राजद ने एनडीए के साथ कांग्रेस-रालोसपा को भी दिखाई ताकत, बताया- बरकरार है लालू का जलवा
राजद ने बिहार बंद में एनडीए के साथ ही महागठबंधन के घटक दलों कांग्रेस-रालोसपा को भी दिखाई ताकत। पार्टी ने यह भी बताया कि बरकरार है लालू का जलवा। राजनीति में कम नहीं हुआ है प्रभाव।
पटना, अरविंद शर्मा। बिहार बंद के दौरान राजद ने दो मोर्चा खोल रखा था। पहला, उसे भाजपा-जदयू गठबंधन को अपनी ताकत का अहसास कराना था और दूसरा, महागठबंधन के सहयोगी दलों को भी बताना था कि लालू प्रसाद का प्रभाव अभी पस्त नहीं हुआ है। बिहार में भाजपा-जदयू की संयुक्त शक्ति से लडऩे के लिए राजद को किसी अन्य पार्टी से ऊर्जा और अहसान लेने की जरूरत नहीं है। यही कारण है कि बंद के एलान से लेकर मैदान-ए-जंग तक में भी उसने अपने साथी दलों को भाव नहीं दिया। समान मकसद का वास्ता भी काम नहीं आया।
कुशवाहा-तेजस्वी में मुलाकात तक नहीं हुई
पटना के डाक बंगला चौराहे पर राजद, कांग्रेस और रालोसपा के अलग-अलग विरोध प्रदर्शन की तस्वीर बता रही है कि लोकसभा चुनाव में साथी दलों के मोलभाव को राजद ने सबक की तरह ग्रहण किया है। तभी विरोध का समय, मकसद और जगह एक होने के बावजूद रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा भाजपा-जदयू के विरोध में डाकबंगला चौराहे पर शनिवार को अलग नारे लगाते रहे और तेजस्वी यादव अपने समर्थकों को संविधान बचाने की शपथ अलग दिलाते रहे। दोनों नेताओं में से किसी ने इतनी औपचारिकता भी नहीं निभाई कि क्षण भर के लिए ही सही, एक-दूसरे के साथ हो लें या कम से कम हाथ ही मिला लें।
कांग्रेस की भी टोली अलग नजर आयी
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा की टोली भी अलग से ही नरेंद्र मोदी, अमित शाह और नीतीश कुमार को कोसती नजर आई। महागठबंधन के एक और प्रमुख सहयोगी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी का भी प्रदर्शन स्थल पर अता-पता नहीं था। वीआइपी प्रमुख मुकेश सहनी की भी झलक नहीं दिखी, जबकि हफ्ते भर पहले कांग्रेस, रालोसपा, हम और वीआइपी ने संयुक्त रूप से प्रेस कॉन्फ्रेंस करके दोस्ती का दावा-वादा किया था और यह भी कहा था कि राजद के बिहार बंद में महागठबंधन की एकजुटता दिखेगी। वीआइपी के कुछ नेताओं ने सुबह में ही सबसे पहले अपनी सक्रियता दिखाकर दोस्ती की इतिश्री कर ली। समान मकसद का दावा करने वाले वामदलों के नेता भी नजर नहीं आ रहे थे।
वामदलों का नहीं मिला सहयोग
हालांकि, वामदलों की निष्क्रिय सहयोग का मतलब साफ था कि उनके लिए यह राजद से बदला लेने का मौका था। महज दो दिन पहले वामदलों के बंद में भी राजद ने सक्रिय सहयोग नहीं दिया था। लिहाजा वामदलों ने राजद को नैतिक समर्थन के बदले सक्रिय सहयोग देना जरूरी नहीं समझा।
आभार के लिए भी नहीं निकले शब्द
बिहार बंद की समाप्ति पर सफलता के दावे के लिए राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने साथ निभाने वाले व्यवसायिक, सामाजिक और राजनीतिक संगठनों के प्रति आभार व्यक्त किया है, किंतु उसमें भी मदन मोहन झा, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी की पार्टियों का नाम लेना जरूरी नहीं समझा। राजद की सियासत के तौर-तरीके और तैयारी से साफ है कि वह अगले विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के साथी दलों को ज्यादा भाव नहीं देने जा रहा है।