है जयप्रकाश वह जो न कभी सीमित रह सकता घेरे में..
भारतीय राजनीति को निर्णायक मोड़ देने में जयप्रकाश नारायण यानी जेपी का योगदान कभी न भूला जा सकेगा
पटना। भारतीय राजनीति को निर्णायक मोड़ देने में जयप्रकाश नारायण यानी जेपी का योगदान कभी नहीं भुला जा सकेगा। उनका दर्शन, कृति, लोकतंत्र के लिए दी गई कुर्बानी आज मार्गदर्शन के लिए काफी है। देश में फैले भ्रष्टाचार, कुशासन, मंहगाई, गलत शिक्षा नीति के खिलाफ जेपी ने पांच जून 1974 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जनसमूह को संबोधित करते हुए नये भारत बनाने के लिए संपूर्ण क्रांति का नारा देकर अहिसक आंदोलन का शुभारंभ किया था। आजादी के बाद स्वतंत्र भारत में संपूर्ण क्रांति अनोखा प्रयोग था।
गांधी मैदान आते-आते आमसभा में बदल गया जुलूस
बिहार विधान परिषद के सदस्य और पटना विवि के पूर्व प्रोफेसर रहे डॉ. रामवचन राय बताते हैं कि पांच जून 1974 को राजधानी की सड़कों पर विशाल जुलूस निकाला जो बेली रोड से होते हुए गांधी मैदान पहुंचा था। आंदोलनकारियों का जुलूस गांधी मैदान में आते-आते आम सभा में तब्दील हो गया था। सभा में पहली बार जेपी ने संपूर्ण क्रांति की घोषणा की थी। उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि संपूर्ण क्रांति राजनीति नहीं, व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई है। सभा के दौरान कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु ने जेपी का स्वागत किया था। उन्होंने राष्ट्रकवि दिनकर की कविता पढ़ी थीं। जेपी को सुनने के लिए बिहार के अलग-अलग जिलों से लोग आए थे। मंच पर जेपी के सामने आचार्य राममूर्ति कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे।
हजारों की भीड़ में दिखा था अनुशासन
कवि सत्यनारायण बताते हैं कि गांधी मैदान में जेपी को सुनने के लिए लाखों की भीड़ थी। जेपी ने मैदान के बीचो-बीच बने मंच से लोगों को संबोधित किया था। गांधी मैदान के चारों ओर पुलिस का पहरा था। लोगों ने जेपी की बातों को शांतिपूर्वक सुना था। उन्हें सुनने को लेकर लोग बैरक को भी लांघ कर मैदान में पहुंचे थे। मंच पर जेपी के साथ नाना भाई देशमुख, आचार्य राममूर्ति आदि भी थे। भीड़ के बावजूद लोग अनुशासन में थे।
रेणु के स्वागत गीत पर गड़गड़ा उठी थीं तालियां
लोकनायक जयप्रकाश नारायण की सभाओं में क्रांति गीत गाने वाली, आंदोलन के दौरान गिरफ्तार होने वाली जेपी की अनुयायी विभा सिन्हा बताती हैं कि सभा के दौरान रेणु ने राष्ट्रकवि दिनकरजी की कविता 'झंझा सोई, तूफान रुका, प्लावन जा रहा कगारों में, जीवित है सबका तेज किंतु अब भी तेरे हुंकारों में, है जयप्रकाश वह जो न कभी सीमित रह सकता घेरे में, अपनी मशाल जो जला बांटता फिरता ज्योति अंधेरे में..' पेश कर उनका स्वागत किया था। तालियों की गड़गड़ाहट और जेपी अमर रहे की आवाज मैदान में गूंज उठी थी।