शहादत को सलाम: गोली लगने पर भी अंतिम सांस तक लड़ते रहे परवल परिमल
पूर्वी सिंहभूम जिले के पहाड़ी क्षेत्र में माओवादियों से लोहा लेते हुए आठ जून, 2009 को शहीद इंस्पेक्टर परवल परिमल की शहादत कभी नहीं भूली जा सकती।
पटना [प्रशांत कुमार]। केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआर पीएफ) की सातवीं बटालियन के शहीद इंस्पेक्टर परवल परिमल की शौर्य गाथा को अर्धसैनिक बल के जवान कभी नहीं भूल सकते। उन्होंने माओवादियों के साथ लोहा लिया था और गोली लगने के बाद भी अंतिम सांस तक लड़ते हुए विरोधियों के हौसलों को न केवल पस्त कर दिया था, बल्कि चारों तरफ से घिरे साथियों की जान बचा ली थी।
सीआरपीएफ 106 बटालियन के अधिकारी पीके सिंह बताते हैं कि यह घटना आठ जून, 2009 को झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के गोलकेरा थाना अंतर्गत सारूगाड़ा के पहाड़ी क्षेत्र में हुई थी।
तब वहां सीआरपीएफ की सातवीं बटालियन की तैनाती थी, जिसका मुख्यालय अब गिरिडीह में चला गया है। उस ऑपरेशन के बाद से माओवादी वहां से शिफ्ट हो गए। सातवीं बटालियन के डिप्टी कमांडेंट बताते हैं कि इंटेलिजेंस की सूचना पर इंस्पेक्टर परवल परिमल के नेतृत्व में दो टुकड़ियां बनाई गई थीं।
इसके बाद उन्होंने सेरेगाटा गांव में सर्च ऑपरेशन चलाया। इस दौरान दो बाइक पर सवार तीन माओवादी सीआरपीएफ के हत्थे चढ़ गए। जवानों का हौसला बढ़ा और उन्होंने दिन में पहाड़ी पर चढ़ने का निर्णय लिया। अंधेरा होने से पहले वे लौट आते। आगे बढ़ते हुए टुकड़ियां सारूगाड़ा की तरफ बढ़ गईं, जहां से पहाड़ी का रास्ता बहुत कठिन था।
पहाड़ पर गाड़ी से चढ़ना मुमकिन नहीं था, इसलिए उन्होंने आगे की दूरी पैदल तय करने का निर्णय लिया और चलते-चलते सारूगाड़ा गांव पहुंच गए। सुबह छह बजकर 10 मिनट पर टुकड़ी के सारूगाड़ा गांव पार करते ही पहले से घात लगाए बैठे माओवादियों ने जवानों पर हमला बोल दिया।
माओवादियों ने जमीन पर बिछी आइईडी (इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) ब्लास्ट करने के साथ फायरिंग शुरू कर दी और लगातार धमाके होने लगे। माओवादियों ने एक टाटा स्पेसियो गाड़ी उड़ा दी, जिसमें सवार नौ पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। वे चारों तरफ से घिर चुके थे। अंधाधुंध फायरिंग हो रही थी। ऐसी स्थिति में भी इंस्पेक्टर परवल परिमल विचलित नहीं हुए।
उन्होंने जवानों को पोजीशन लेकर उस ओर बढ़ने के लिए कहा, जहां धमाका हुआ था, ताकि माओवादियों की मांद में फंसे जवानों को सुरक्षित निकाला जा सके। उस वक्त उनकी प्राथमिकता माओवादियों के बढ़ते कदमों को रोकना था। इसके लिए उन्होंने भी लगातार गोलियां चलाने का आदेश देते हुए जवानों को आगे बढ़ने के लिए कहा। जवाबी फायरिंग से माओवादी घबरा कर तितर-बितर हो गए।
विपरीत दिशा से हमला करने की बनाई योजना
इंस्पेक्टर परवल परिमल जब तक घायल जवानों के पास पहुंचे, तब तक माओवादी पहाड़ी की चोटी पर पहुंचकर पोजीशन ले चुके थे। माओवादियों की नजर जवानों की गतिविधियों पर थी। वे ऊपर से लगातार गोलियों की बौछार कर रहे थे।
तभी इंस्पेक्टर ने विपरीत दिशा से उनपर हमला करने की योजना बनाई। उन्होंने हवलदार केवलानंद दंगल के साथ एक टीम को विपरीत दिशा से चोटी की तरफ चढ़ाई करने को कहा और खुद गोलियां बरसाते हुए माओवादियों की तरफ सीधे बढ़ गए, ताकि पीछे से आने वाली टुकड़ी पर उनकी नजर न पड़े।
उनकी टीम के जवान कवर फायर दे रहे थे, लेकिन ऊंचाई और दूरी होने के कारण जवानों की गोलियां माओवादियों तक नहीं पहुंच पा रही थीं। सीधी लड़ाई में कई माओवादियों की गोलियां इंस्पेक्टर के शरीर को छेद चुकी थीं। गोली लगने के बावजूद वह नहीं रुके। हाथ के बल पर चट्टानों के ऊपर शरीर को घसीटते हुए गोलियां बरसाते रहे।
इधर, विपरीत दिशा से चढ़ रही केवलानंद की टुकड़ी भी चोटी के करीब पहुंच चुकी थी। इस बीच कई माओवादी पुलिस की गोली से घायल हो गए। जब गोलियों की तड़तड़ाहट बंद हुई, तब इंस्पेक्टर परवल परिमल जीत की खुशी में मुस्कुराए और हिचकी के साथ उनके प्राण निकल गए।