राजद कार्यकर्ताओं का मनोबल बचाने को रैली की तैयारी में जुटे लालू, जानिए
तमाम जांच एजेंसियों से घिरे लालू यादव के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती अपने समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाए रखने की है। लालू रैली के जरिए इस जुगत में जुटे हैं।
पटना [अरविंद शर्मा]। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे राजद प्रमुख लालू प्रसाद के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती अपने समर्थकों एवं पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल को बनाए-बचाए रखने की है। यही कारण है कि रैलियों के जरिए लालू प्रसाद पूरे प्रदेश में अपने समर्थकों को एक साथ आंदोलित करने की तैयारी में हैं। सूबे में सत्ता परिवर्तन और लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट के बीच लालू परिवार के सदस्यों पर राजनीतिक विरोधियों के हमले तेज हो गए हैं।
केंद्रीय जांच एजेंसियों की ओर से पूछताछ के लिए ताबड़तोड़ तारीखें दी जा रही हैं। ऐसे में निचले स्तर के कार्यकर्ताओं में कयासों-आशंकाओं का दौर जारी है। लालू की कोशिश वोट बैंक की हिफाजत और समर्थकों के मनोबल को बचाए रखने के साथ-साथ विरोधी और सहयोगी दलों को अपने जनाधार का अहसास कराना भी है।
राजद के संगठनात्मक चुनाव के दौरान दो महीने के भीतर लालू अगर एक साथ सभी जिलों में रैली की तैयारी कर रहे हैं तो यह अनायास नहीं हो सकता है। चुनाव से पहले लालू को अपने विरोधियों पर मनोवैज्ञानिक दबाव एवं समर्थकों में अहमियत बनाए रखने के लिए यह जरूरी है।
दरअसल उन्हें बेहतर पता है कि सत्ता से बेदखल होने के बाद उनके कार्यकर्ताओं में भारी निराशा है। भ्रष्टाचार के आरोपों में परिवार की फजीहत से भी समर्थकों में गलत संदेश जा रहा है। ऐसे में लालू की प्राथमिकता कार्यकर्ताओं में नया जोश भरने की है। और इसके लिए रैली से बेहतर विकल्प उनके पास नहीं है।
पटना स्थित अपने सरकारी आवास पर सीबीआई छापे के बाद तेजस्वी यादव पर उठ रहे सवालों का जवाब लालू ने पटना के गांधी मैदान में रैली करके दिया था। बिहार की सत्ता से बेदखल होने के करीब एक महीने बाद 27 अगस्त को आयोजित इस रैली में जदयू के बागी नेता शरद यादव एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत देशभर के 22 प्रमुख दलों के नेताओं ने शिरकत की थी।
इस बार भी लालू का प्रयास गांव एवं प्रखंड स्तर पर अपने समर्थकों में नई ऊर्जा भरकर विरोधियों को बताना कि सत्ता खोने के बावजूद जनता में उनकी अहमियत कम नहीं हुई है।
रैली के जरिए विरोधियों को अपनी ताकत का अहसास कराने की कला ही लालू को बिहार की राजनीति में खास बनाती है। राजद प्रमुख 90 के दशक में कई बार गरीब महारैला में भारी भीड़ जुटाकर अपनी ताकत का अहसास कराते रहे हैं। महागठबंधन सरकार में तकरार के दौरान भी तेजस्वी यादव के इस्तीफे के दबाव को भी लालू ने यह कहकर दरकिनार कर दिया था कि बेगुनाही का सबूत गांधी मैदान में ही दिया जाएगा।