Feb 2018 11:54 AM (IST)Updated: Mon, 12 Feb 2018 09:57 PM (IST)
अररिया लोकसभा सीट पर RJD से लड़ेंगे सरफराज, पर आसान नहीं चुनावी राह
अररिया लोकसभा सीट पर RJD से लड़ेंगे सरफराज, पर आसान नहीं चुनावी राह

पटना [अरविंद शर्मा]। अररिया लोकसभा क्षेत्र का चुनावी गणित बहुत टेढ़ा है और नतीजों का इतिहास हैरतअंगेज। 1967 में अस्तित्व में आने के बाद से कोई भी दल यह दावे से नहीं कह सकता है कि इस क्षेत्र में उसकी जीत पक्की है। पिता मो. तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद सहानुभूति बटोरते हुए पाला बदल कर उपचुनाव में अब राजद की तरफ से सरफराज मुकाबले की तैयारी तो कर रहे हैं, लेकिन पिछले चुनाव के वोटों का गणित बताता है कि जदयू के पूर्व विधायक का नया पैंतरा इतना आसान नहीं होगा। मुश्किल का सामना तो सरफराज के प्रतिद्वंद्वी को भी करना पड़ेगा, जिनकी तस्वीर साफ होनी बाकी है।

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मौका, माहौल एवं मतदाताओं की मंशा को भांपकर नीतीश कुमार का साथ छोड़ लालू प्रसाद की लालटेन थामने वाले सरफराज का राजग के नए नेतृत्व और जोश से मुकाबला होगा। हालांकि, राजद ने अभी उन्हें प्रत्याशी बनाने का एलान नहीं किया है, किंतु हालात बता रहे हैं कि अब सिर्फ औपचारिकता भर शेष है। लालू से सहमति मिलने के बाद ही उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया है।

बिहार में भाजपा से नई दोस्ती के बाद नीतीश कुमार का अपने प्रबल प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद से यह पहला चुनावी मुकाबला होगा। ऐसे में पूरे देश भर की निगाहें बिहार पर टिकी होंगी। सरफराज के लिए सुकून की बात यह हो सकती है कि 2014 की प्रचंड मोदी लहर में भी अररिया लोकसभा सीट पर राजद ने कब्जा जमाया था। मगर आगे की कहानी सरफराज के खिलाफ है।

प्रदेश में गठबंधन का गणित फिर पलट गया है। अबकी भाजपा-जदयू एक साथ है और जदयू से दोस्ती भाजपा को रास आती रही है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही राजग ने 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव में लालू-राबड़ी की करीब डेढ़ दशक की सत्ता को उखाड़ फेंका था। ऐसे में मुकाबला टक्कर का होना तय है। हालांकि बहुत कुछ अन्य दलों के प्रत्याशियों की तस्वीर साफ होने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा।

1967 में अस्तित्व में आया था यह क्षेत्र

अररिया लोकसभा क्षेत्र 1967 में अस्तित्व में आया था। तभी से इस सीट पर किसी भी दल का एकाधिकार नहीं रहा है। 1957 एवं 1962 के चुनावों में अररिया क्षेत्र सहरसा लोकसभा सीट से जुड़ा हुई था। 1967 में अस्तित्व में आते ही इसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया। परिसीमन के बाद 2009 के संसदीय चुनाव से ही इसे अनारक्षित किया गया है, जिसके बाद एक बार भाजपा और एक बार राजद का कब्जा रहा। अनारक्षित सीट पर भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह 2009 में सांसद बने, लेकिन अगले चुनाव में राजद के तस्लीमुद्दीन ने 41.81 फीसद वोट लाकर उन्हें हरा दिया। प्रदीप को 26.80 और जदयू के विजय मंडल को 22.73 फीसद वोट मिले थे।

अबतक रहे सांसद

- 1967 और 71 के चुनावों में अररिया से कांग्र्रेस के तुलमोहन राम लगातार दो बार सांसद बने। वर्ष 1977 में इस पर जनता पार्टी के महेंद्र नारायण सरदार ने जीत दर्ज की। 1980 और 1984 में कांग्र्रेस के डुमर लाल बैठा का कब्जा रहा। 1989, 1991 और 96 के चुनावों में जनता दल के टिकट पर सुखदेव पासवान की किस्मत बुलंद रही।

- 1998 में पहली बार यह सीट भाजपा के कब्जे में आई और रामजी दास ऋषिदेव सांसद बने। उसके अगले चुनाव 1999 में राजद के टिकट पर सुखदेव फिर कामयाब हुए। किंतु 2004 में सुखदेव ने पाला बदलकर भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे और जीत दर्ज की।

- नए परिसीमन में इसे सामान्य कर दिया गया, जिसके बाद 2009 में भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह ने जीत दर्ज की, लेकिन अगले ही चुनाव 2014 में राजद के तस्लीमुद्दीन ने उन्हें हरा दिया।


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