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Bihar Politics: आठ साल बाद फिर CM नीतीश के साथ उपेंद्र कुशवाहा, दूसरी बार JDU में किया पार्टी का विलय

Bihar Politics रालोसपा के नेता उपेंद्र कुशवाहा आठ साल बाद आज अपने पुराने घर जदयू में लौट आए हैं। अपनी तुनकमिजाजी और महत्‍वाकांक्षा की वजह से इससे पहले दो बार वे जदयू छोड़ चुके हैं। फिलहाल उनके राजनीतिक जीवन का काफी चुनौतीपूर्ण दौर चल रहा है।

By Shubh Narayan PathakEdited By: Published: Sun, 14 Mar 2021 07:37 AM (IST)Updated: Mon, 15 Mar 2021 06:05 AM (IST)
बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा। फाइल फोटो

पटना, बिहार ऑनलाइन डेस्‍क। Bihar Politics: तीन मार्च 2013 से शुरू हुआ राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी (Rashtriya Lok Samta Party) का सफर आज खत्‍म हो गया। करीब आठ साल का यह सफर ठीक उसी जगह खत्‍म हुआ, जहां से शुरू हुआ था। रालोसपा (RLSP) के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) आठ साल बाद फिर जनता दल (यूनाइटेड) का हिस्‍सा बन गए। जदयू से ही अलग होकर उपेंद्र ने रालोसपा का गठन किया था। आज उनकी पार्टी का जदयू (JDU) में ही विलय हो गया। इसी के साथ उपेंद्र एक बार फिर अपने पुराने सखा और बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार (Bihar CM Nitish Kumar) के साथ हो गए।

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कई बार पकड़ा हाथ और नाराज हुए तो छोड़ा साथ

उपेंद्र कुशवाहा इससे पहले भी नीतीश कुमार के साथ लंबी राजन‍ीतिक पारी खेल चुके हैं, लेकिन दोनों नेताओं के संबंध कभी स्‍थायी नहीं रहे। इससे पहले कम से कम दो बार नाराजगी की वजह से उपेंद्र कुशवाहा, नीतीश और उनकी पार्टी से अपना रिश्‍ता खत्‍म कर चुके हैं।

राज्‍यसभा की सदस्‍यता त्‍यागकर बनाई थी अपनी पार्टी

उपेंद्र कुशवाहा ने 2013 में जब जदयू से नाता तोड़कर अपनी पार्टी बनाई तब वे राज्‍यसभा के सदस्‍य थे। हालांकि उन्‍होंने नीतीश कुमार पर कई आरोप लगाते हुए पार्टी से अलग होने का फैसला लिया। इसके कुछ ही दिनों बाद वे एनडीए में शामिल हो गए। इसका फायदा उनकी पार्टी को हुआ। उन्‍होंने कई सीटों पर अपने प्रत्‍याशियों को जीत दिलाई और केंद्र सरकार में मंत्री भी बने। लेकिन उपेंद्र की एक जगह नहीं टिकने की फितरत ने उन्‍हें दोबारा सत्‍ता के सुख से वंचित कर दिया। बाद में वे राजद के नेतृत्‍व वाले महागठबंधन के साथ भी गए। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में उन्‍हें यहां भी भाव नहीं मिला और वे अलग होकर चुनाव लड़े।

बुरे वक्‍त में उपेंद्र को याद आया पुराना घर

रालोसपा के लिए वोट मांगने वाले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम तो बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में कई सीटें जीत गई, लेकिन रालोसपा का खाता तक नहीं खुला। आज उपेंद्र सबसे अधिक मुश्किल दिनों में हैं। उनकी पार्टी का न तो कोई विधायक है और न ही कोई सांसद। विधानसभा चुनाव के बाद से उनके दल के नेता एक-एक कर दूसरी पार्टियों का दामन थाम रहे हैं। ऐसी मुश्किल परिस्‍थि‍त‍ि में उपेंद्र ने फिर से अपने पुराने घर में लौटने का फैसला किया है।

1985 से राजनीतिक पारी खेल रहे उपेंद्र

उपेंद्र कुशवाहा का राजनीतिक सफर 1985 से शुरू हुआ। शुरुआती दिनों में वे युवा लोक दल से जुड़े थे। बाद के दिनों में उन्‍होंने युवा जनता दल और फिर समता पार्टी में महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारियां निभाईं। वर्ष 2000 में वे बिहार विधानसभा के लिए चुने गए और सदन में समता पार्टी के उपनेता बनाए गए। वे जदयू का विधायक रहते विपक्ष के नेता भी रहे। लेकिन उपेंद्र यहां संतुष्‍ट नहीं थे और उन्‍होंने राष्‍ट्रीय समता पार्टी नाम से अपनी पार्टी बनाई। इसके कुछ ही महीनों बाद उपेंद्र फिर से नीतीश कुमार के करीब आए और राष्‍ट्रीय समता पार्टी का जदयू में विलय हो गया।

कोईरी समुदाय के वाेटों पर है अच्‍छी पकड़

माना जाता है कि उपेंद्र कुशवाहा की कोईरी वोटों पर अच्‍छी पकड़ है। यह ठीक वैसे ही है, जैसे लालू प्रसाद यादव की यादव मतदाताओं और नीतीश कुमार की कुर्मी मतदाताओं पर पकड़ है। जदयू को उम्‍मीद है कि उपेंद्र के साथ आने से पार्टी का लवकुश (कुर्मी-कुशवाहा) समीकरण फिर से मजबूत होगा।


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